मनपा की तिजोरी की चाबियां संभालने वाली स्थायी समिति के 16 में से आठ सदस्यों का कार्यकाल 29 फरवरी को पूरा होने जा रहा है। इसमें संख्याबल के हिसाब से सत्तादल के 10, राष्ट्रवादी कांग्रेस के चार, शिवसेना और भाजपा समर्थित निर्दलीयों के मोर्चा के एक- एक सदस्य हैं। इनमें से सत्तादल भाजपा के छह और राष्ट्रवादी कांग्रेस के दो सदस्यों का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। इसमें मौजूदा सभापति विलास मडिगेरी, पूर्व सभापति ममता गायकवाड, सागर आंगोलकर, राजेंद्र गावडे, करुणा चिंचवडे, नम्रता लोंढे और राष्ट्रवादी काँग्रेस की गीता मंचरकर, प्रज्ञा खानोलकर शामिल हैं। 20 फरवरी की सर्वसाधारण सभा में रिक्त होने वाली आठ सीटों पर नए सदस्यों की नियुक्ति की जानी थी। मगर महिला अत्याचार की घटनाओं पर छिड़ी बहस के दौरान सत्तादल और विपक्ष के बीच विवाद छिड़ा एवं सभा स्थगित कर दी गई। सभा स्थगन को सत्तादल भाजपा की सियासी चाल बताया जा रहा है। सभा स्थगन के पीछे स्थायी समिति में नियुक्त किये जाने वाले सदस्यों के नामों को लेकर एकमत नहीं हो सकने और मनपा आयुक्त के करवृद्धि के प्रस्ताव को अपरोक्ष मंजूरी दिलाने की कोशिश जिम्मेदार बताई जा रही है।
बताया जा रहा है कि सत्तादल भाजपा के प्रदेश स्तर से उन छह सदस्यों के नामों की लिस्ट आ गई है जिनकी नियुक्ति स्थायी समिति सदस्य के तौर पर की जानी है। हालांकि इनमें दो नाम मनपा के कामकाज की गाड़ी हांक रहे कारभारियों के गले नहीं उतर रहे है। इसलिए सर्वसाधारण सभा ही स्थगित कर दी गई। अब 26 फरवरी को स्थगित सभा होनी है जिसमें स्थायी समिति के नए आठ सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। बहरहाल सत्तादल भाजपा में स्थायी समिति की छह सीटों को लेकर खासा घमासान मचा हुआ है। पार्टी के 20 से भी ज्यादा नगरसेवक ऐसे हैं जिन्हें अब तक किसी अहम पद पर मौका नहीं मिला है। उनकी नाराजगी का असर मनपा और सभागृह के कामकाज पर लगातार देखा जा रहा है। अब स्थायी समिति सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर यह नाराजगी सतह पर पहुंचने के आसार नजर आ रहे हैं। इस नाराजगी के चलते आगामी मनपा चुनाव के मद्देनजर सत्तादल भाजपा में दोफाड़ जैसे हालात अभी से बनते नजर आ रहे हैं।