16 साल की बच्ची ने UN को दिखाया आईना, कहा- “लोग मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद है और आप हमें छल रहे हैं”  

समाचार ऑनलाइन: मनुष्य लगातार विकास के नाम पर पर्यावरण का दोहन कर रहा है. जिससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है. पिछले कुछ सालों से हम देख रहे जंगल ख़त्म होने की कगार पर हैं, वही साल भर बहने वाली नदियों के कंठ भी कुछ ही महीनों में सुख रहे हैं. जंगल वीरान हों चुके और कही भीषण जलसंकट से त्राहि-त्राही मची हुई है. स्थिति यह है कि जंगलो में पानी और खाने के अभाव में अब जीव-जन्तु मनुष्यों की बस्तियों की ओर अपना रुख कर रहे है. यह सब प्रकृति को छेड़ने के दुष्परिणाम नहीं तो और क्या है ? पर्यावरण की इन सभी गहराती गंभीर समस्याओं पर आज UN में एक 16 साल की लड़की ने दुनियाभर को नींद से जगाने का काम कर दिखाया है.

अपने दमदार भाषण से विश्व के नेताओं को लिया आड़े हाथों
इसी समस्या के समाधान के लिए सोमवार को दुनिया भर के प्रमुख संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एकत्रित हुए. लेकिन कुछ कह पाता उससे पहले ही सिर्फ 16 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने यहाँ मौजूद सभी देशों के राष्ट्र प्रमुखों को अपने दमदार भाषण से सबकी आँखे खोल दी. ग्रेटा ने अपने भाषण में अप्रत्यक्ष रूप से विश्व के नेताओं को पर्यावरण सुरक्षा के प्रति कड़े कदम न उठाने का जिम्मेदार ठहराया है. यहाँ तक की ग्रेटा संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को भी आड़े लेने से नहीं रुकी.  इसी दौरान वर्तमान में पर्यावरण के नाजुक हालातों को बयान करते-करते वे इतनी भावुक हों गई कि उनकी आँखों से आंसू झलक पड़े. इस भाषण के बाद ग्रेटा आज पूरे विश्व की मीडिया की सुर्ख़ियों में छा गई है.

ग्रेटा ने उच्चस्तरीय जलवायु सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से पहले दुनिया का ध्यान अपने भाषण की ओर आकर्षित किया.

क्या-क्या कहा है ग्रेटा ने…
ग्रेटा ने अपने भाषण में कहा कि, “आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीना. हालांकि, मैं अभी भी भाग्यशाली हूं. लेकिन लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है.”

झलकती आँखों और रुंधे गले से भावुक होते हुए ग्रेटा ने कहा कि, “आपने हमें असफल कर दिया. युवा समझते हैं कि आपने हमें छला है. हम युवाओं की आंखें आप लोगों पर हैं और अगर आपने हमें फिर असफल किया तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे.”

ग्रेटा के मुताबिक, “हम सामूहिक विलुप्ति की कगार पर हैं और आप पैसों और आर्थिक विकास की काल्पनिक कथाओं के बारे में बातें कर रहे हैं. आपने साहस कैसे किया?” ग्रेटा ने कहा कि दुनिया जाग चुकी है और आपको यहां इसी वक्त लाइन खींचनी होगी.

तबाह होने की कगार पर जीवन… सच में कहीं तीसरा विश्वयुद्ध जल संकट पर तो नहीं?
गौरतलब है कि मनुष्य विकास के नाम खेत और जंगलो तक पहुंच चुका है. जहा कभी घने जंगल हुआ करते थे आज वहा सीमेंट कांक्रीट की गगनचुम्बी इमारतें दिखाई देती हैं. पीने के पानी की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि की मीलों चलकर पानी लाना पड़ रहा है. वही जमीन में जल स्तर हज़ार फिट निचे तक जा चुका है. प्रकृति का दोहन इसी गति से होता रहा तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि वो दिन दूर नही की तीसरा विश्वयुद्ध जल संकट को लेकर हों.

आने वाली पीड़ी के लिए संजोना होगा कल
हमें निश्चय करना होगा कि हम हमारी आने वाली पीड़ी को साँस लेने के लिए स्वच्छ वायु, जीने के लिए स्वच्छ वातावरण और उनके लिए प्राक्रतिक सम्पदाएँ छोड़ कर जाए, ना कि उनके लिए मुश्किलों भरे हालत बना कर जाए.

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