अब नेपाल की उथल-पुथल में भारत का हाथ दिख रहा चीन को,  लगाया जासूसी का आरोप 

काठमांडू. ऑनलाइन टीम : नेपाल सरकार को अपने इशारों पर नचाने वाला चीन अपनी दाल न गलती देख भारत पर नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा रहा है। उसका कहना है कि भारत ने अपने खुफिया एजेंटों को नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं पर नजर रखने के लिए भेजा है। ये भारतीय जासूस चीनी मंत्री और नेपाली नेताओं के बीच होने वाली बातचीत की भी जासूसी कर रहा है। चाहे भूतकाल हो या वर्तमान काल भारत नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने वाला सबसे शक्तिशाली विदेशी ताकत है।’

बता दें कि नेपाल की भारत के साथ दक्षिणी सीमा के उलट नेपाल-चीन की सीमा पहाड़ों से घिरी है, जिससे दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क सीमित है। भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहे नेपाल में चीन  अपनी पकड़ मजबूत करने का दांव खेलता रहा है। इसलिए नेपाल में बदली हुई परिस्थितियों से इतना घबराया हुआ है कि भारत पर जासूसी करने का आरोप लगा रहा है।

चीनी विदेश मंत्रालय ने नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के परस्पर विरोधी गुटों से सोमवार को यह भी अनुरोध किया कि वे अपने विवाद को समुचित तरीके से संभालें और राजनीतिक स्थिरता का प्रयास करें। एक मित्र और करीबी पड़ोसी होने के नाते हम यह उम्मीद करते हैं कि नेपाल में सभी पक्ष राष्ट्रीय हित और संपूर्ण परिदृश्य को ध्यान में रखेंगे और आंतरिक विवाद को समुचित तरीके से सुलझाएंगे तथा राजनीतिक स्थिरता और राष्ट्रीय विकास को हासिल करने का प्रयास करेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘सीपीसी स्वतंत्रता,पूर्ण समानता, परस्पर समान और गैर-हस्तक्षेप की विशेषता वाले अंतर-दलीय संबंधों के सिद्धांत को बढ़ावा देती है।’

गौरतलब है कि पचास-साठ के दशक से ही चीन ने नेपाल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध बढ़ाना शुरू कर दिया था।  अस्सी के दशक के मध्य में चीन ने नेपाल में राजमार्ग निर्माण की गतिविधियां प्रारम्भ कर दी।  नब्बे के दशक के मध्य में, चीन की सरकार ने नेपाल को आर्थिक और तकनीकी सहयोग कार्यक्रम के अंतर्गत काफी अनुदान प्रदान किया था।  वर्ष 2005 में चीन ने नरेश ज्ञानेन्द्र को भारी मात्रा में शस्त्रों की आपूर्ति की और इसी वर्ष भारत के विरोध के बावजूद नेपाल ने चीन को सार्क में शामिल करने का समर्थन भी किया। नेपाल के प्रति चीन की यह सक्रिय नीति इस उद्देश्य से प्रेरित रहा कि दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को कम किया जाये।

नेपाल की चीन पक्षीय नीति नरेश महेन्द्र के काल से ही जारी रही, लेकिन माओवादी शासन काल में भारत की नेपाल में सक्रिय भूमिका को संतुलित करने के लिए चीन को खुला आमंत्रण दिया गया। नेपाल द्वारा चीन को भारत के लिए एक तुरुप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल करना कोई नई बात नही है, जैसे कि पहले भी देखा जा चुका है कि वर्ष 2005 में नरेश ज्ञानेन्द्र को चीन से शस्त्रों की आपूर्ति हुई थी, जबकि भारत एवं अमेरिका ने इसका विरोध किया था।