नाशिक : Crime News | नाशिक-त्रयंवकेश्वर रोड स्थित एक होटल में उच्च शिक्षित वधु-वर का विवाह सम्मेलन रविवार की शाम संपम्न्न हुई. जाति पंचायत के पंचों द्वारा डॉक्टर वधु-वर की शादी के बाद कौमार्य की जांच (virginity test) किए जाने की शिकायत महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति को मिली थी. (Crime News)
इसके अनुसार अंनिस के कार्यकर्ताओं ने त्रयंवकेश्वर पुलिस स्टेश्न में शिकायत दर्ज कराई थी. इस शिकायत के आधार पर पुलिस इंस्पेक्टर संदीप रणदिवे ने उक्त होटल मालिक को नोटिस भेजा है. नोटिस में कहा गया है कि किसी तरह की अनूचित घटना होने पर होटल को जिम्मेदार माना जाएगा.
इसके बाद रविवार की शाम सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर संदीप रणदिवे अपने सहकर्मियों के साथ विवाह स्थल पर पहुंचे. कौमार्य जांच के आरोप की पड़ताल कर संबंधित लोगों का बयान लिया गया. लेकिन पता चला कि ऐसी कोई जांच नहीं कराई गई है. उन्होंने बताया कि जाति पंचायत के पंच कान पर हाथ रखकर ऐसी जांच नहीं होने देते है. पुलिस द्वारा कानून का पाठ पढ़ाए जाने के बाद इस तरह का कौमार्य जांच नहीं किए जाने और नहीं करने का लिखित भरोसा दिया गया है.
लेकिन इस समाज के कई लोगों ने इस तरह की शिकायत की है. जाति पंचायत के दबाव में वे सामने नहीं आते है. लेकिन महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने ऐसे लोगों से फिर से अपील कर कहा है कि इस समस्या पर लगाम लगाई जाएगी. समिति के कार्यकर्ता क्रूर प्रथा के खिलाफ समाज में फिर से जनजागृति, परामर्श देने का प्रयास किया. इसमें पुलिस की भी मदद मिली है. संगठन की तरफ से पुलिस के प्रति आभार जताते हुए उनका स्वागत किया गया.
पुलिस इस मामले में ठीक से ध्यान दे इसके लिए विधानसभा में उपसभापति नीलम गोर्हे ने हस्तक्षेप किया था और पुलिस को निर्देश दिए थे. इस मुहिम में डॉ. टी आर गोराणे, कृष्णा चांदगुडे, वकील समीर शिंदे, नितिन बागुल, महेंद्र दातरंगे, कृष्णा इंदीकर, संजय हराले, दिलीप काले आदि कार्यकर्ता शामिल हुए थे. कार्यकर्ताओं ने कहा कि अंनिस का जाति पंचायत के खिलाफ जारी लड़ाई की यह जीत है.
क्या होता है कौमार्य जांच
आज भी एक समाज में शादी के बाद वधू के कौमार्य की जांच की जाती है. जाति पंचायत द्वारा दिए गए सफेद वस्त्र पर वर-वधू सोते है. उसमें खून का दाग लगने पर शादी को मान्य किया जाता है. ऐसा नहीं होने पर शादी को अमान्य करार दिया जाता है. ऐसी वधू के साथ मारपीट करके उसके अभिभावक को सजा और भारी आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है. दंड की रकम जमा नहीं करने पर परिवार को बेदखल कर दिया जाता है. राज्य सरकार इस तरह की क्रूर प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास कर रही है. लेकिन परंपरा के नाम पर स्त्री के चरित्र पर सवाल उठाया जाता हे और मानव अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है.