गुपकार में दरार… महबूबा ने गठबंधन से कर लिया किनारा, बैठक में भाग नहीं लेने से घाटी में छटपटाहट

श्रीनगर. ऑनलाइन टीम : जम्मू-कश्मीर में बहुत उम्मीदों के साथ गुपकार का गठन किया गया था। इसके अस्तित्व में आते ही स्थानीय लोगों को प्राथमिलता देने की पुरजोर मांग उठी। गुपकार समूह, छह राजनीतिक दलों का वह समूह बना जो जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए लड़ाई लड़ने को उठ खड़ा हुआ। इस समूह का गठन 22 अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला के गुपकार रोड स्थित आवास पर हुई बैठक में किया गया था। गुपकार समूह ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को असंवैधानिक करार देते हुए इसकी बहाली के लिए संघर्ष करने का ऐलान किया था।

इस समूह में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के अलावा कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस, जम्मू कश्मीर अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस शामिल हैं। इस समूह के गठन का उद्देश्य जम्मू कश्मीर का पुराना दर्जा बहाल करने के लिए संयुक्त रूप से केंद्र सरकार पर दबाव बनाना था, लेकिन अब लगता है कि गुपकार में दरार आ गई है।  पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने डीडीसी चुनाव के बाद गुपकार गठबंधन की बैठक में शामिल नहीं हुईं। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने गुपकार से किनारा कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक, यह बैठक चुनावों के परिणाम पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी लेकिन मैसेज मिलने के बाद भी वह बैठक में शामिल नहीं हुईं।

दरअसल, डीडीसी चुनावों के परिणाम आने के बाद गुपकार के चीफ फारूक अब्दुल्ला की तरफ से नेताओं की एक बैठक बुलाई गई थी। इसमें आगे की रणनीति पर चर्चा होनी थी। इसके लिए महबूबा मुफ्ती को मैसेज भी किया गया लेकिन वह बैठक में शामिल नहीं हुईं। महबूबा मुफ्ती की तरफ से नेताओं की बात का कोई जवाब नहीं दिया गया।
इस मामले पर गुपकार के किसी नेता का बयान नहीं आया, लेकिन बताया जा रहा है कि पीडीपी के यूथ नेता वाहिद परा को एनआईए ने गिरफ्तार किया है। इसके अलावा पीडीपी के दो और नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी की तरफ से कार्रवाई की गई है। इसी बात से महबूबा खफा हैं। इसके बाद उन्होंने गुपकार से किनारा कर लिया। सूत्रों का कहना है कि फारूक अब्दुल्ला की तरफ से भी महबूबा मुफ्ती से बात करने का प्रयास किया गया लेकिन वह बात तक करने के लिए नहीं आईं।

नि:संदह गुपकार गठजोड़ अब एक औपचारिक गठबंधन बन गया है। आज घाटी की पूरी राजनीति अलगाववादी शिकंजे में है। घाटी के लगभग सभी प्रमुख नेता सभी पार्टियां घूम चुके हैं। मुफ्ती मोहम्मद सईद तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और कांग्रेस का रिश्ता शेख अब्दुल्ला और नेहरू के रिश्तों जैसा ही रहा। कभी नरम तो कभी गरम। मुफ्ती जब कांग्रेस से टूटे तो करीब दस साल तक पहले वीपी सिंह के साथ और फिर जनता दल के घटकों में भटके। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) बनवाकर दे दी। उन्होंने सोचा था कि इससे नेकां का क्षेत्रीय एकाधिकार टूटेगा और वहां लोकतंत्र इसी मुख्यधारा की स्पर्धा से सिरे चढ़ेगा, पर हुआ उल्टा। दोनों दल अलगाव की स्पर्धा में जुट गए।

अब फिर अलगाव की बात सामने आ रही है। महबूबा मुफ्ती के तेवर से घाटी में नई सुबुगाहट है, देखना होगा कि ऊंट अब किस करवट बैठता है। फिलहाल भाजपा के इरादे बुलंद हैं और गुपकार में बेचैनी।