बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण की जिम्मेदारी स्कूल-कॉलेज के साथ ही पालकों की भी : डॉ. संभाजी मलघे

डी.वाई. पाटिल कॉलेज में ‘व्यक्तित्व विकास’ कार्यशाला संपन्न 

पिंपरी : बच्चों के व्यक्तित्व विकास की जिम्मेदारी स्कूल-कॉलेज के साथ ही पालकों की भी होती है. परिवार में बच्चों के विकास के लिए जरूरी पोषक वातावरण दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है. यह प्रतिपादन इंद्रायणी महाविद्यालय के उपप्राचार्य डॉ. संभाजी मलघे ने किया.

सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ और डी.वाई. पाटिल कॉलेज, पिंपरी की ओर से आयोजित ‘व्यक्तित्व विकास’ विषय पर कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर वे विद्यार्थियों का मार्गदर्शन कर रहे थे. महाविद्यालय के उपप्राचार्य डॉ. रणजीत पाटिल की अध्यक्षता में संपन्न हुए इस कायक्रम में संयोजक डॉ. श्याम गायकवाड, कुलसचिव डी.डी. गायकवाड आदि उपस्थित थेे.

डॉ. मलघे ने आगे कहा कि, विद्यार्थियों के व्यक्तित्व व उनके गठन, स्कूल- महाविद्यालय और समाज इन तीन घटकों के संयोजन से होता है. परिवार में पालकों का बच्चों के साथ संवाद होना बहुत ही जरूरी है. ऐसे में बच्चों को भी चाहिए कि वे मोबाइल, टी.वी. का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल टाल कर माता-पिता, भाई-बहन या घर में मौजूद अन्य सदस्यो से संवाद करें, उनसे अपनी दिनचर्या या किसी अन्य विषय पर चर्चा करें. डॉ. मलघे ने कहा कि आज परिवार में संवाद का काफी अभाव देखने को मिलता है, जिसका परिणाम बच्चों के व्यक्तित्व पर होता है. स्कूल-महाविद्याल में हमारे बच्चे अपने मित्रों के साथ होते है. उनके ‘कॉलेज कट्टे’ होते है. इसके माध्यम से बच्चों को चाहिए कि वे अच्छी बातों को आत्मसात या ग्रहण कर अपना व्यक्तित्व सृजन करें.  उन्होंने आगे कहा कि जिन लोगों को भाषण्ा व संभाषण की कला आती है, वे अपने विचार व भावनाएं स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं. ऐसे लोगों समाज में काफी मान-सम्मान और अपनी इस कला का लाभ मिलता है. व्यक्ति का व्यक्तित्व यानी उसका दिखनेवाला ऊपरी स्वरूप नहीं होता, बल्कि वह कितना बुद्धिमान है, उसका आचार-विचार कैसा है, वह समाज के साथ कितना जुड़ा है, आदि बातों पर उसके व्यक्तित्व की गणना होती है. देश-विदेश के जिन लोगों ने भी अपनी छाप छोड़ी है, वे सभी लोग काफी विद्वान थे. डॉ. रघुनाथ माशेलकर, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, मोरारजी देसाई, डॉ. राजेंद्रप्रसाद से सभी लोग बुद्धिमान थे. उन्होंने नए समाज का सृजन किया. इसकार कारण उनका व्यक्तित्व विचारशील था. अनेक उदाहरण देते हुए डॉ. मलघे ने विद्यार्थियों को उनके व्यक्तित्व के विषय में मार्गदर्शन किया.

डॉ. रणजीत पाटिल ने बताया कि, विद्यार्थी किसी भी शाखा का छात्र हो, उसे आगे बढ़ने के लिए अच्छा बोलना-चालता, अच्छा व्यवहार अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों का ज्ञान उसके व्यक्तित्व को मजबूत करने में मददगार होता है. विद्यार्थियों के गुणों की कदर यानी उसका व्यक्तित्व ही है.

डॉ. गायकवाड ने अपने प्रास्ताविक में कार्यशाला का उद्देश्य स्पष्ट किया.