सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधिकरणों में रिक्त पदों को दयनीय स्थिति बताते हुए केंद्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना ने शुक्रवार को देश भर में न्यायाधिकरणों (ट्रिब्यूनल्स) की दयनीय स्थिति और रिक्त पदों पर प्रकाश डाला।

सीजेआई ने न्यायाधिकरणों में रिक्त पदों की एक लंबी सूची पढ़ते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वह अपना रुख स्पष्ट करे कि क्या वह वास्तव में न्यायाधिकरणों को जारी रखने के लिए इच्छुक है या उन्हें बंद करना पसंद करती है।

रमना के साथ पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल थे। पीठ ने यह भी कहा कि केंद्र द्वारा विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्त पदों को भरने में देरी उनके कामकाज को प्रभावित कर रही है और लोगों को कानूनी उपायों नहीं मिल पा रहे हैं।

बेंच ने ट्रिब्यूनल में रिक्तियों की लंबी सूची को पढ़ा और कहा कि सभी ट्रिब्यूनल में 19 पीठासीन अधिकारी, 110 न्यायिक सदस्य और 111 तकनीकी नंबर्स लंबित हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह न्यायाधिकरण का परि²श्य है। हमें नहीं पता कि सरकार का क्या रुख है।

पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, क्या आप इन न्यायाधिकरणों को जारी रखना चाहते हैं या उन्हें बंद करना चाहते हैं। इस पर कुछ करने की जरूरत है।

पीठ ने कहा, हम जो धारणा बना रहे हैं वह यह है कि ऐसा लगता है कि नौकरशाही न्यायाधिकरण नहीं चाहती। केंद्र सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह वास्तव में न्यायाधिकरणों को जारी रखना चाहती है या उन्हें बंद करना चाहती है।

शीर्ष अदालत ने केंद्र को यह भी आगाह किया कि यदि मामले में तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो वह शीर्ष स्तर के अधिकारियों की उपस्थिति की मांग करेगा। शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर केंद्र से एक सप्ताह के भीतर स्टैंड लेने को कहा।

मद्रास बार एसोसिएशन मामले में शीर्ष अदालत के हालिया फैसले का हवाला देते हुए, जहां उसने ट्रिब्यूनल के सदस्यों के लिए न्यूनतम कार्यकाल और योग्यता निर्धारित की है, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, यह अंतहीन बात है। मद्रास बार ने कितनी बार याचिका दायर की? तीन न्यायाधीश, पांच न्यायाधीश और फिर से तीन जजों ने फैसला सुनाया।

प्रधान न्यायाधीश के साथ सहमति जताते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, आप न्यायाधिकरणों को निष्क्रिय नहीं कर सकते। यदि आप न्यायाधिकरण नहीं चाहते हैं, तो हम उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को बहाल करेंगे। हम लोगों को बिना उपाय के नहीं रख सकते।

मेहता ने प्रस्तुत किया कि इसकी आवश्यकता नहीं होगी और मामले पर जवाब देने के लिए 10 दिनों का समय मांगा। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 16 अगस्त को निर्धारित की है।

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जीएसटी न्यायाधिकरण के गठन की मांग करने वाले वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी की जनहित याचिका पर केंद्र और जीएसटी परिषद को नोटिस भी जारी किया।

शीर्ष अदालत ने देश भर के विभिन्न न्यायाधिकरणों में रिक्तियों के संबंध में अन्य जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। पीठ ने कहा कि यह एक खेदजनक स्थिति है कि अधिनियम के चार साल लागू होने के बावजूद, जीएसटी न्यायाधिकरणों की स्थापना नहीं की गई है।

2016 में, जीएसटी विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया था और केंद्रीय वस्तु एवं सेवा अधिनियम 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। अधिनियम की धारा 109 एक जीएसटी अपीलीय न्यायाधिकरण के गठन को अनिवार्य करती है, जिसे अधिनियम के अस्तित्व में आने के चार साल बाद भी गठित नहीं किया गया है।

साहनी ने याचिका में कहा, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 109 के तहत अपीलीय न्यायाधिकरण की राष्ट्रीय और अन्य पीठों का गठन समय की परम आवश्यकता बन गया है और प्रतिवादी इसके संविधान को अनिश्चित काल तक नहीं खींच सकते।

–आईएएनएस

एकेके/एएनएम