मुंबई : पुणे समाचार
लहूलुहान पैर देखकर अगर भीतर कुछ मर नहीं जाता, बिवाइयाँ अगर दिल में टीस नहीं जगाती, ज़ख्म अगर दर्द पैदा नहीं करते, बेबसी अगर केवल उनकी लगती है तो क्या ऐसे किसी को इंसान कह सकते हैं? किसानों के हमदर्द माने जाते रघुनाथ पाटिल ने किसान मोर्चे को लेकर विवादास्पद वक्तव्य दिया है। उनका कहना है खाने के लिए रोटी नहीं होना, पैरों से ख़ून आना..इसमें नया क्या है?
किसान सभा की माँगों को लेकर राजनीति गर्मा रही है। नासिक से मुंबई पैदल यात्रा करते हुए हज़ारों किसान अपनी माँगों के लिए मुंबई पहुँचे थे। सरकार को झुकवाकर मेहनतकश पर हुए अन्याय को न्याय में बदलवाकर माने थे। लेकिन खुद को किसानों का नेता कहलाने वालों को ही यह न दिखा।
ऐसा नहीं कि उन्हें पीड़ा नहीं हुई, उन्हें पीड़ा हुई लेकिन इस बात की कि यह आयोजन सुकाणु समिति की ओर होता तो उसका महत्व बढ़ जाता। पाटिल ने कहा उनकी माँगें पूरी हो गई, अब हम अपनी माँगों के लिए अलग से आंदोलन करेंगे।
रघुनाथ पाटिल से पूछा गया था कि वे मोर्चे में शामिल क्यों नहीं हुए थे? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि “इतनी धूप में किसानों को पैदल चलने की ज़रूरत ही क्या है? नासिक में रहकर भी हल निकाला जा सकता था। किसके पास समय नहीं था, मुख्यमंत्री के पास या मंत्रियों के पास? यह मोर्चा केवल राजनीति है। मुख्यमंत्री राजनीति कर रहे हैं। उन्हें केवल यह दिखाना है कि उन्होंने किसानों के लिए कुछ किया, लेकिन जनता भी सब जानती है। ”