बुंदेलखंड : अवैध खनन, पेयजल संकट नहीं बन सका चुनावी मुद्दा

 बांदा, 12 अप्रैल (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड की नदियों में हो रहे बालू के अंधाधुंध अवैध खनन से भले ही राजनीतिक दल मुंह फेर लिए हों, लेकिन इस अवैध खनन की वजह से बुंदेलखंड में भीषण पेयजल संकट छाने लगा है।

  हर चुनाव की भांति इस लोकसभा चुनाव में भी किसी दल या प्रत्याशी ने इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है।

 

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के सात जिलों -बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, उरई-जालौन, झांसी और ललितपुर- में चार लोकसभा सीटें हैं। पिछले 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चारों सीटों पर भगवा ध्वज फहराया था। इतना ही नहीं, 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का जलवा बरकरार रहा और सभी 19 सीटों पर उसके प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।

विधानसभा चुनाव से पूर्व समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सरकारों पर ‘लाल सोना’ (बालू) की लूट का आरोप जड़ने वाले भाजपा नेता खुद की सरकार बनते ही सुर बदल लिए और योगी सरकार में भी बालू के अवैध खनन का गोरखधंधा कथित तौर पर पूर्ववर्ती सरकारों की भांति जस का तस अब भी चल रहा है। इसके सबूत समय-समय पर खनन और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई छापेमारी है, जिसमें हजारों की तादाद में ओवरलोड ट्रक और तमाम जेसीबी व पोकलैंड मशीनें पकड़ी गई हैं। नदियों और नालों में किए जा रहे अवैध खनन से बुंदेलखंड के सैकड़ों गांवों में अभी से पेयजल संकट पैदा हो गया है। गांवों के प्राकृतिक जल स्रोत कुआं-तालाब जाने कब सूख गए, लेकिन अब सरकारी हैंडपंपों ने भी पानी देना बंद कर दिया है।

बुंदेलखंड में ‘नदी बचाओ-तालाब बचाओ’ आंदोलन के संयोजक सुरेश रैकवार बताते हैं, “बांदा जिले में केन, बागै, यमुना और रंज नदी, हमीरपुर में बेतवा, उरई-जालौन में ‘पंचनद’ (पांच नदियों का मिलन केन्द्र) में बालू का अंधाधुंध अवैध खनन होने से सतही पानी रिचार्ज नहीं हो पाता, जिससे पेयजल संकट पैदा होता है। नदियों में हो रहे अवैध खनन की वजह से बुंदेलखंड का ज्यादातर भूभाग ‘डार्कजोन’ (जल विहीन) बन चुका है। बांदा जिले के फतेहगंज के वन क्षेत्र के एक दर्जन गांवों गोबरी-गोड़रामपुर, बिलरिया मठ, गोंड़ी बाबा का पुरवा, मवेशी डेरा, कारी डांड़ी, राजा डांड़ी, उद्धव पुरवा में जल स्रोत नीचे चले जाने से पेयजल संकट पैदा हो गया है। यहां हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया है और ग्रामीण बाणगंगा व कडैली नाले में चोहड़ (गड्ढा) खोद कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।”

बुंदेलखंड किसान यूनियन के केन्द्रीय अध्यक्ष विमल कुमार शर्मा आरोप लगाते हैं, “नदियों से हो रहे अवैध खनन को लेकर कई बार किसान सड़कों पर उतरे, लेकिन बालू माफियाओं से मिलकर प्रशासनिक अमले ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। लोकसभा चुनाव बाद एक बार फिर अवैध खनन के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा।”

राजनीतिक दलों द्वारा अवैध खनन और पेयजल संकट को मुद्दा न बनाए जाने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, “दल चाहे जो भी हो, सभी से माफियाओं के संबंध अच्छे हैं और ज्यादातर नेता बालू कारोबार में साझेदार भी हैं। इसीलिए इसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा रहा।”

बांदा सदर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक प्रकाश द्विवेदी कहते हैं, “योगी सरकार में अवैध खनन की कोई गुंजाइश नहीं है। जिन नदियों में बालू का पट्टा है, उन्हीं में ‘वैध’ खनन हो रहा है। रही बात पेयजल संकट की तो हर विधायक और सांसद को हर साल 100 हैंडपंप मिलते हैं, जो जरूरतमंदों की बस्ती में लगवाए जाते हैं।”

जबकि तिंदवारी से भाजपा विधायक बृजेश कुमार प्रजापति का आरोप है, “जिले के जिम्मेदार अधिकारियों की सरपरस्ती में तकरीबन 39 बालू खदानों में अवैध खनन किया जा रहा है। इसके खिलाफ मुख्यमंत्री तक को लिखा गया। परन्तु कोई कार्रवाई तो नहीं हुई, अलबत्ता उल्टे उनके खिलाफ रंगदारी मांगने का फर्जी मुकदमा जरूर दर्ज करवा दिया गया है। नदियों में हो रहे बेतरतीब बालू खनन से सैकड़ों गांवों का जलस्तर नीचे गिर गया है और हैंडपंप पानी देना बंद कर दिए हैं।”

बांदा-चित्रकूट संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी बाल कुमार पटेल कहते हैं, “अवैध खनन को भले ही कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा न बनाया हो, लेकिन अगर जनता ने उन्हें सांसद चुना तो एक भी अवैध खनन नहीं होने दिया जाएगा।”

वह कहते हैं, “जिस दल की सूबे में सरकार बनी है, उसी दल के लोगों की गिद्ध निगाह बालू पर पड़ी है।”