बेजुबानों के लिए फ़रिश्ता हैं हर्षा शाह

– 13 स्ट्रीट डॉग्स को अपने घर में दिया आसरा
पुणे: पुणेसमाचार/ गुणवंती परस्ते

सड़क पर घूमते आवारा कुत्ते अक्सर लोगों की आंखों की किरकरी बने रहते हैं। कोई उन्हें दुत्कारता है, कोई मारता है, लेकिन पुणे निवासी हर्षा शाह दूसरों से अलग हैं। हर्षा की नज़र में यह कुत्ते उनकी आंखों के तारे हैं। यूं तो हर्षा को रेलवे से जुड़े कामों के लिए लोग ‘रेलवे वाली आंटी’ बुलाते हैं, मगर उनका एक दूसरा रूप भी है। हर्षा स्ट्रीट डॉग्स से कितना प्यार करती हैं, इसका अंदाज़ा उनके घर के पास से गुजरने पर खुद ब खुद चल जाता है। उन्होंने 13 कुत्तों को अपने घर में जगह दी है। 68 वर्षीय हर्षा शाह जहां भी जाती हैं, अपने साथ एक थैला लेकर चलती हैं, जिसमें कुत्तों के लिए खाना होता है। बेजुबानों के प्रति उनके प्यार का आलम यह है कि अगर उन्हें रस्ते में कोई कुत्ता बीमार दिख जाए तो सारे काम छोड़कर उसके इलाज में जुट जाती हैं।

आपको कुत्तों से काफी लगाव है, इस बारे में कुछ बताएं?
कुत्ते को मनुष्य का सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है, लेकिन आज इंसान अपने इस दोस्त को खुद ख़त्म करने पर तुला है। वो बेजुबान है तो क्या, उसे भी हमारी तरह भूख-प्यास लगती है। इसलिए उन्हें भोजन उपलब्ध कराना मैं अपना धर्म समझती हूँ। कुत्तों के प्रति मेरा लगाव मेरे माता-पिता की वजह से ही बढ़ा।  हमारे घर में तीन कुत्ते थे, तभी से मेरे दिल में उनके लिए इमोशनल फीलिंग है। मैंने आवारा कुत्तों की रक्षा के लिए  पुणे में सोसायटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रूअल्टी की स्थापना की।

आपके घर में इतने कुत्ते हैं, आप उनका कैसे ख्याल रखती हैं?
मेरे यहाँ कुल 13 कुत्ते हैं, जिनका मैं और पार्वती (मुंहबोली बेटी) ख्याल रखते हैं। हमने सभी कुत्तों के अलग-अलग नाम रखे हैं। जैसे  अतुल्य, आर्या, सौंदर्या, भोमिया, चुनौती, झुमरू, हमेशा, तूफान और नजारा। इनका ख्याल रखना चुनौतीपूर्ण तो है, लेकिन यह हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। हर महीने डॉक्टर इनके चेकअप के लिए आता है। कभी-कभी ये आपस में लड़ाई भी करते हैं। रात में जब मैं टीवी देखती हूँ, तो ये सब भी मेरे साथ आकर बैठ जाते हैं। बिना टीवी देखे इनको भी नींद नहीं आती है।

इनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताएं?
व्यक्ति की तरह प्रत्येक कुत्तों का स्वभाव भी अलग होता है। मेरे घर में एक घड़ी है, जिसमें 12 बजते ही संगीत बजने लगता है, उसे सुनते ही अतुल्य भी आवाज़ निकालने लगता है मानो कुछ गा रहा हो। मेरे कुछ डॉग्स तो ऐसे हैं जो किसी बेसहारा बिल्ली के बच्चे को देखते ही उसे मुंह से उठाकर मेरे पास ले आते हैं और उनका ख्याल रखते हैं।

कुत्तों को लेकर लोगों की सोच अच्छी नहीं है, आप क्या कहेंगी?
सीधे और सपाट शब्दों में कहूँ तो मनुष्य बहुत ही स्वार्थी है। काम निकलने के बाद वो किसी से मतलब नहीं रखता। यदि कोई पंडित बोल दे कि कुत्ते को खाना खिलाने से कष्ट दूर होते हैं, तो वह ढूंढ-ढूंढकर उसे खाना खिलायेगा वरना अपने पास भी फटकने नहीं देगा। आज अधिकांश लोग सिर्फ अपने शौक के लिए कुत्ते पालते हैं और जब वह बूढ़े हो जाते हैं तो रात के अँधेरे में उन्हें कहीं छोड़ आते हैं। मेरा तो इतना ही कहना है कि अगर आप कुत्ते को अपने घर में जगह नहीं दे सकते तो दिल में दो। आते-जाते उसे खाना-पानी देना ही काफी है, वो ताउम्र आपका अहसानमंद रहेगा। लोगों में यह धारण बन गई है कि कुत्ते उनकी परेशानी बढ़ाएंगे, जबकि सही मायनों में वह हमारी सुरक्षा करते हैं।
इतनी बड़ी संख्या में यह कुत्ते आपके घर कैसे आए?
मेरे घर के पास ही एक बहुत पुराना खाली वाडा था, जहां 5-6 कुत्ते रहते थे। वाडा गिरने से पहले सभी यहाँ मेरे पास आ गए। शायद उन्हें पूर्व आभास हो गया था कि वाडा गिरने वाला है। वाडे का एक हिस्सा गिरने के बाद महापालिका ने सुरक्षा की दृष्टि से उसे पूरा गिरा दिया।

स्ट्रीट डॉग के लिए आपने काफी कार्य किया, उस बारे में कुछ बताएं?
मैं जब भी मंडई जाती हूं, वहां के सभी कुत्तों के लिए खाने और पानी की व्यवस्था ज़रूर करती हूँ। वहां के दुकानदार भी मेरे इस प्रेम से परिचित हैं और सभी इस काम में मेरी सहायता करते हैं। मैं लोगों को समझती रहती हूँ कि कुत्तों को बेवजह परेशान न करो, उन्हें चोट न पहुँचाओ। अगर उन्हें कम से कम एक समय खाना मिले, तो वो यहाँ-वहाँ नहीं भटकेंगे। हादसे के शिकार कुत्तों के अंतिम संस्कार के लिए पीएमसी से जगह मांगी थी, पीएमसी ने जगह उपलब्ध भी कराई,  लेकिन उसका वर्गीकरण पुणे से दूर किया गया।