लेनिन से इतनी नफरत क्यों करती है भाजपा?

त्रिपुरा में वाम किला ढहने के साथ ही लेनिन की आदमकद प्रतिमा को भी ढहा दिया गया। इसके लिए कोई और नहीं भाजपा कार्यकर्ताओं को ही कुसूरवार ठहराया जा रहा है। इस घटना के बाद दक्षिण कोलकाता में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा पर कालिख पोत दी गई। संभवत: यह भाजपा कार्यकर्ताओं की क्रिया के फलस्वरूप उपजी प्रतिक्रिया थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में जिन भगत सिंह का जिक्र करते नहीं थकते, वे महान क्रन्तिकारी भी लेनिन से प्रभावित थे। ऐसे में यहां सवाल यह उठ रहा है कि आखिर भाजपाइयों को लेनिन से इतनी नफरत क्यों है?

कौन है लेनिन
सबसे पहले हम यह जानते हैं कि लेनिन थे कौन? व्लादिमीर इलिच उल्यानोव का जन्म साल 1870 में 22 अप्रैल को वोल्गा नदी के किनारे बसे सिम्ब्रिस्क शहर में हुआ था। रईस परिवार में जन्मे व्लादिमीर बाद में दुनिया में लेनिन के नाम से विख्यात हुए। यूनिवर्सिटी में वो ‘क्रांतिकारी’ विचारधारा से प्रभावित थे और अपने बड़े भाई की हत्या का उनकी सोच पर गहरा असर पड़ा। उनके बड़े भाई रिवोल्यूशनरी ग्रुप के सदस्य थे। इसलिए वह भी इससे जुड़ गए।

निर्वासित जीवन बिताया
‘चरमपंथी’ नीतियों की वजह से उन्हें यूनिवर्सिटी से बाहर निकाल दिया गया, लेकिन उन्होंने साल 1891 में बाहरी छात्र के रूप में लॉ डिग्री हासिल की। इसके बाद वो सेंट पीटर्सबर्ग गए और वहां प्रोफ़ेशनल रिवॉल्यूशनरी बन गए। अपने कई समकालीन लोगों की तरह उन्हें गिरफ्तार कर निर्वासित जीवन बिताने के लिए साइबेरिया भेज दिया गया।  साल 1901 में व्लादिमीर इलिच उल्यानोव ने लेनिन नाम अपनाया।

उखाड़ फेंकी सरकार
निर्वासन के बाद उन्होंने करीब 15 साल पश्चिमी यूरोप में गुजारे जहां वो अंतरराष्ट्रीय रिवॉल्यूशनरी आंदोलन में अहम भूमिका निभाने लगे और रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी के ‘बॉल्शेविक’ धड़े के नेता बन गए। साल 1917 में पहले विश्व युद्ध से थका हुआ महसूस कर रहे रूस में बदलाव की चाहत जाग रही थी। उस समय जर्मन ने लेनिन की मदद की। उनका अंदाजा था कि वो अगर रूस लौटते हैं तो जंग की कोशिशों को कमजोर किया जा सकेगा। लेकिन लेनिन लौटे और उसी प्रॉविजनल सरकार को उखाड़ फेंकने की दिशा में काम करना शुरू किया जो जार साम्राज्य को सत्ता से बेदखल करने की कोशिश कर रही थी।

1924 में दुनिया से अलविदा
साल 1918 में उनकी हत्या की कोशिश की गई जिसमें वो गंभीर रूप से जख्मीक हो गए थे। इसके बाद उनकी सेहत में गिरावट आई और साल 1922 में हुए स्ट्रोक ने उन्हें काफी परेशानी में डाल दिया। अपने अंतिम समय में वो सत्ता के नौकरशाही का चोला ओढ़ने को लेकर परेशान रहे और जोसफ स्टालिन की बढ़ती ताकत को लेकर उन्होंने चिंता भी जताई। बाद में स्टालिन, लेनिन के उत्तराधिकारी बने। साल 1924 में 24 जनवरी को लेनिन का निधन हुआ, लेकिन उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया। उनके शव को एम्बाम किया गया और वो आज भी मॉस्को के रेड स्कवेयर में रखा है। 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण और असरदार शख्सियतों में गिने जाने वाले लेनिन की मौत के बाद उनकी पर्सनेलिटी ने बड़े तबके पर गहरा असर डाला।

ये है नफरत की वजह
लेनिन को काफी विवादित और भेदभाव फैलाने वाला नेता भी माना जाता है। उनके आलोचक उन्हें ऐसी तानाशाही सत्ता के अगुवा के रूप में याद करते हैं, जो राजनीतिक अत्याचार और बड़े पैमाने पर हत्याओं के लिए जिम्मेुदार रहे। लेनिन के राज्य में विरोधियों को रेड टेरर का सामना करना पड़ा। ये हिंसक अभियान सरकारी सुरक्षा एजेंसियों की तरफ से चलाया गया था। इस दौरान हजारों लोगों को प्रताड़ना दी गई। साल 1917 से 1922 के बीच उनकी सरकार ने रूसी गृह युद्ध में दक्षिणपंथी और वामपंथी बॉल्शेविक-विरोधी सेनाओं को परास्त किया। जंग के बाद जो भुखमरी फैली और निराशा ने जन्म लिया, उससे निपटने के लिए लेनिन ने नई आर्थिक नीतियों के जरिए हालात पलटने की कोशिश की। हालांकि विरोधियों की नज़र से  इसमें वे पूरी तरह सफल नहीं हो सके।

नहीं ली लोगों की सुध
लेनिन ने जिसकी शुरुआत की, उसी को बाद में ऑक्टूबर रिवॉल्यूशन के नाम से जाना गया। हालांकि इसे एक तरह से सत्ता परिवर्तन माना गया। इसके बाद तीन साल रूस ने गृह युद्ध का सामना किया। कहा जाता है कि क्रांति, जंग और भुखमरी के इस दौर में लेनिन ने अपने देशवासियों की दिक्कतों को नजरअंदाज किया और विपक्ष को पूरी तरह कुचल दिया।

भाजपा की समस्या
भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा लेनिन की प्रतिमा को गिराने की पीछे, ऐतिहासिक तथ्य नहीं बल्कि वामदलों का उनसे वैचारिक जुड़ाव है। वामदल लेनिन से प्रभावित हैं, और उस प्रदेश में जहां भाजपा सत्ता में है लेनिन की प्रतिमा उसे वाम शासन की याद दिलाती रहेगी। इसीलिए जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने सबसे पहले लेनिन की प्रतिमा पर हमला बोला। चुपचाप खड़े किसी व्यक्ति को परास्त करना आसान होता है, फिर वहां तो बात महज एक प्रतिमा को ध्वस्त करने की थी। भाजपा ऐसी कोई निशानी छोड़ना नहीं चाहती, जो वामदलों को पुन: प्रेरित कर सके। यदि यह प्रतिमा वामदलों द्वारा स्थापित नहीं की गई होती, तो शायद भाजपा को लेनिन से इतनी नफरत नहीं होती।