इस मामले में जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि और निकिता जैकब के साथ शांतनु पर भी साजिश और देशद्रोह करने के आरोप लगे हैं। पुलिस का कहना है कि इस टूलकिट के जरिए भारत को बदनाम करने की कोशिश की गई, साथ ही यह हिंसा का कारण बनी।
मामले में मंगलवार को अपनी जमानत याचिका दायर करते हुए शांतनु मुलक ने कहा कि उसने 20 जनवरी के बाद इस दस्तावेज पर काम नहीं किया। उन्होंने विरोध के लिए केवल इस टूलकिट को बनाया था, जबकि उनकी बिना जानकारी के दूसरे लोगों ने इसे एडिट किया। उन्होंने किसानों के आंदोलन को लेकर जानकारी इकट्ठा करने में और आसान रेफरेंस के लिए मैप बनाने में मदद की। टूलकिट से साफ पता चलता है कि उनका किसानों के विरोध के लिए सोशल मीडिया के जरिए समर्थन पाने और हिंसा से कोई संबंध नहीं है।
शांतनु ने इस बात पर जोर दिया कि दस्तावेज में उन्होंने जो जानकारी दी थीं, उसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था और उसके बाद उस दस्तावेज पर उनका कोई नियंत्रण नहीं था। साथ ही उनका टूलकिट के मामले में देश के बाहर किसी से कोई संपर्क नहीं है। उन्होंने पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के सह-संस्थापक मो धालीवाल से परिचित न होने की बात भी कही। जबकि 11 जनवरी को हुई जूम कॉल में इन दोनों ने ही हिस्सा लिया था।
मुलक ने कहा है, जूम कॉल पर करीब 70 लोग थे, जिनमें से निकिता जैकब के अलावा मैं किसी को नहीं जानता था। कुछ लोगों ने वहां बात की, वहीं कुछ लोग चुप रहे।
गिरफ्तारी के डर से मुलुक ने मंगलवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका लगाई है। मुलुक और जैकब ने 22 फरवरी को द्वारका में दिल्ली पुलिस के साइबर सेल ऑफिस में जांच में हिस्सा लिया था।
–आईएएनएस
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