बिड़ला का सुझाव प्रश्नकाल के सत्र के दौरान आया। प्रश्नकाल आम तौर पर लोकसभा के सत्र के पहले घंटे का समय उन सवालों के लिए समर्पित होता है जो संसद सदस्य प्रशासनिक गतिविधि के किसी भी पहलू के बारे में उठाते हैं और संबंधित मंत्री संसद में या तो मौखिक या लिखित रूप से जवाब देने के लिए बाध्य होते हैं। यह उठाए गए प्रश्न के प्रकार पर निर्भर करता है।
प्रश्नकाल के महत्व का उल्लेख करते हुए अध्यक्ष ने कहा, प्रश्नों को छोटे वाक्यों में पूछा जाना चाहिए और संबंधित मंत्रियों द्वारा उत्तर भी संक्षेप में होना चाहिए ताकि अधिकतम प्रश्न लिए जा सकें।
बिरला ने पूर्व के अवसरों पर भी सांसदों से इसी तरह के अनुरोध किए हैं।
प्रश्नकाल के माध्यम से सरकार राष्ट्र की नब्ज को तुरंत महसूस कर सकती है और अपनी नीतियों और कार्यों को उसी के अनुसार ढाल सकती है। संसद में सवालों के माध्यम से ही सरकार लोगों के साथ संपर्क में रहती है क्योंकि सदस्यों को सक्षम किया जाता है जिससे प्रशासन के मामलों में जनता की शिकायतों को दूर किया जा सके।
प्रश्न मंत्रालयों को उनकी नीति और प्रशासन के लिए लोकप्रिय प्रतिक्रिया को प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं। प्रश्न मंत्रियों के संज्ञान में कई खामियों को सामने लाते हैं, जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। जब सदस्यों द्वारा उठाए गए मामले जनता के मन को आंदोलित करने के लिए पर्याप्त होते हैं और व्यापक सार्वजनिक महत्व के होते हैं तो कभी-कभी प्रश्न आयोग की नियुक्ति, अदालती जांच या यहां तक कि कानून बनाने तक का कारण बन सकते हैं।
प्रश्नकाल संसदीय कार्यवाही का एक दिलचस्प हिस्सा है। एक प्रश्न के माध्यम से मुख्य रूप से जानकारी मांगी जाती है और किसी विशेष विषय पर तथ्यों को उजागर करने की कोशिश होती है।
प्रश्नकाल के दौरान कभी-कभी पर्याप्त व महत्वपूर्ण जानकारी/सूचना प्राप्त करने के साथ-साथ हास्य की भी बातें होती हैं। यही कारण है कि सार्वजनिक दीर्घाएं, और प्रेस दीर्घाएं प्रश्नकाल के दौरान क्षमता के अनुसार भरी होती हैं।
–आईएएनएस
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