यूएनएचआरसी में श्रीलंका के खिलाफ वोटिंग नहीं करने पर केंद्र को लगाई फटकार

चेन्नई, 24 मार्च (आईएएनएस)। श्रीलंका के कथित मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े एक प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने के कारण तमिलनाडु के विपक्षी दलों – डीएमके और मारुमर्लाची द्रविड़ मुनेत्र कड्गम (एमडीएमके) ने केंद्र सरकार पर जमकर प्रहार किया।

डीएमके अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने कहा कि केंद्र ने श्रीलंकाई तमिलों के हितों के साथ विश्वासघात किया है। चेन्नई में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए डीएमके नेता ने कहा, सरकार अप्रत्यक्ष रूप से यूएनएचआरसी में प्रस्ताव का बहिष्कार कर श्रीलंका सरकार की मदद कर रही है।

एमडीएमके ने केंद्र सरकार की आलोचना की। पार्टी महासचिव वाइको, जो हमेशा ईलम हितों के समर्थक रहे हैं, ने कहा कि भारत सरकार ने तमिलनाडु में चुनावों के कारण प्रस्ताव के खिलाफ मतदान नहीं किया।

वाइको ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, भारत सरकार ने श्रीलंकाई तमिलों के साथ पूरी तरह से विश्वासघात किया है। अगर तमिलनाडु में कोई चुनाव नहीं होता, तो हमारी सरकार ने इस प्रस्ताव के विरोध में और लंका के समर्थन में मतदान किया होता। मैं यूएनएचआरसी में भारत सरकार की कार्रवाई की कड़ी निंदा करता हूं।

उन्होंने आगे कहा, आपको यह समझना चाहिए कि यह श्रीलंकाई सरकार और तमिल प्रवासियों के बीच लड़ाई नहीं थी और निश्चित रूप से यह गृहयुद्ध भी नहीं था। यह नरसंहार था। श्रीलंकाई सेना ने 1.37 लाख तमिलों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं, उनके घरों पर बमबारी भी की गई। कई लोगों ने भूख से तड़प कर जान दे दी। लेकिन, किसी ने भी तमिलों के हितों का समर्थन नहीं किया। भारत सरकार ने तमिल समुदाय की ओर से आंखें फेर ली थीं।

भारत सरकार यूएनएचआरसी में बहुत संभल कर कदम आगे बढ़ा रही थी। इसी बीच विधानसभा चुनाव आ गए। ऐसे में सरकार के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति हो गई क्योंकि एक तरफ तमिल समुदाय के हितों की बात थी और दूसरी ओर श्रीलंका के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखना भी है।

यह प्रस्ताव श्रीलंका पर युद्ध अपराध की जिम्मेदारियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन तय करने के लिए था। यूएनएचआरसी के 46वें सत्र में श्रीलंका में सुलह, जवाबदेही और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के प्रस्ताव को 47 में से 22 वोटिंग के साथ अपनाया गया और 11 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया जिनमें चीन, पाकिस्तान, रूस और बांग्लादेश भी हैं। भारत और नेपाल सहित 14 अन्य देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया।

गौरतलब है कि भारत ने 2012 और 2013 में इसी तरह के प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया था।

–आईएएनएस

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