नाउम्मीदी के बीच उम्मीद की किरण…फिर किसान और सरकारी नुमाइंदे बैठे साथ-साथ, वार्ता पर लगी नजर    

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : किसानों और केंद्र सरकार के बीच  विज्ञान भवन में आज शुक्रवार को फिर वार्ता हो रही है। अंतहीन समझे जा रहे सिलसिले के अंत की फिर शुरुआत। देश को लगता नहीं, पर उम्मीद है कि गतिरोध टूट सकता है, क्योंकि सरकार के तेवर भी सामने आ चुके हैं और किसान संगठन सुप्रीम कोर्ट तथा पुलिस की प्रतिक्रिया भी जान चुके हैं।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार है, जब अपनी मांगों को लेकर किसान इतनी बड़ी संख्या में सड़क पर डटे हैं। इससे पहले शायद ही कभी इतनी बड़ी संख्या में किसानों को एकजुट होकर सरकार को चुनौती देते देखा गया होगा। नए कृषि कानूनों से नाराज उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा समेत अन्य राज्यों से आए किसान अब भी दिल्ली की सीमाओं को घेरे बैठे हैं और किसी भी हद तक जाकर तीनों नए कृषि कानूनों को वापस कराना चाहते हैं।

आज भी शुक्रवार को शुरुआत में झटका देते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि हमें इससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। सरकार का रवैया थोड़ा और सकारात्मक होगा तो बेहतर हो सकता है। सरकार ने जो प्रस्ताव दिया था उसमें पुराने प्रस्ताव से थोड़ा फर्क था, इसीलिए वह प्रस्ताव हम आमसभा में ले गए थे। चर्चा के बाद उन लोगों ने उसे मानने से इनकार कर दिया। सरकार को आंदोलन के मूड को समझना चाहिए और उसके अनुसार काम करना चाहिए।  26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर घोषित किसानों की रैली के बारे में हन्नान मोल्लाह ने कहा कि हम प्रोग्राम को बदल नहीं सकते। घोषित कार्यक्रम के अनुसार रैली की जाएगी।

बता दें कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ में दिल्ली की सीमाओं पर लगातार 58वें दिन भी किसानों का हल्लाबोल जारी है। कृषि कानूनों पर कोई समाधान नहीं निकलने से घमासान अब भी बरकरार है। ऐसे में किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच इस वार्ता के काफी मायने हैं। इसके पहले सरकार की तरफ से कहा गया था कि 1.5 साल तक कानून के क्रियान्वयन को स्थगित किया जा सकता है। इस दौरान किसान यूनियन और सरकार बात करके समाधान ढूंढ सकते हैं, लेकिन किसान अड़े हुए हैं, वे तीनों कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर कानून बनाने की मांग से नीचे उतरने को तैयार ही नहीं हैं।