दोषसिद्धि दर बढ़ाने को आईपीसी, सीआरपीसी धाराओं की होगी समीक्षा (आईएएनएस एक्सक्लूसिव)

नई दिल्ली, 2 दिसंबर (आईएएनएस)| मौजूदा आपराधिक कानूनों के तहत 23 प्रतिशत से भी कम दोषसिद्ध दर (दोषी ठहराए गए कैदियों की दर) है, केंद्र इस बाबत अंग्रेजों द्वारा लागू भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धाराओं में बदलाव करने की तैयारी में है। इसके लिए सरकार ने आपराधिक जांच, खासकर दोषसिद्धि दर बढ़ाने के लिए फोरेंसिक सबूतों के आधार पर खाका तैयार किया जा रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के नवीनतक आंकड़ों के अनुसार, आईपीसी के अंतर्गत अपराधों के लिए राष्ट्रीय दोषसिद्धि दर काफी खराब है। इसके अलावा विशेषज्ञों ने इस बाबत गवाह सुरक्षा कार्यक्रम नहीं होने को भी रेखांकित किया है।

आंकड़ों के अनुसार, केरल में दोषसिद्धि दर सबसे ज्यादा 84 प्रतिशत है, जबकि बिहार में इसकी दर मात्र 10 प्रतिशत है।

एनसीआरबी डाटा-क्राइम इन इंडिया-2017 के अनुसार, “30,62,579 अपराधों के तहत कुल 37,27,909 लोगों को गिरफ्तार किया गया। कुल 35,72,935 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया, 8,73,983 लोगों को दोषी ठहराया गया और 12,65,590 लोगों को बरी कर दिया गया या आरोपमुक्त कर दिया गया।”

गृह मंत्रालय ने आंतरिक सुरक्षा से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों को आईपीसी और सीआरपीसी में जरूरी बदलावों के बारे में सलाह देने का काम सौंपा है, ताकि 21वीं सदी में आंतरिक सुरक्षा विश्वसनीय बन सके।

इस बाबत एक खाका तैयार किया जा रहा है और प्रस्ताव को जल्द की केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जा सकता है, ताकि इस संबंध में संसद में एक विधेयक पेश किया जा सके।

पता चला है कि इसके लिए सिविल सोसायटी के अलावा राज्यों के पुलिस विभागों, न्यायाधीशों और वकीलों से भी इस बारे में सुझाव मांगा गया है।

ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डवलपमेंट (बीपीआर एंड डी) ने भी आईपीसी और सीआरपीसी नियमों में बदलाव के लिए सुझाव दिए हैं, जिसे अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए बनाया था।

गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, “बीपीआर एंड डी के सुझाव पर गृह मंत्रालय द्वारा विचार किया जा रहा है।”

वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में लखनऊ में हुए 47वें अखिल भारतीय पुलिस विज्ञान कांग्रेस सम्मेलन के दौरान इस बारे में संकेत दिए थे, जहां उन्होंने देश की सीमाओं की रक्षा, घुसपैठ की घटनाओं, फेक करेंसी, साइबर-हमले, मानवों, हथियारों और पशुओं की तस्करी जैसे मामलों की बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठाने की बात कही थी।

उन्होंने कहा था कि नागरिकों के बेहतर भविष्य को निश्चित ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत 15,000 किलोमीटर से ज्यादा की थल सीमा, 7500 किलोमीटर की तटीय सीमा अपने पड़ासियों के साथ साझा करता है, जहां दुश्मन पड़ोसी हमेशा देश में आतंकवाद का बीज बोने की ताक में रहते हैं।

सरकार के पास निश्चित ही सीमा सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस का प्रभावी समन्वय होना चाहिए।

वहीं इसके लिए राज्य पुलिस और केंद्र सरकार के साथ जांच एजेंसियों के बीच समन्वय व सामंजस्य बिठाने को लेकर एक योजना बनाई जा रही है।