इंडियाबुल्स मामले में वादियों की भूमिका संदिग्ध

 नई दिल्ली, 11 जून (आईएएनएस)| इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस के खिलाफ गलत तरीके से कारोबार की चर्चाओं के कारण कंपनी के शेयर की कीमत मंगलवार को 59.20 रुपये (8.07 प्रतिशत) की गिरावट के साथ 674.15 रुपये पर बंद हुई।

 कंपनी के अध्यक्ष और निदेशकों पर सार्वजनिक धन के 98,000 करोड़ रुपये के कथित रूप से दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है और हमेशा की तरह, इस आरोपों के चर्चा में आने के बाद शेयरधारकों को धन का नुकसान हुआ है।

वहीं, कंपनी ने इन आरोपों को गलत करार दिया है और कहा है कि इंडियाबुल्स की प्रतिष्ठा को ‘खराब’ करने और लक्ष्मी विलास बैंक के साथ उसके विलय में बाधा उत्पन्न करने के लिए ये आरोप लगाए गए हैं।

बीएसई पर कंपनी का शेयर 4.51 फीसदी की गिरावट के साथ 700 के स्तर पर खुला। पिछले एक साल के दौरान स्टॉक में 43.71 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और इस साल की शुरुआत से 20.73 फीसदी की गिरावट आई है। लार्ज कैप शेयर में सेक्टर की तुलना में 8 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।

वकील किसलय पांडे ने मंगलवार को, याचिकाकर्ता अभय यादव और विकाश शेखर की सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट -2014 के तहत दर्ज की गई शिकायतों को धारा 11, 12, 13, 14, 15 और 16 के तहत निपटाया जाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईएचएफएल), इसके अध्यक्ष और निदेशकों के खिलाफ 98,000 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग के लिए कानूनी कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि फर्म के अध्यक्ष समीर गहलोत और इंडियाबुल्स के निदेशकों द्वारा उनके निजी उपयोग के लिए हजारों करोड़ रुपये के धन का गबन किया गया।

याचिकाकर्ता और आईएचएफएल शेयरधारकों में से एक अभय यादव ने आरोप लगाया कि गहलोत ने हरीश फैबियानी -स्पेन में रहनेवाले एक एनआरआई – की मदद से कथित रूप से कई ‘छद्म कंपनियां’ बनाईं, जिन्हें आईएचएफएल ने ‘फर्जी तरीके से’ भारी रकम कर्ज पर दी।

इससे पहले प्रतिस्पर्धा आयोग में इससे संबंधित एक याचिका दर्ज की गई थी। मई के अंत में, सीसीआई ने इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस और उसके कई कर्मचारियों द्वारा ऋण समझौते से संबंधित अनुचित और भेदभावपूर्ण व्यापार प्रथाओं का आरोप लगानेवाली एक शिकायत को खारिज कर दिया था।

शिकायत को खारिज करते हुए, निष्पक्ष व्यापार नियामक ने कहा कि इंडियाबुल्स हाउसिंग और उसके कर्मचारियों द्वारा प्रतिस्पर्धा अधिनियम का कोई उल्लंघन नहीं पाया गया। यह फैसला अधिवक्ता कन्हैया सिंघल द्वारा दायर एक शिकायत पर आया था, जिन्होंने इंडियाबुल्स हाउसिंग से 1 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था, जिसके लिए उन्होंने जून 2018 के में इंडियाबुल्स हाउसिंग के साथ ऋण समझौता किया था।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि ब्याज की दर चार महीने के भीतर 8.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 11.15 प्रतिशत कर दी गई और ऋण की अवधि 240 महीने से बढ़ाकर 364 महीने कर दी गई, जबकि उन्होंने कोई सहमति नहीं दी थी।

अगर कोई इन घटनाक्रमों की कड़ियां जोड़े तो यह इंडियाबुल्स के खिलाफ किसी तरह की साजिश की ओर इशारा करता है।

याचिका में आरोप लगाते हुए यादव ने तर्क दिया था कि शेल कंपनियों ने ऋण की राशि को अन्य कंपनियों को हस्तांतरित कर दिया, जो या तो गहलोत, उनके परिवार के सदस्यों या इंडियाबुल्स के अन्य निदेशकों द्वारा संचालित या निर्देशित थी।

मंगलवार को यह जानकारी सामने आई कि याचिका दायर करनेवाले अभय यादव इंडियाबुल्स के शेयरधारक हैं, लेकिन 9.5.2019 और 7.6.2019 के बीच, उसकी कुल हिस्सेदारी केवल 4 शेयरों की है। इसका मतलब यह है कि वह याचिका दायर करने से ठीक पहले एक शेयरधारक बन गए और शायद एक तरह से अल्पसंख्यक निवेशक के रूप में भूमिका निभा रहे हैं।

कार्वी फिनटेक ने मंगलवार को इसे प्रमाणित करते हुए एक प्रमाणपत्र जारी किया है। इसी तरह दूसरे याचिकाकर्ता विकास शेखर ने 14.12.2018 को दो शेयर खरीदे और 25.3.2019 तक, उन्होंने कार्वी फिनटेक के अनुसार केवल दो शेयर रखे, जिससे आईएएनएस ने यह जानकारी हासिल की है।

याचिका में कहा गया है कि घोटाले की यह पूरी श्रृंखला ऑडिटर्स, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारियों के साथ मिले बिना संभव नहीं थी। याचिका में बाजार नियामक सेबी, केंद्र सरकार, आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) और आयकर विभाग या सक्षम प्राधिकारी को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे निवेशकों के धन को बचाने के लिए जरूरी कार्रवाई करें।

हालांकि, एक स्पष्टीकरण में इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईबीएचएफएल) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका कंपनी की प्रतिष्ठा को ‘खराब’ करने और लक्ष्मी विलास बैंक के साथ इसके विलय में बाधा पैदा करने का प्रयास है।

आईबीएचएफएल ने सोमवार को कहा, “रिट याचिका केवल आज ही दायर की गई है और अदालत में अभी इसकी सुनवाई नहीं हुई है .. इंडियाबुल्स हाउसिंग के ऋण खाते में लगभग 90,000 करोड़ रुपये है। इसलिए 98,000 करोड़ रुपये के घपले के आरोप निराधार हैं।”