ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कवि केदार नाथ सिंह कालवश

पुणे समाचार

आधुनिक हिन्दी कविता के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि एवं भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान प्राप्त श्रद्धेय केदारनाथ सिंह जी का कुछ ही देर पहले दिल्ली में दुखद निधन हो गया। वे कई दिनों से कोमा में थे। अंतिम दिनों में वेंटिलेटर पर थे। अपने व्यक्तित्व एवं कविता में भी ज़मीन और जड़ों से जुड़े इस महान कवि और इन्सान को खोना भारतीय साहित्य की अपूरणीय क्षति है। उनकी स्मृति को प्रणाम।

उसका हाथ
अपने हाथ में लेकर मैंने कहा
दुनिया को हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए।

ऐसी कविता रचने वाले कवि केदारनाथ सिंह आज चले गए।

उनकी एक और कविता

पानी में घिरे हुए लोग
प्रार्थना नहीं करते
वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी को
और एक दिन
बिना किसी सूचना के
खच्चर बैल या भैंस की पीठ पर
घर-असबाब लादकर
चल देते हैं कहीं और

यह कितना अद्भुत है
कि बाढ़ चाहे जितनी भयानक हो
उन्हें पानी में थोड़ी-सी जगह ज़रूर मिल जाती है
थोड़ी-सी धूप
थोड़ा-सा आसमान
फिर वे गाड़ देते हैं खम्भे
तान देते हैं बोरे
उलझा देते हैं मूंज की रस्सियां और टाट
पानी में घिरे हुए लोग
अपने साथ ले आते हैं पुआल की गंध
वे ले आते हैं आम की गुठलियां
खाली टिन
भुने हुए चने
वे ले आते हैं चिलम और आग

फिर बह जाते हैं उनके मवेशी
उनकी पूजा की घंटी बह जाती है
बह जाती है महावीर जी की आदमकद मूर्ति
घरों की कच्ची दीवारें
दीवारों पर बने हुए हाथी-घोड़े
फूल-पत्ते
पाट-पटोरे
सब बह जाते हैं
मगर पानी में घिरे हुए लोग
शिकायत नहीं करते
वे हर कीमत पर अपनी चिलम के छेद में
कहीं न कहीं बचा रखते हैं
थोड़ी-सी आग

फिर डूब जाता है सूरज
कहीं से आती हैं
पानी पर तैरती हुई
लोगों के बोलने की तेज आवाजें
कहीं से उठता है धुआं
पेड़ों पर मंडराता हुआ
और पानी में घिरे हुए लोग
हो जाते हैं बेचैन

वे जला देते हैं
एक टुटही लालटेन
टांग देते हैं किसी ऊंचे बांस पर
ताकि उनके होने की खबर
पानी के पार तक पहुंचती रहे

फिर उस मद्धिम रोशनी में
पानी की आंखों में
आंखें डाले हुए
वे रात-भर खड़े रहते हैं
पानी के सामने
पानी की तरफ
पानी के खिलाफ

सिर्फ उनके अंदर
अरार की तरह
हर बार कुछ टूटता है
हर बार पानी में कुछ गिरता है
छपाक……..छपाक……