मावल फायरिंग: 185 आंदोलनकारी किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस

राज्य सरकार के फैसले के बाद सत्र न्यायालय ने दिया आदेश
पिंपरी : समाचार ऑनलाइन – पवना पाइपलाइन योजना के विरोध में पुणे- मुंबई हाइवे पर किये गए आंदोलन के बाद जिन 185 किसानों पर मुकदमे दर्ज किए गए थे, उन्हें आखिरकार वापस ले लिया गया है। राज्य सरकार ने मावल आंदोलन में किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने का फैसला किया था, जिसके बाद अब सत्र न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसएन सोनवणे ने उपरोक्त आदेश दिया है। जिन किसानों पर मामले दर्ज किए गए हैं उनमें से चार किसानों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में तीन किसानों की मौत हुई थी।
पिंपरी चिंचवड मनपा ने पवना बांध से निगड़ी तक पाइपलाइन बिछाकर पानी लाने की योजना बनाई है। इसका मावल के किसानों ने पुरजोर विरोध किया। 9 अगस्त 2011 को इस योजना के विरोध में मावल के किसान हाइवे पर उतर आए। उनका आंदोलन अचानक से हिंसक हो गया। वाहनों में तोड़फोड़, आगजनी, पुलिस पथराव किए जाने लगे। बिगड़ते हालात पर काबू पाने के लिए पुणे जिला (ग्रामीण) पुलिस ने फायरिंग की। इसमें तीन किसानों की मौत हो गई और 10 किसान घायल हुए। पुलिस पर किये गए पथराव में तकरीबन 50 अधिकारी व कर्मचारी घायल हुए थे।
फायरिंग की वजह से यह आंदोलन पूरे देश में गूंजा। इस आंदोलन के बाद तत्कालीन जिला पुलिस अधीक्षक संदीप कर्णिक का तबादला कर दिया गया और योजना पर रोक लगा दी गई। इस आंदोलन में पुलिस ने 189 किसानों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए। 2012 में राज्य सरकार ने इस मामले की जांच हेतु न्यायालयीन समिति का गठन किया था। 2017 में किसानों के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री से मिलकर उनके खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की मांग की। इसके अनुसार राज्य सरकार ने किसानों पर दर्ज मामले वापस लेने का फैसला किया।
जिला सत्र न्यायालय में इस मामले की सुनवाई में अतिरिक्त सरकारी वकील राजेश कावड़िया ने मुकदमे वापस लेने को लेकर अर्जी दी। इस आंदोलन में भले ही तोड़फोड़, पथराव किया गया हो मगर हर किसान के खिलाफ अपराध साबित करना मुमकिन नहीं है। क्योंकि मौके पर हंगामे की परिस्थिति थी ऐसा एफआईआर में उल्लेखित है। इसमें परोक्ष गवाह नही है, यह भी अदालत को बताया गया और किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने की गुजारिश की गई। इसके अनुसार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसएन सोनवणे ने उक्त आदेश दिया। सत्र न्यायालय के इस आदेश से मावल के किसानों को राहत मिली है।