हारकर जीतने वाले को अमित शाह कहते हैं

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में जब भाजपा को गोरखपुर और फूलपुर जैसी लोकसभा सीटों पर शिकस्त मिली, तो पार्टी की रणनीति पर सवाल उठाए गए। कहा गया कि अमित शाह सियासी गुणा-भाग को समझने में नाकामयाब रहे। लेकिन राज्यसभा चुनावों के परिणाम ने एक तरह से सबकी जुबां पर ताला लगा दिया। यूपी समेत सात राज्यों में राज्यसभा की 25 सीटों में से 12 पर भाजपा ने कब्ज़ा जमाया। इस तरह उसकी स्थिति अब उच्च सदन में भी मजबूत हो गई है। संख्याबल के हिसाब से देखें तो भाजपा यहाँ भी सबसे बड़ी पार्टी है, मतलब आने वाले वक़्त में उसे राज्यसभा से बिल पास करवाने के लिए कांग्रेस को मनाने की ज्यादा ज़रूरत नहीं होगी।

मजबूत हुई स्थिति 
राज्यसभा में भाजपा का संख्याबल बढ़कर 58 से 69 हो गया है। एनडीए की बात करें तो उसके पास अब 87 सीटें हैं, जबकि यूपीए के पास 57 और अन्य के पास 100 सीटें रहेंगी। कांग्रेस ने इस चुनाव में 10 सीटें जीतीं, लेकिन उसे 4 सीटों का नुकसान भी हुआ। यूपी में दो सीट जीतने से उत्साहित समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव दुस्वप्न की तरह रहा। वह यूपी में केवल एक सीट ही जीतने में कामयाब हो सकी। इससे पहले 10 में से उसके पास 6 सीटें थीं। इसी तरह बसपा के पास 10 में से 2 सीटें थीं, मगर इस बार वह एक भी सीट नहीं जीत सकी।

बखूबी समझा गणित 
राज्यसभा का चुनाव अमित शाह के लिए भी एक चुनौती था। भले ही पार्टी स्तर पर उनपर कोई दबाव न डाला जा रहा हो, लेकिन यूपी की दो सीटों पर मिली हार ने उनकी रणनीति को ज़रूर प्रभावित किया था। लगभग सभी दलों को पता था कि राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग होगी, और जो इस गणित को समझने में सफल रहेगा जीत उसकी झोली में जाना तय है। यूपी की 10वीं सीट पर अनिल अग्रवाल विजयी रहे। उनकी इस जीत में अमित शाह की रणनीति ने अहम किरदार निभाया। इस सीट पर सपा और बसपा के संयुक्त उम्मीदवार को शिकस्त झेलनी पड़ी, जबकि उन्हें कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त था। अग्रवाल की जीत में बड़ा योगदान बसपा के अनिल सिंह और सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल का भी रहा, उनकी क्रॉस वोटिंग ने शाह की रणनीति को माकूल अंजाम तक पहुंचाया। इसके अलावा दो प्रभावशाली ब्राह्मणों का वोट हासिल करने में भी अमित शाह को सफलता मिली। जिनमें एक थे निषाद पार्टी के विजय मिश्रा और दूसरे विवादित निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी।

समर्थन मिलना तय 
हालांकि अभी राज्यसभा में 115 सदस्यों (यूपीए, लेफ्ट और तृणमूल) की तरफ से सरकार को कड़ी चुनौती मिलती रहने वाली है। सरकार के पास 3 सदस्यों के कार्यकाल खत्म होने पर नए सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। माना जा रहा है कि ये तीन सदस्य भी सरकार का ही समर्थन करेंगे। निर्दलीय सदस्यों के भी सरकार के साथ ही आने की संभावना है। सरकार अहम मुद्दे पर अपने पूर्व सहयोगी इंडियन नेशनल लोक दल से भी बात कर सकती है जिसके पास राज्यसभा की एक सीट है। वैसे यदि एआईएडीएमके, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी जैसी पार्टियों का समर्थन उसे मिल जाता है तो बहुमत के आंकड़े यानी 123 को हासिल करना कठिन नहीं होगा। अमित शाह इस दिशा में कदम आगे बढ़ा चुके हैं और आश्चर्य नहीं होगा कि भाजपा राज्यसभा में भी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाए। कुल मिलाकर कहा जाए तो अमित शाह भाजपा के लिए एक खिलाड़ी साबित हो रहे हैं, जिन्हें हारकर जीतना आता है।