एपिलेप्सी के निदान के लिए कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग

एपिलेप्सी के निदान के लिए कृत्रिम बुद्धि का प्रयोग

जैव अभियांत्रिकी अंतरराष्ट्रीय परिषद डॉ. जस्टिन डोवेल की राय

पुणे: एपिलेप्सी ((मिर्गी) एक न्युरॉलॉजिक संबंधी समस्या है. इस के निदान के लिए वर्तमान पद्धती में बहुत समय लगता है. इस बिमारी से प्रभावित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इसके उपचार के लिए कृत्रिम बुद्धी का प्रयोग किया जा रहा है. इससे रोगियों के उपचार के लिए लाभ होगा. यह सुविधा जल्द ही मुंबई और पुणे के हॉस्पिटल में शुरू की जाएगी, ऐसा दावा अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता डॉ. जस्टिन डोवेल ने किया

एमआईटी आर्ट, डिजाइन और टेक्नॉलाजी विश्वविद्यालय राजबाग, लोणी कालभोर में स्कूल ऑफ बायोइंजिनिअरिंग की और से आयोजित प्रथम अंतरराष्ट्रीय परिषद मे वे बोल रहे थे.  एमआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट के संस्थापक डॉ. विश्वनाथ. दा. कराड, एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. मंगेश. तु. कराड, एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय के कुलगुरू डॉ. सुनील राय, डॉ. मेधा घैसास, माईर्स मेडिकल कॉलेज के कार्यकारी अध्यक्ष, डॉ. विरेंद्र घैसास, एमआयटी एडीटी विश्वविद्यालय के जैव अभियांत्रिकी विभाग के संचालक विनायक घैसास, एमआयटी एडीटी विश्वविद्यालय के जैव अभियांत्रिकी विभाग प्रमुख डॉ. रेणु व्यास आदि मौजूद थे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के 200 से अधिक विशेषज्ञोने इस सम्मेलन में भाग लिया था.

ॲप्लिकेशन ऑफ आर्टीफिशयल इंटिलीज्यंश ऑफ ऐपिलेप्सि युजिंग ईईजी स्कॅन इस विषय पर बोलते हुए डॉ. जस्टिन डॉवेल ने कहा की एपिलेप्सी (मिर्गी) एक न्युरॉलॉजिक संबंधी समस्या है. मरीजों का निदान करने में बहुत समय लगता है. हालांकि, हमने कृत्रिम बुद्धि का उपयोग करके इसका निदान सरल कर दिया है. इससे कम समय में सटीक निदान में मदद मिलेगी. इस के लिए इलेक्ट्रोएन्सेफैलोग्राफी (ईईजी) का इस्तेमाल किया गया है. हमने विश्व स्तर पर इस समस्या को हल करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया है. यह सॉफ्टवेयर जल्द ही मुंबई और पुणे के कई अस्पतालों में लॉन्च किया जाएगा. यह एपिलेप्सी (मिर्गी) रोगियों के उपचार के लिए फायदेमंद होगा.

एमआईटी ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के संस्थापक विश्वनाथ. दा. कराड ने कहा कि विज्ञान को आध्यात्मिकता से जोड़कर प्रगति की गई है. आने वाले वर्षों में जैव अभियांत्रिकी संस्थान को एक प्रमुख ज्ञान केंद्र के रूप में विकसित करने का विचार है. इस सम्मेलन का उद्देश्य शिक्षा, उद्योग और जैव इंजीनियरिंग के तरीकों और उपकरणों से समस्याओं को हल करने का है. विश्वविद्यालय के कुलगुरू डॉ. सुनील राय, डॉ. वीरेन्द्र घास के हाथ से परिषद पुस्तिका का विमोचन किया गया.

सोलणेस केमिकल्स इंडिया के संचालक डॉ. सचिन कुकरे, ऑर्किड डायग्नोस्टिक्स के नेताजी खोत, आर ऍण्ड डी गेनोवा व्हॅकिन फॉर्म्युलेशन सेंटर आणि संशोधन प्रयोगशाळेचे व्यवस्थापक डॉ. भालचंद्र वैद्य, आयआयटी बॉम्बे के बीईटीआयसी के प्रमुख प्रा. बी. रवी, एसआयआर-एनसीएल के प्रिन्सिपल सायंटिस्ट डॉ. नरेंद्र कडू, डॉ. संजय सेनगुप्ता इन्होन छात्रों को कृत्रिम जीवशास्त्र, फार्मास्युटिकल इंजिनिअरिंग, बिग डेटा विश्लेषण, बायोसेन्सर, आयओटी, बायोमेडिकल इमेजिंग, रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता इस विषय पर मार्गदर्शन किया. सीएसआयआर एनसीएल पुणे, एनसीसीएस, एसपीपीयू, डीआयएटी, सीआयएफई मुंबई, बीआयटीएस, पॉंडिचेरी युनिव्हर्सिटी, मुंबई युनिव्हर्सिटी, कर्नाटक राज्य महिला विद्यापीठ, विनोबा भावे युनिव्हर्सिटी हजारीबाग, कालिकत विद्यापीठ और जैवतकनिक, बायोमेडिकल और बायोइनफॉरमेटिक डिपार्टमेंट, वालचंद इन्स्टिट्यूट ऑफ तंत्रज्ञान सोलापूर यहां के छात्रोंने इस परिषद मे भाग लिया.

प्रयोगशाला का शुभारंभ

बीआयटीसी (बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी केंद्र) आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर बी. रवी इनके हाथों से इस प्रयोगशाला का उद्घाटन किया गया. कम खर्च मे चिकित्सा उपकरणों का विकास और जैव अभियांत्रिकी छात्रों को प्रशिक्षण देणा इस प्रयोगशाला का उद्देश है.