‘इस’ ग्रह पर होती है हीरों की बारिश, लेकिन हवाएं इतनी तेज कि धरती का बड़ा पेड़ भी जड़ से उखड़ जाए

नई दिल्ली. ऑनलाइन टीम : हमारे सौरमंडल में जितने भी ग्रह हैं, उन सभी में कुछ न कुछ रहस्य छुपे हुए हैं।  चार ग्रह तो ऐसे हैं, जिन्हें ‘गैस दानव’ कहा जाता है, क्योंकि वहां मिटटी-पत्थर के बजाय अधिकतर गैस हैं और इनका आकार बहुत ही विशाल है। वरुण (नेपच्यून) भी इन्हीं ग्रहों में से एक है। पृथ्वी से अत्यधिक दूरी के कारण वरूण (नेप्च्यून) ग्रह को नग्न आंखों से आकाश में नहीं देखा जा सकता, लेकिन इसकी विशेषताएं हमेशा आकर्षित करती हैं।  कहा जाता है कि वरुण के वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के कारण वहां हीरे की बारिश भी होती है। अगर इंसान कभी इस ग्रह पर पहुंच भी जाए तो इन हीरों को बटोर नहीं पाएगा, क्योंकि अत्यधिक ठंड के कारण वो वहीं पर जम जाएगा।

इसे सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा पूरी करने में 165 पृथ्वी वर्ष लगते हैं। यानी पृथ्वी के 165 साल के बराबर वरूण (नेप्च्यून) का एक वर्ष होता है। इस ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में 27 गुना अधिक शक्तिशाली है। मीथेन गैस की उपस्थिति के कारण इस ग्रह का रंग गहरा नीला दिखता है। यह ग्रह जितना हैरतअंगेज है, उतना ही हैरतअंगेज इसका एक चंद्रमा भी है।

इस ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा है, जो वरुण ग्रह के अन्य चंद्रमाओं की दिशा अनुसार न घूमकर विपरीत दिशा में घूमता है, यह सौरमंडल का एकमात्र ऐसा चंद्रमा है, जिसकी एक प्रतिगामी कक्षा है। इसके कुल 13 चंद्रमा हैं। बृहस्पति के बाद सौर मंडल में इस ग्रह का दूसरा सबसे बड़ा गुरुत्वाकर्षण बल है। वरूण ग्रह की सतह का औसत तापमान  -214 डिग्री सेल्सियस रहता है, इसी कारण इस ग्रह को ठंडा ग्रह कहा जाता है।  इस ग्रह पर हवा इतनी तेज है कि अगर ये पृथ्वी पर चल जाए तो विशाल वृक्षों को भी जड़ से उखाड़ सकती है। इन हवाओं की गति 1200 MPH तक होती है।

वरुण हमारे सौरमंडल का पहला ऐसा ग्रह था, जिसके अस्तित्व की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही गणित के अध्ययन से की गई थी और फिर उसे उसी आधार पर खोजा गया। यह तब हुआ, जब अरुण की परिक्रमा में कुछ अजीब गड़बड़ी पाई गई।  पहली बार 23 सितंबर, 1846 को इसे दूरबीन से देखा गया था और इसका नाम नेपच्यून रख दिया गया। दरअसल, नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे। ठीक यही स्थान भारत में वरुण देवता का रहा है, इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है। रोमन धर्म में नेपच्यून देवता के हाथ में त्रिशूल होता था, इसलिए वरुण का खगोलशास्त्रिय चिन्ह ♆ ही है।