कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण से आएगा बदलाव : आर्थिक सर्वेक्षण

नई दिल्ली, 31 जनवरी (आईएएनएस)| देश में कृषि क्षेत्र में हो रहे यंत्रों के इस्तेमाल से आने वाले दिनों में व्यापक बदलाव आने वाले हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में बताया गया है कि कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण से भारतीय कृषि, वाणिज्यिक कृषि के रूप में बदल जाएगी। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 पेश करते हुए किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के सरकार के संकल्प को दोहराया।

उन्होंने कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण, पशुधन तथा मछलीपालन क्षेत्र, खाद्य प्रसंस्करण, वित्तीय समावेश, कृषि ऋण, फसल बीमा, सूक्ष्म सिंचाई तथा सुरक्षित भंडार प्रबंधन पर बल दिया।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भूमि, जल संसाधन और श्रम शक्ति में कमी आने के साथ उत्पादन के क्षेत्र में यंत्रीकरण और फसल कटाई के बाद के प्रचालनों पर जिम्मेदारी आ जाती है। कृषि के क्षेत्र में यंत्रीकरण से भारतीय कृषि वाणिज्यिक कृषि के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। कृषि में यंत्रीकरण बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि चीन (59.5 फीसदी) तथा ब्राजील (75 फीसदी) की तुलना में भारत में कृषि का यंत्रीकरण महज 40 फीसदी हुआ है।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए पशुधन आय का दूसरा महत्वपूर्ण साधन है और यह क्षेत्र किसानों की आय को दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा रहा है।

सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले पांच वर्षों में पशुधन क्षेत्र में 7.9 फीसदी की क्रमागत वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) दर्ज की गई है।

मछलीपालन खाद्य, पोषाहार, रोजगार और आय का महत्वपूर्ण साधन रहा है। मछलीपालन क्षेत्र से देश में लगभग 1.6 करोड़ मछुआरों और मछलीपालक किसानों की आजीविका चलती है। मछलीपालन के क्षेत्र में हाल के वर्षों में वार्षिक औसत वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है। इस क्षेत्र के महत्व को ध्यान में रखते हुए 2019 में स्वतंत्र मछलीपालन विभाग बनाया गया है।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। प्रसंस्करण के उच्च स्तर से बबार्दी कम होती है, मूल्यवर्धन में सुधार होता है, फसल की विविधता को प्रोत्साहन मिलता है, किसानों को बेहतर लाभ मिलता है तथा रोजगार प्रोत्साहन के साथ-साथ निर्यात आय में भी वृद्धि होती है। 2017-18 में समाप्त होने वाले पिछले छह वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र लगभग 5.6 फीसदी की औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) से बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में 2011-12 के मूल्यों पर विनिर्माण तथा कृषि क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) क्रमश: 8.83 फीसदी और 10.66 फीसदी रहा।

फसल बीमा की जरूरत पर बल देते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के लाभों के बारे में बताया गया है, जिसकी शुरुआत 2016 में हुई। इसमें फसल बुवाई के पहले से लेकर, फसल कटाई के बाद तक के प्राकृतिक जोखिमों को कवर करने का प्रावधान है। पीएमएफबीवाई की वजह से सकल फसल क्षेत्र (जीसीए) 23 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी हो गया है। सरकार ने एक राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल का भी गठन किया, जिसमें सभी हितधारकों के लिए इंटरफेस उपलब्ध है।

विकास की स्वाभाविक प्रक्रिया और अर्थव्यवस्था में हो रहे संरचनात्मक बदलाव की वजह से कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों का योगदान मौजूदा मूल्य पर देश के सकल मूल्य वर्धन में वर्ष 2014-15 के 18.2 फीसदी से घटकर वर्ष 2019-20 में 16.5 फीसदी हो गया।

आर्थिक समीक्षा में बढ़ते खाद्य सब्सिडी बिल को कम करने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दरों की समीक्षा का प्रस्ताव किया गया है। आर्थिक समीक्षा में भारतीय खाद्य निगम के बफर स्टॉक के विवेकपूर्ण प्रबंधन की भी सलाह दी गई है।

खेतों के स्तर पर जल इस्तेमाल की क्षमता बढ़ाने के लिए आर्थिक समीक्षा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) जैसी योजनाओं के जरिए सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप एवं स्प्रिंकल सिंचाई) के इस्तेमाल की सलाह दी गई है।

आर्थिक समीक्षा में नाबार्ड के साथ 5,000 करोड़ रुपये के आरंभिक फंड के गठन के साथ समर्पित सूक्ष्म सिंचाई फंड का भी जिक्र किया गया है।