चिट्ठी से खुलासा… नेपोलियन से खौफ खाती थी दुनिया, पर वह खुद कैसर से खौफजदा था

चेन्नई. ऑनलाइन टीम : नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का महान बादशाह था। कद-काठी में छोटे नेपोलियन ने अपनी बहादुरी से दुनिया के एक बड़े हिस्से पर अपना राज क़ायम किया था। आज की तारीख़ में भी बहुत कम ऐसे लोग हैं, जो नेपोलियन की ऊंचाई तक तक पहुंचे। नेपोलियन के सैनिक उससे मोहब्बत करते थे, तो दुश्मन उससे ख़ौफ़ खाते थे, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि खुद नेपोलियन अपनी बीमारी से खौफ खाता था और अंत भी इसी खौफ में हुई। कैंसर ने उसकी जान ले ली। इसकी तस्दीक 1821 की लिखी उस चिट्ठी से होती है, जिसे अटलांटिक सागर में स्थित ब्रिटिश ओवरसीज आईलैंड सेंट हेलेना से चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) भेजा गया था।  दरअसल, अंग्रेज नेपोलियन की ताकत और हौसले से डरे हुए थे। इसलिए, बोनापार्ट के निधन की पुष्टि के लिए मद्रास के तत्कालीन गवर्नर मेजर जनरल सर थॉमस मुनरो को पत्र लिखा गया था।

सेंट हेलेना सरकार के एच लोवे द्वारा हस्ताक्षरित 10 मई, 1821 को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि नेपोलियन बोनापार्ट ने 5 मई को एक बीमारी के बाद शाम छह बजे से लगभग 10 मिनट पहले दम तोड़ दिया था। बीमार रहने के दौरान नेपोलियन की देखरेख चिकित्सा सहायक प्रोफेसर एंटोमार्ची करते थे। इस ऐतिहासिक पत्र को अभिलेखागार और ऐतिहासिक अनुसंधान, एगमोर के आयुक्तालय में रखा गया है। इसे आजतक केवल एक बार साल 2005 में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया गया था।

दस्तावेज़ के अनुसार, नेपोलियन के शरीर को पोस्टमॉर्टम के लिए उसकी मृत्यु के अगले दिन उसके परिवार के सदस्यों की सहमति से द्वीप पर पांच प्रमुख चिकित्सा अधिकारियों की उपस्थिति में खोला गया था। इसमें नेपोलियन के खास प्रोफेसर एंटोमार्ची भी शामिल थे। इसमें पाया गया कि उनके पेट में स्थित जठर ग्रंथि के पास कैंसर था। जिसका जहर उनके पेट में घुल रहा था।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेजों को इतना डर था कि उन्होंने चेन्नई के सेंट जॉर्ज फोर्ट में नेपोलियन बोनापार्ट के लिए एक अलग वॉल्यूम बनाकर रखा हुआ था। यहां बोनापार्ट से संबंधित अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों की बारीकी से निगरानी की जाती थी। अंग्रेज उन्हें अपने उपनिवेश के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे।