पुस्तक मेला : पुस्तकप्रेमियों में बढ़ा उत्साह और जुनून

नई दिल्ली (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेला जैसे जैसे अपने आखिरी पड़ाव की तरफ बढ़ रहा है पुस्तकों के लिए पाठकों का उत्साह और जुनून बढ़ता जा रहा है, पुस्तक प्रेमी अपनी पसंद की किताबें खरीदने के लिए स्टालों पर उमड़ रहे हैं। राजकमल प्रकाशन के स्टाल जलसाघर पर पुस्तकप्रेमी अपनी पसंद की पुस्तकों के साथ अपने चेहते कलमकारों से भी रूबरू हो रहे हैं । सातवें दिन राजकमल प्रकाशन के जलसाघर पर लेखक से मिलिए सत्र में लेखक वीरेन्द्र कुमार बरनवाल की पुस्तक ‘मुस्लिम नवजागरण’ और अकबर इलाहाबादी का ‘गांधीनामा’ से दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी द्वारा अंश पाठ किया गया।

हिंदी में संभवत: यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठिभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। दूसरे सत्र के कार्यक्रम में ‘मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं’,नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखिका ऐलिस मुनरो की कहानियों का हिंदी अनुवाद का लोकार्पण आलोचक वीरेन्द्र यादव, विकास कुमार झा, आनंद यशपाल एवं अशोक महेश्वरी द्वारा किया गया। इस अवसर पर कनाडा दूतावास से बर्नार्ड फ्रांसिस मौजूद थे, जिन्होंने कनाडा दूतावास का सन्देश पढ़ कर सुनाया।

तीसरे सत्र में लेखक से मिलिए कार्यक्रम में 2018 का बहुचर्चित उपन्यास रेत-समाधि के संदर्भ में गीतांजलि श्री से वीरेन्द्र यादव ने बातचीत। यह उपन्यास हर साधारण औरत में छिपी एक असाधारण स्त्री की महागाथा तो है ही संयुक्त परिवार की तत्कालीन स्थिति, देश के हालात और सामान्य मानवीय नियति का विलक्षण चित्रण भी है। और है एक अमर प्रेम प्रसंग व रोजी जैसा अविस्मरणीय चरित्र। कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज में चलते हैं।

लेखक से मिलिए कार्यक्रम के चौथे सत्र में प्रसिद्ध इतिहासकार सुधीर चंद्र की पुस्तक ‘गांधी : एक असम्भव सम्भावना’ एवं गांधी के जीवन दर्शन एवं वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता विषय पर आलोचक वीरेन्द्र यादव ने बातचीत की। लेखक सुधीर चन्द्र ने कहा ‘1947 के बाद ही भारतीय समाज में बुराई पनपने लगी थी और आज वो बुराइयां विकराल रूप धारण कर चुकी हैं। गांधी अगर आज जिन्दा होते तो बहुत विचलित होते। आलोचक वीरेन्द यादव ने कहा ‘लेखक सुधीर चन्द्र गांधी के सन्दर्भो को व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हैं।’

पाचवें सत्र में लेखक हृषिकेश सुलभ की पुस्तक ‘वसंत के हत्यारे’ पर लेखक एवं ब्लॉगर प्रभात रंजन ने बातचीत की। वसंत के हत्यारे की कहानियां हिंदी की यथार्थवादी कथा -परंपरा का विकास प्रस्तुत करती हैं। इन कहानियों में भारतीय समाज की परंपरा, जीवनदृष्टि, समसामियक यथार्थ और चिंताओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ बुराईयों और विसंगतियों का भी चित्रण है। आगे के सत्र में लेखक विनय कुमार का कविता संग्रह ‘यक्षिणी’ एवं लेखिका अनामिका का कहानी संग्रह ‘पानी को सब याद था’ का लोकार्पण एवं कविता पाठ किया गया। आज के अंतिम सत्र में शरद पगारे द्वारा उनकी पुस्तक ‘गुलारा बेगम’ से अंशपाठ किया गया। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें इतिहास की अल्पज्ञात नायिका गुलारा की खोज कर जहांगीर -शाहजहांकालीन युग के जीवन को जीवंत किया गया है।