‘अपनों’ की नाराजगी भाजपा के लिए बनी चुनौती

पिंपरी : समाचार ऑनलाईन – आगामी विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि पर सत्ताधारी भाजपा के लिए अपने ही नगरसेवकों की नाराजगी किसी चुनौती से कम साबित नहीं होगी। पिंपरी चिंचवड़ मनपा में सत्ता के ढाई साल बीतने के बाद भी सत्तादल के नगरसेवकों की नाराजगी और इस्तीफा सत्र कहीं थमने का नाम नहीं ले रहा। नाराज होकर इस्तीफा देनेवालों की कतार में अब पिंपले निलख प्रभाग में भाजपा की ओर से नगरसेवक चुने गए तुषार कामठे भी शामिल हो गए हैं। बुधवार को उन्होंने मनपा की वृक्ष प्राधिकरण समिति के सदस्य पद से इस्तीफा दिया है।

मनपा में सत्ता परिवर्तन के बाद शुरू से ही भाजपा को अपने नगरसेवकों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। मनपा में महत्वपूर्ण पदों को शहर के नए ‘कारभारी’ विधायकों ने आपस में बांट लिया है। सत्तादल के नगरसेवक रहने के बावजूद न अहम पद मिल रहे हैं, न प्रभाग स्तर के विकास काम और न ही प्रशासन से मान- सम्मान। इसके चलते सत्तादल के नगरसेवकों के एक खेमे में खासी नाराजगी है। यह नाराजगी लगातार खुलकर सामने आती रही है। उसी में तुषार कामठे, संदीप वाघेरे, शत्रुघ्न काटे जैसे कई नगरसेवक खुलकर पार्टी या प्रशासन के खिलाफ भूमिका जाहिर करने से कभी पीछे नहीं हटे।

गत ढाई साल से मनपा में सत्तादल के नगरसेवकों के इस्तीफों का सत्र शुरू है। इसकी शुरुआत वरिष्ठ नगरसेवक शीतल शिंदे ने विधि समिति की सदस्यता से इस्तीफा देकर की। इसके बाद स्थायी समिति अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान मौजूदा महापौर राहुल जाधव, शीतल शिंदे ने स्थायी समिति की सदस्यता से इस्तीफा दिया। विधि समिति की चाह रखने के बाद भी जबरन क्रीड़ा समिति में नियुक्ति से नाराज़ अश्विनी बोबडे ने नियुक्ति के पांच मिनट में ही इस्तीफे की पेशकश की। इसके बाद वसंत बोराटे ने विधि समिति और आशा शेंडगे ने शहर सुधार समिति की सदस्यता से इस्तीफा दिया।

अब ऐन विधानसभा चुनाव के मुहाने तुषार कामठे ने वृक्ष प्राधिकरण की सदस्यता से इस्तीफा दिया। महापौर राहुल जाधव को उन्होंने त्यागपत्र सौंपा। इसमें उन्होंने व्यक्तिगत कारणों से इस्तीफा देने की बात कही है। व्यक्तिगत कारण से वे इस पद के साथ इंसाफ नहीं कर सकेंगे और न समय दे पाएंगे। इस वजह से इस्तीफा देने की बात कामठे ने कही है। मगर सत्तादल के नेताओं पर उनकी नाराजगी कहीं छिपी नहीं रही है। आनेवाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपने नगरसेवकों की नाराजगी और उनमें बढ़ रहा असंतोष सत्तादल भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं है।