बाबूगिरी से डर लगता है साहब

पुणे | समाचार ऑनलाइन

गुणवंती परस्ते

हमेशा जनता की सेवा में तत्पर रहनेवाली पुलिस का मेडिकल बिल महीनों-महीनों प्रलंबित रहने की सनसनी खेज बात सामने आयी है। मेडिकल बिल पास नहीं होने की वजह भले ही पुलिस को निधी उपलब्ध नहीं होनी की बात बतायी जाती हो, पर सच्चाई तो यह है कि जब तक बाबू (क्लर्क) को कमिशन देने का वादा नहीं किया जाएगा, तो फाइल ऊपर पहुंचना तो दूर देखा भी नहीं जाएगा। जिस पुलिस की धाक से सभी अपराधी और आम नागरिक डरते हैं, वही पुलिस को अपने बाबू की बाबूगिरी से डर लगता है। अपना मेडिकल बिल पास करवाना है तो 10 से 20 प्रतिशत कमिशन देने के बाद ही बिल पास हो सकता है। यदि अगर बाबू से पंगा ले लिया तो समझों महीनों-महीनों मेडिकल बिल धूल खाता रहेगा।

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मेडिकल बिल पास कराने के लिए देना पड़ता है कमीशन

यह हाल सिर्फ पुणे पुलिस आयुक्तालय का नहीं है, यह हाल पूरे महाराष्ट्र पुलिस का है। रात दिन जनता की सेवा करनेवाला पुलिस अगर बीमार होता है तो आधी जिंदगी उसकी मेडिकल बिल को पाने के लिए चक्कर काटने में चला जाता है। इस चक्कर से बचने के लिए पुलिस थक हारकर कमीशन देने पर मजबूर हो जाता है। पुलिस की अगर बाबू से काफी अच्छी बनती है तो यह बिल 15 से एक महीने के अंदर पास हो जाएगा। जो पुलिसवाला बाबू की नजर में खटक गया तो महीनों से सालों चक्कर काटते रहो मेडिकल बिल पास होनेवाला नहीं है।

सूचना अधिकार में बाहर आयी सच्चाई

पुणे शहर पुलिस हवालदार अनिल गावडे ने इस संबंध में सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी, जिसमें 2016 में पुणे पुलिस आयुक्तालय में 197 पुलिस के मेडिकल बिल प्रलंबित थे। यह मेडिकल बिल प्रलंबित होने का कारण निधी उपलब्ध नहीं होने की बात बतायी गई। सूचना अधिकार में यह बात सामने आयी है कि पुलिस का पास होनेवाला मेडिकल बिल वेतन अनुदान से जुड़ा होता है, उसके लिए दूसरा कोई अनुदान नहीं होता है। मेडिकल बिल यह वेतन अनुदान से खर्च किया जाता है। उसके बावजूद 6 महीने से एक साल से ज्यादा के वक्त तक मेडिकल बिल क्यों प्रलंबित रहते हैं। मेडिकल बिल की फाइल ऊपर पहुंचाने का काम बाबू ही करता है। मेडिकल बिल अगर पुलिस को पास करवाना है तो बाबू से अच्छा व्यवहार बनाकर रखना पड़ता है, यह व्यवहार आर्थिक से जुड़ा होता है।

सत्तादल भाजपा के विधायक का गढ़ ही ‘प्यासा’

साल 2007 में पुलिस का मेडिकल बिल प्रलंबित रहने का मुद्दा विधानसभा में भी गूंजा था, जिसमें पुलिस का मेडिकल बिल प्रलंबित रखनेवाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासन भंग करने की कार्रवाई के आदेश तब उस समय के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा दिए गए थे। पर आज भी परिस्थिती जस की तस है, आज भी पुलिस को मेडिकल बिल पास करवाने के लिए काफी चक्कर काटना पड़ता है। पुणे समाचार की प्रतिनिधी ने इस बारे में बहुत से पुलिस कर्चमारी और अधिकारियों से बात भी की। अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर हमें यही जवाब मिला कि कमीशन देने पर मेडिकल बिल जल्दी पास होता है, जबकि मेडिकल बिल पास होना हमारा अधिकार है। उसके बावजूद 10 से 20 प्रतिशत कमीशन दिए बिना काम नहीं होता। एक पुलिस कर्मचारी और अधिकारी जितना अपनी अनापसनाप डुयुटी से नहीं डरता, जितना वह बाबू की बाबूगिरी से डरता है।

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पुलिस वृंद परिषद में प्रस्तुत की थी समस्या

इस मामले में पुलिस हवालदार अनिल गावडे ने बताया कि पुलिस कर्मचारी और अधिकारियों को मेडिकल बिल महीनों से लेकर सालों तक प्रलंबित रहते हैं। मेडिकल बिल पास होने की समस्या को लेकर पुलिस वृंद परिषद में भी प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। कुछ पुलिस कर्मचारी ऐसे भी हैं, जिनका मेडिकल बिल एक से दो साल तक प्रलंबित रहता है। मेडिकल बिल पास कराने के चक्कर में पुलिस कर्मचारी और अधिकारी अपना कार्यलयीन कामकाज छोड़कर आयुक्तालय के ही चक्कर लगाता रहता है। मेडिकल बिल पास करने को लेकर काफी नियम कानून बताकर पुलिस कर्मचारी और अधिकारियों को ही गुमराह कर दिया जाता है। ऐसे में बहुत से पुलिसवाले मेडिकल बिल प्रस्तुत ही नहीं करते या फिर इस तरह के झंझट से बचने के लिए बाबू को कमिशन देने में ही अपनी गनीमत समझते हैं।

मुझे गोली मरना चाहो तो मार दो, लेकिन इस तरह का सवाल ना करो

 

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