शब्दों को अस्तिव की धार देने पर साहित्य में जान आती है

वरिष्ठ लेखिका विजया वाड ने कहा

लेखिका उर्मिला विश्‍वनाथ कराड लिखित दो पुस्तकों का विमोचन

पुणे: पुणे समाचार

शब्दों को जब अस्तित्व की धार दी जाती है तब उस साहित्य में जान आती है. गोविंद महाराज, संत गाडगेबाबा और इंदिरा गांधी जैसे व्यक्तियों पर कविता रचना महान कार्य है. इसे लेखिका ने अपने कविता के जरिए दिखाया है. ऐसे विचार मराठी विश्‍वकोश की पूर्वाध्यक्षा व वरिष्ठ लेखिका विजया वाड ने रखे.

अमेय प्रकाशन की ओर से लेखिका उर्मिला विश्‍वनाथ कराड लिखित गुणवंतांच्या सहवासात (व्यक्तिचित्र) और वाटेवरच्या पाऊलखुणा (कविता संग्रह) इन दो पुस्तकों का विमोचन हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष विश्‍वशांति केन्द्र (आलंदी), माईर्स एमआइटीके संस्थापक अध्यक्ष प्रा. डॉ.विश्‍वनाथ दा. कराड, वरिष्ठ लेखिका वीणा देव, लेखिका उर्मिला विश्‍वनाथ कराड तथा अमेय प्रकाशन के उल्हास लाटकर ने विमोचन किया।

विजया वाड ने आगे कहा, दोनों पुस्तक देखने के बाद बहिणाबाई की याद आती है। घर-परिवार से समय निकालकर जिस साहित्य का निर्माण लेखिका ने किया है वह अप्रतिम है। ऐसे साहित्य निर्माण में सबसे पहले मणुष्य को जोडकर उनके अनुभव लेने पड़ते है। यहां लेखिका ने उसी अनुभव को पुस्तक के रूप में पिरोकर विश्‍व को सुंदर देन दी है।

वीणा देव ने कहा, भाषा का प्रवाह, उचित शब्दों के प्रयोग और भाषा सामर्थ्य प्रगल्भ रूप में दिखाई देता है। वर्तमान पिढ़ी को अध्यात्मिक संस्कार देना जरूरी है। ऐसे पुस्तकों के माध्यम से संयम, संत प्रवृत्ती तथा समाज सेवा करनेवाले व्यक्तियों का दर्शन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। कुल मिलकर यहीं कह सकते है लेखिका का संपूर्ण अस्तित्व मानव निर्माण प्रक्रिया से जुडी है। उन्होंने परिवार के साथ समाज को सब कुछ अच्छा दिया है।

लेखिका उर्मिला विश्‍वनाथ कराड़ ने कहा, जीवन की राह पर चलते हुए तत्वज्ञानी, चिंतनशील, अध्यात्मिक क्षेत्र के विभिन्न विभूतियां मिले। उनके आशिर्वाद से आज पुस्तक का निर्माण हुआ है।

मुझे महान कीर्तनकारों का आशीर्वाद मिला। एमआइटी के चलते कई बड़े लोगों के संपर्क आना हुआ। जिसके परिणाम स्वरूप मेरे जीवन को अलग दिशा मिली। इसी अनुभवों को पुस्तक रूप में रचा है। चाहे वह व्यक्तिचित्र हो या कविता संग्रह हो।

डॉ.विश्‍वनाथ दा कराड ने कहा, मुझे ज्ञानेश्‍वर का जो कुछ परिचय हुआ है, उससे कविता पर टिप्पणी करने का मुझे थोडा बहुत अधिकार है। हमारे जीवन में शेलारमामा से लेकर डॉ. रघुनाथ माशेलकर तक कई व्यक्तियों का परिचय हुआ। स्वामी विवेकानंद यह हमारे आदर्श है। २१वीं सदी में भारत ही विश्‍व में ज्ञान का दालान बनकर उभरेगा।

उल्हास लाटकर ने अपनी प्रस्तावना में कहा, इस पुस्तक में वारकरी संप्रदाय के ८ व्यक्तिचित्र तथा कविताओं के पुस्तक में ३७ कविताओं का समावेश है। वर्ष 1989 में पहली पुस्तक का रचने के बाद लेखिका की यह पांचवी पुस्तक है।

कार्यक्रम का सूत्रसंचालन व आभार प्रदर्शन प्रा. गौतम बापट ने किया।