27 करोड़ का खर्च जाया जाने की टिप्पणी से बचने के लिए बीआरटी का अट्टहास

पिंपरी। पुणे समाचार ऑनलाइन

बीते नौ साल से अलग अलग दिक्कतों के चलते अधर में लटकी निगड़ी- दापोडी बीआरटी मार्ग पर कल (शुक्रवार) से बसें दौड़ेंगी। इसी मार्ग पर महामेट्रो द्वारा मेट्रो परियोजना का काम किया जा रहा है। उसी में बीआरटी बसें दौड़ाने का फैसला किये जाने से चिंचवड़ ऑटो क्लस्टर से पिंपरी खरालवाडी तक रोजाना लगनेवाले जाम की समस्या गहन बननी तय है। इन सभी बातों से भलीभांति परिचित रहने के बावजूद पिंपरी चिंचवड़ मनपा का प्रशासन और सत्तादल केवल 27 करोड़ का खर्च जाया जाने के आरोपों, टिप्पणियों से बचने के लिए बीआरटी परियोजना का अट्टहास कर रहा है।

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दिन ब दिन भीषण बनते जा रही ट्रैफिक की समस्या को हल करने और सक्षम सार्वजनिक यातायात व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिहाज से पुणे और पिंपरी चिंचवड़ में बीआरटी परियोजना चलाई जा रही है। पिंपरी चिंचवड़ में इस परियोजना के तहत सबसे पहले विकसित किये गए निगड़ी- दापोडी बीआरटी कॉरिडोर में आज तक बस न दौड़ सकी है। 14.5 किमी का यह बीआरटी मार्ग नौ सालों से अधर में लटका रहा। 2013 में इस मार्ग पर सुरक्षितता के उपाय नहीं किये जाने की शिकायत करते हुए एड हिम्मतराव जाधव ने मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। न्यायालय के आदेशानुसार सुरक्षितता के उपाय करने के बाद तीन तीन बार इस मार्ग पर बस ड्राइव ली गई। हालिया हुई सुनवाई में उच्च न्यायालय ने निगड़ी- दापोडी बीआरटी परियोजना को हरी झंडी दिखाई और दो माह बाद इसकी रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए।
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इसके अनुसार कल इस बीआरटी मार्ग का उदघाटन किया जा रहा है। ज्ञात हो कि इसी मार्ग पर मेट्रो का निर्माण कार्य किया जा रहा है। चिंचवड़ के ऑटो क्लस्टर से पिंपरी खरालवाडी तक बीआरटी मार्ग में ही पुणे- मुंबई हाइवे का आधा हिस्सा बंद कर रखा गया है। इसके चलते पुणे जानेवाली लेन पर एक बस ही चल सकेगी, इतनी ही सड़क बची है। मेट्रो के निर्माण कार्य से पहले ही यहां रोजाना जाम लगा रहता है। यहाँ की यातायात सुचारू बनाने में ट्रैफिक पुलिस के पसीने छूट रहे हैं। इन्हीं हालातों में बीआरटी मार्ग शुरू करने पर ट्रैफिक की समस्या और भीषण बनना तय है। इसके बावजूद बीआरटी का अट्टहास किया जा रहा है। असल में सत्तादल भाजपा और मनपा प्रशासन इस बीआरटी मार्ग पर किये गए 27 करोड़ रुपए का खर्च जाया जाने के आरोपों और टिप्पणियों से बचना चाहता है। मगर इसके लिए शहरवासियों को दिक्कतों में डालना कितना उचित है? यह सवाल उठाया जा रहा है।