सेंगर प्रकरण: अखिलेश से अलग कैसे है योगी सरकार?

उन्नाव : उत्तर प्रदेश में अब योगी आदित्यनाथ की सरकार है, जो लोग कल तक अखिलेश सरकार के कामकाज पर ऊँगली उठा रहे थे, आज उनके पास कहने को कुछ नहीं है। क्योंकि अगर वह कुछ कहते हैं तो इसे अपनी ही पार्टी से बेवफाई कहा जायेगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि उनके मन में अब सवालों ने जन्म लेना शुरू कर दिया है और किसी न किसी दिन ये सवाल शब्द बनकर सामने आ ही जाएंगे। उस वक़्त शायद योगी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए जवाब देना मुश्किल होगा। उत्तर प्रदेश में इस वक़्त भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लेकर राजनीति चल रही है। बलात्कार के आरोपी को जिस तरह से राज्य सरकार ने बचाने का प्रयास किया है, उसने न सिर्फ जनता बल्कि स्वयं भाजपा कार्यकर्ताओं को सकते में डाल दिया है। कई भाजपा नेता यह मानते हैं कि सेंगर प्रकरण से पार्टी की छवि प्रभावित हुई है और जनता के बीच यह संदेश गया है कि भाजपा की कथनी और करनी में फर्क है। फर्क इस तरह कि जब गायत्री प्रजापति को तत्कालीन सपा सरकार ने बचाने का प्रयास किया था, तो भाजपा ने हमलावर हो गई थी। प्रजापति पर भी बलात्कार का आरोप था। प्रजापति को अखिलेश सरकार का सबसे ताकतवर मंत्री माना जाता था, ताकतवर इस लिहाज से कि वह सपा की आर्थिक नब्ज थे। पार्टी को धन मुहैया कराने वाला अपने आप ही ताकतवर हो जाता है, क्योंकि कोई भी काम लक्ष्मी की कृपा के बगैर नहीं हो सकता। कहा जाता है कि प्रजापति खनन के धंधे से पार्टी के लिए फंड की व्यवस्था करते थे, इस नाते उनकी पहुँच सीधे पार्टी के स्तर तक थी। उस दौर में वह मुलायम सिंह के खासमखास भी रहे थे। बलात्कार के आरोप के बावजूद भी जब उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा रहा था, तो सोशल मीडिया में उनकी एक फोटो खूब वायरल हुई, जिसमें प्रजापति मुलायम सिंह के पास बैठकर उनकी चरण वंदना कर रहे हैं।

फिर इतना प्यार क्यों?
सेंगर के संबंध में ऐसा कुछ नहीं है, न ही उनका भाजपा से जुड़ाव बहुत पुराना है। सेंगर 2002 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक थे, 2007 और 2012 में सपा की टिकट पर विधानसभा पहुंचे और हवा का रुख बदलता देख 2017 में भाजपा का दामन थाम लिया। बावजूद इसके जिस तरह का प्यार योगी सरकार ने सेंगर पर बरसाया है, उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या सेंगर को जातिवाद के नाम पर बचाया गया? कम ही लोग जानते हैं कि सेंगर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की बिरादरी से आते हैं।

सरकार के दो चेहरे
इस पूरे मामले में राज्य सरकार के दो चेहरे नजर आये। एक चेहरा वह जिसमें मुख्यमंत्री योगी दोषियों को न बख्शने की बात करते रहे, और दूसरा चेहरा वह जिसमें पुलिस प्रशासन सेंगर की गिरफ्तार से बचता रहा। भाजपा विधायक पर नाबालिग से बलात्कार का आरोप है और उन पर प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेज़ एक्ट यानी पॉक्सो के तहत केस दर्ज हुआ है। लेकिन राज्य पुलिस ने इस कानून की गंभीरता को समझने तक की कोशिश नहीं की।

मर गई इंसानियत  
यह मामला सत्ता के दम पर सिस्टम को बदलने का जीवंत उदाहरण है। जिसमें पहले पीड़िता मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह का प्रयास करती है फिर उसके पिता को प्रताड़ित करके मौत की ओर धकेल दिया जाता है। सोशल मीडिया पर पीड़िता के पिता के जो वीडियो वायरल हो रहे हैं, उसमें पुलिस की संजीदगी साफ़ तौर पर नज़र आ रही है। ऐसा लगता है कि बदमाशों को मारते-मारते यूपी पुलिस अपने अंदर की इंसानियत को भी मार बैठी है।

राज्यपाल क्यों हैं खामोश?
एक बात और है जो इस प्रकरण में खटक रही है। वो यह कि राज्यपाल की ओर से वैसी प्रतिक्रिया देखने को अब तक नहीं मिली है, जैसी गायत्री प्रजापति के मामले में उन्होंने दिखाई थी। जबकि दोनों ही मामलों में आरोप और सरकारों की निष्क्रियता एक जैसी है। प्रजापति के मामले में राज्यपाल राम नाइक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कार्रवाई न किए जाने के संबंध में एक पत्र लिखा था। राम नाइक अभी भी राज्यपाल हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। क्या जिस लोकतांत्रिक शुचिता, संवैधानिक मर्यादा की सीख अखिलेश के लिए ज़रूरी थी, क्या वही मौजूदा परिवेश में योगी आदित्यनाथ के लिए ज़रूरी नहीं? यह सवाल पूछा जाना चाहिए।

कुल मिलाकर कहा जाए तो योगी सरकार अखिलेश सरकार के पदचिन्हों पर चलती नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को वोट किसी का अनुसरण करने के लिए नहीं बल्कि एक नए प्रदेश के उदय के लिए दिया था। एक ऐसा प्रदेश जहाँ कानून सबके लिए बराबर हो, लेकिन लगता है सत्ता के गलियारे में दाखिल होने के बाद योगी और भाजपा सबकुछ भूल गए हैं।