बंधुता के अभाव से से देश मे अस्थिरता का माहौल

पिंपरी : समाचार ऑनलाइन – सभी संतों, महापुरूषों ने उनके साहित्य और कार्यों के माध्यम से बंधुता का मूल्य प्रस्तुत किया है. धर्मग्रंथों में भी बंधुता की भावना को प्राथमिकता दी गयी है. हालांकि, राजनीतिक आकांक्षाओं और स्वार्थी भावना का अनुसरण करते हुए, अनुयायियों ने महापुरुषों को जातिवाद से प्रतिबंधित करके भाईचारे को भंग करने का काम किया है. हम स्वतंत्रता, समानता पर बोलते हैं मगर जिसका मूल है उस भाईचारे को हमने अलग रखा है. आज समाज में बंधुता की कमी है और इस कमी के कारण देश में अस्थिरता का माहौल बनाया है. अगर हम इस स्थिति से बाहर निकलना चाहते हैं और देश को एकजुट रखना चाहते हैं, तो हमें भाईचारा बनाए रखने की जरूरत है. यह प्रतिपादन अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन के पूर्व अध्यक्ष और 21वें राष्ट्रीय बंधुता साहित्य संमेलन के उदघाटक डॉ. श्रीपाल सबनीस ने किया.
राष्ट्रीय बंधुता साहित्य परिषद और भगवान महावीर शिक्षण संस्था की ओर से भोसरी के भैरवनाथ माध्यमिक विद्यालय मे आयोजित 21वें राष्ट्रीय बंधुता साहित्य संमेलन और प्रकाश पगारिया व्याख्यानमाला के उदघाटन समारोह में डॉ. सबनीस ने उक्त राय दी. इस मौके पर राष्ट्रीय बंधुता साहित्य संमेलन के अध्यक्ष डॉ. अशोककुमार पगारिया, परिषद के संस्थापक बंधुताचार्य प्रकाश रोकडे, संमेलन के स्वागताध्यक्ष कृष्णकुमार गोयल, नई दिल्ली के ऑल इंडिया जैन कॉन्फरन्स के अध्यक्ष पारस मोदी, संगठक डॉ. विजय ताम्हाणे, संयोजक प्राचार्य डॉ. अशोक शिंदे, सहसंयोजक महेंद्र भारती, प्राचार्य रामचंद्र जगताप, कवि चंद्रकांत वानखेडे, संगीता झिंजुरके, पत्रकार शिवाजीराव शिर्के आदि उपस्थित थे.
समारोह की शुरुवात राष्ट्रीय एकात्मता संदेश यात्रा के जरिए हुई. इसमें साहित्यिकार, कलाकार, शिक्षक और विद्यार्थी बडी संख्या में सहभागी हुये थे. ‘बंधुतेच्या विचारधारा’ नामक अध्यक्षीय भाषण पुस्तक, ‘मूल्यवैभव’ संमेलन स्मरणिका, ‘पवनेचा प्रवाह’ संमेलन विशेषांक, और डॉ. अशोक शिंदे लिखित ‘अक्षरसाधना’ पुस्तक का विमोचन किया गया. उसके बाद कवि चंद्रकांत वानखेडे ने ‘जाऊ कवितेच्या गावा’ यह कर्यक्रम प्रस्तुत किया. भोसरी के टागोर शिक्षण संस्था के टागोर माध्यमिक विद्यालय को ‘श्यामची आई पुरस्कार’ देकर नवाजा गया. रमेश पाचंगे ने चौघडा वादन से उपस्थित लोगों का मने जीत लिया.
डॉ. श्रीपाल सबनीस ने आगे कहा, भारत के लोकतंत्र का ग्रंथ संविधान है, और इसका मूल स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे और सामाजिक न्याय के आदर्श पर आधारित है. हालाँकि, हमने इन मूल्यांकन सूत्रों को एक ही स्तर पर स्वीकार नहीं किया है. बंधुता का मूल्य बाहर निकाल गया है. कोई भी राजनेता, साहित्यकार या सामाजिक कार्यकर्ता बंधुता को प्राथमिकता नहीं देता. वास्तव में, बंधुता सबका मूल है, समाज और देश के सभी सवालों का जवाब इसके माध्यम से मिलता है. बंधुता के सिद्धांत को कुतिशिलात कि जोड देना आवश्यक है. जबकि बंधुत याने भाईचारे के मूल्य को राष्ट्रीय स्तर पर जड़ें जमाने की जरूरत है, हमें भाईचारे के मूल्यो के सिध्दांत का स्वीकार करना चाहिए.”
डॉ. अशोककुमार पगारिया ने कहा, “बंधुता का विचार निसर्ग मे सारी तरफ है. सारा निसर्ग बंधुता के तत्व पर खडा है. मगर, इन्सानियत का इन्सान भुला रहा है इसलिये   बंधुता का अस्त होने का चित्र देखने को मिल रहा है. समानता और भाईचारे के विचारों के बीच विरोध को दूर करना धार्मिकगुरुओं की जिम्मेदारी है. यद्यपि सभी धर्मो को सीमाएँ हैं मगर उन्हें समय के अनुसार बदला जाना चाहिए. क्योंकि समाज में, अगर कड़वाहट को दूर करना है, तो इंसान के बीच बंधुता की भावना को भरना होगा. हमें यह समझने की जरूरत है कि बंधुता का विचार कितना भ्रातृत्वपूर्ण है. साहित्य और समाज एक दूसरे को प्रभावित करते हैं. साहित्य सामाजिक जीवन की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है. इसलिए, समाज के दर्पण के रूप में, साहित्य को बंधुता विचार पोहचाने का काम करना चाहिए.”
पारस मोदी ने कहा, ” समाज मे अच्छे विचार लाने के लिए बंधुता साहित्य संमेलन आवश्यक है. ऐसे संमेलन मे अनेक नये विचार समाज को मिलते है. बंधुता जाती-धर्म-पंथ भुलकर सभी को एक साथ लाती है, यह सुखद है. स्वागतपर भाषण मे कृष्णकुमार गोयल ने कहा, “संत-महात्मा लोगों ने, अपने अपने कालखंड मे रखे हुए बंधुता का विचार  भगवान गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, महात्मा फुले, महात्मा गांधी, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर  आगे लेकर गये. और फिर दुनियाने इसका स्वीकार किया. यह विरासत आने शुरु राखने के लिए हम सब को सहभाग लेना चाहिये. इसके लिए, भाईचारे की कमीया और इसके प्रभावों को समझना महत्वपूर्ण है. बंधुताचार्य प्रकाश रोकडे ने भी अपना मनोगत व्यक्त किया. कार्यक्रम का सूत्रसंचालन शंकर आथरे ने किया. डॉ. अशोक शिंदे ने आभार ज्ञापित किया.