गर्भपात की पहुंच के लिए मेडिकल बोर्ड अपुष्ट : ग्राउंड रिपोर्ट

नई दिल्ली, 29 जनवरी (आईएएनएस)। सेंटर फॉर जस्टिस, लॉ एंड सोसाइटी (सीजेएलएस), जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल ने जिलेवार उपलब्धता और विशेषज्ञ डॉक्टरों की पहुंच का व्यापक अध्ययन किया है।

विशेषज्ञ डॉक्टरों में प्रसूति रोग विशेषज्ञ/स्त्री रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ और रेडियोलॉजिस्ट शामिल हैं। सीजेएलएस ने सभी भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में ग्रामीण, शहरी व दूरस्थ क्षेत्रों में इस तरह के डॉक्टरों की कमी के प्रभाव को दर्शाया है। इसने व्यापक स्तर पर डॉक्टरों की पहुंच का अध्ययन किया है, जिसमें कई महत्वपूर्ण चीजें सामने आई हैं।

इस अध्ययन का उद्देश्य देश में विशेषज्ञों की कमी का बारीकी से विश्लेषण करना है और इस तरह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 में प्रस्तावित मेडिकल बोर्ड की स्थापना की व्यवहार्यता का पता लगाना है।

लोकसभा ने 17 मार्च 2020 को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 पास किया था। अन्य सुधारों के बीच, इस विधेयक में मेडिकल बोर्ड के गठन का प्रस्ताव है, जिसमें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश द्वारा नामित अन्य सदस्यों के साथ कम से कम तीन विशेषज्ञ डॉक्टर शामिल करने का प्रावधान है।

बोर्ड को यह निर्धारित करने के लिए सशक्त किया जाएगा कि क्या 24 सप्ताह से आगे बढ़ने वाली गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है, बशर्ते कि भ्रूण संबंधी असामान्यताओं का निदान किया गया हो।

इस विधेयक को आगामी बजट सत्र में राज्य सभा में पेश करने की तैयारी है।

सीजेएलएस द्वारा किए गए इस अध्ययन में स्पष्ट किया गया है कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) के लिए डेटा का अभाव था, जिसके कारण उनके शोध को माध्यमिक स्वास्थ्य केंद्रों (एसएचसी) तक सीमित किया गया।

इसमें 2015 से 2019 की समयावधि को कवर किया गया, जिसमें पाया गया कि भारत में विशेषज्ञ डॉक्टरों और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। इसका कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा (पब्लिक हेल्थकेयर) में पर्याप्त निवेश नहीं होना बताया गया है। बताया गया है कि भारत में उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 1.6 प्रतिशत ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर खर्च हुआ, जो कि दुनिया में सबसे कम की श्रेणी में आता है।

औसतन भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 80 प्रतिशत प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों की कमी दर्ज की गई है, जिससे कार्यात्मक मेडिकल बोर्ड की स्थापना व्यावहारिक रूप से असंभव हो गई है।

इसके अतिरिक्त क्षेत्र-वार विश्लेषण से पता चलता है कि कई राज्यों में तो विशेषज्ञों की उपलब्धता लगभग शून्य है। शोध में सामने आया है कि आश्चर्यजनक रूप से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में बाल रोग विशेषज्ञों की 100 प्रतिशत कमी है। वहीं हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में प्रसूति रोग विशेषज्ञों/स्त्री रोग विशेषज्ञों में 98 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जो मेडिकल बोर्ड के लिए आवश्यक विशेषज्ञों में से एक है।

हरियाणा के सोनीपत स्थित ओ. पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति सी. राजकुमार ने राज्य या जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड के गठन की चुनौतियों को स्थापित करने में इस शोध के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा, यह अध्ययन भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कमियों को उजागर करता है।

कुलपति राजकुमार ने कहा कि शोध के दौरान यह सामने आया है कि इस क्षेत्र में पर्याप्त निवेश करने की आवश्यकता है, ताकि हेल्थकेयर सर्विस डिलिवरी, विशेष रूप से प्रजनन अधिकारों के लिए सभी व्यक्तियों को किफायती एवं सुलभ सुविधाएं प्राप्त हो सके।

कहा गया है कि 1971 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में मेडिकल बोर्ड की परिकल्पना नहीं की गई थी और कानून में गर्भपात के लिए किसी तीसरे पक्ष के प्राधिकरण का उल्लेख नहीं किया गया है। बताया गया है कि ये बोर्ड असंवैधानिक हैं और इसमें गर्भवती महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इसके अनुसार, गर्भवती को कई परीक्षणों से गुजरना पड़ा है और टर्मिनेशन प्रक्रिया में अनावश्यक देरी होती है।

गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार गर्भवती महिला के साथ निहित होना चाहिए और भारतीय न्यायशास्त्र ने पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, नवतेज जोहर बनाम भारत संघ और जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ जैसे मामलों के माध्यम से इसे स्थापित किया है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने गोपनीयता, गरिमा, समानता और यौन एवं प्रजनन स्वायत्तता के लिए अधिकारों को मान्यता दी थी।

–आईएएनएस

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