नई दिल्ली: समाचार ऑनलाइन- काफी लंबे इंतजार के बाद अब इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (सेकंड एमेंडमेंट) बिल, 2019 के माध्यम से इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 (कोड) में आवश्यक संशोधन करने संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा आज यह निर्णय लिया गया है. इसके प्रभाव में आ जाने से कंपनी के पूर्व प्रमोटर्स के अपराधों के लिए उसके नए खरीदारों के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस नहीं चलाया जाएगा.
इस प्रस्ताव को स्वीकृत करने का मुख्य उद्देश्य लक्ष्य कोड के उद्देश्यों की पूर्ति करना व व्यवसाय में अधिक सरलता सुनिश्चित करने के लिए दिवाला समाधान प्रक्रिया में आ रही विशेष दिक्कतों का समाधान करना है.
क्या होंगे फायदें
>> कोड में बदलाव या संशोधन से बाधाओं का हल मिलेगा, सीआईआरपी ठीक होगी और अंतिम विकल्प वाले फंडिंग के संरक्षण से वित्तीय संकट का सामना कर रहे सेक्टरों में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा.
> कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) की शुरूआत करने से पहले होने वाली गड़बड़ियों की रोकथाम के लिए व्यापक वित्तीय कर्जदाताओं के लिए अतिरिक्त आरंभिक सीमा शुरू की गई है, जिनका प्रतिनिधित्व एक अधिकृत प्रतिनिधि करेगा.
>> कॉरपोरेट कर्जदार के व्यवसाय का आधार कमजोर न पड़े और उसका व्यवसाय लगातार चलता रहे, इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा. इसके लिए यह स्पष्ट किया जाएगा कि कर्ज स्थगन अवधि के दौरान लाइसेंस, परमिट, रियायतों, मंजूरी आदि को न तो समाप्त अथवा निलंबित या नवीकरण नहीं किया जा सकता है.
>> IBC के अंतर्गत कॉरपोरेट कर्जदार को संरक्षण दिया जाएगा. इसके तहत पूर्व मैनेजमेंट/प्रमोटरों द्वारा किए गए अपराधों के लिए सफल दिवाला समाधान आवेदक पर कोई क्रिमिनल केस नहीं किया जाएगा.
प्रस्ताव की डिटेल
इस संशोधन विधेयक का उदेश्य धारा 5 (12), 5 (15), 7, 11, 14, 16 (1), 21 (2), 23 (1), 29 ए, 227, 239, 240 में संशोधन करने के साथ-साथ दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 2016 (संहिता) में एक नई धारा 32ए को शामिल करना है.