बेड़ियां तोड़ती लड़की की कशमकश बयां करेगा तेंदुलकर का नाटक ‘मीता की कहानी’

नई दिल्ली, 23 मई (आईएएनएस)| भारतीय समाज की पारंपरिक महिला की छवि को तोड़ते हुए मराठी नाटककार विजय तेंदुलकर ने एक युवा लड़की मीता को केंद्र बनाकर ‘मीता की कहानी’ नाम का एक प्रासंगिक नाटक लिखा है। श्रीराम सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (एसआरसीपीए) रेपेट्री तेंदुलकर के इसी नाटक का मंचन 25 व 26 मई को करेगा।

विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन समीप सिंह (एनएसडी के पूर्व छात्र और फिलहाल एसआरसीपीए रेपेट्री के चीफ) ने किया है। नाटक की अवधि 90 मिनट की है।

विजय तेंदुलकर के नाटक की मुख्य पात्र मीता अपने संघर्ष के जद्दोजहद के दौरान एक अन्य लड़की, नामा से मिलती है। नामा उसे उन चीजों का अहसास कराती है जिसे उसने अपनी जिंदगी में पहले कभी महसूस नहीं किया। क्या वह अपनी अनोखी भावनाओं को समाज के सामने जाहिर कर पाएगी? क्या समाज उसकी चॉइस पर कोई सवाल उठाए बगैर उसे उसकी भावनाओं के साथ स्वीकार करेगा? इस दौरान एक और चरित्र, बापू उसकी यात्रा को आगे बढ़ाता है और मीता की जिंदगी के उतार-चढ़ाव एवम् संवेदनशील घटनाओं के स्पर्श व उतार-चढ़ाव के साथ उसे रूढ़ियों से निजात दिलाता है।

विजय तेंदुलकर ने इस अपने समय से काफी आगे रहकर इस नाटक को लिखा था, हालांकि, आज इसकी प्रासंगिकता कहीं अधिक है। आज की युवा पीढ़ी अपनी आंखों में हजारों इच्छाएं लेकर मेट्रोज में रहने का सपना देखती है, फिर चाहे शिक्षा पाना हो या अपनी ड्रीम जॉब करना। यही कारण है कि हॉस्टल, शेयरिंग रूम्स और लिव-इन रिलेशनशिप्स खूब फैशन में हैं।

ऐसी लाइफस्टाइल में जहां कोई जिंदगी की जटिलताओं से संघर्ष कर रहा है, प्यार का अहसास और दूसरे से प्यार पाने की इच्छा होमोसेक्सुअल संबंधों को भी बढ़ावा देती है।

अनुच्छेद 377 से सम्मान मिलने के बावजूद, क्या समाज मानसिक अवरोध को तोड़ने और इसे स्वींकार करने में सक्षम हुआ है? एक महिला अगर किसी पुरूष के स्वभाव को समझती है तो क्या वह पितृसत्तार के उत्पीड़न को खत्म कर देती है? मीता जैसे लोग, समाधान नहीं मिलने के कारण क्या अपनी जिंदगी को खत्म कर रहे हैं? यह नाटक मीता की कहानी हमें ऐसे मुद्दों पर सोचने और सवाल करने के लिए मजबूर करता है।

नाटक को संबंधों की जटिलताओं के इर्दगिर्द बुना गया है और यह धारणाओं एवं नैतिक मूल्यों की समझ पर आधारित है जोकि खासतौर से महिलाओं के लिए बनाए गए हैं। बापू का किरदार काफी खास है जिसे समाज द्वारा महिलाओं तक सीमित मान लिया जाता है जबकि मीता एक बोल्ड किरदार के रूप में अकेली खड़ी है और अपने समय से काफी आगे है।

विजय तेदुलकर के यथार्थवाद से विपरीत, इस नाटक को यथार्थवादी डिजाइन को समर्पित किया गया है, जोकि खुलेपन को प्रस्तुत करता है और पूरी कहानी धाराप्रवाह चलती है। यह नाटक अवधारणा से लेकर विवेचना तक, जिंदगी की जटिलताओं एवं सादगी के बीच घूमता है और इन्हें जब गलत तरह से समझा जाता है, तो यह एक अवांछित अंत तक पहुंच जाता है।