नए श्रम कानून के खिलाफ 26 को मजदूरों की देशव्यापी हड़ताल

पिंपरी। केंद्र सरकार ने हालिया सत्र में प्रचलित 29 श्रम कानून रद्द कर नए चार कानून पारित किए। जोकि मजदूरों के हित के विरोधी हैं। इन कानूनों को रद्द कर पहले के श्रम कानून की अमलबाजी की जाय, वित्त और रक्षा विभाग का निजीकरण और ठेकेदारीकरण रद्द करें समेत विभिन्न मांगों को लेकर संविधान दिवस यानी 26 नवंबर को सभी क्षेत्रों के मजदूर संगठनों ने मिलकर राष्ट्रीय हड़ताल का ऐलान किया है। इसकी जानकारी पुणे जिला मजदूर संगठन संयुक्त कृति समिति की ओर से गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में दी गई।
पिंपरी चिंचवड़ के आकुर्डी स्थित श्रमशक्ति भवन में समिति के अध्यक्ष डॉ कैलाश कदम ने इसकी आधिकारिक जानकारी दी। इस मौके पर सीटू संगठन के डॉ. अजित अभ्यंकर, इंटक मनोहर गडेकर, हमीद इनामदार, एलआयसी के चंद्रकांत तिवारी, आयटक के एस. डी. घोडके, अमिल रोहम, एल.एस. मारु, राष्ट्रीय श्रमिक एकता महासंघ के किशोर ढोकले, राजेंद्र दरेकर, दत्तात्रय येलवंडे, दिलीप पवार, सीटू के वसंत पवार, गणेश दराडे समेत विभिन्न मजदूर संंगठनों के मजदूर नेता उपस्थित थे। डॉ अभ्यंकर ने बताया कि इस हड़ताल में पुणे जिले के करीबन तीन लाख मजदूर सड़कों पर उतरेंगे।
डॉ कैलाश कदम ने कहा कि संसदीय सत्र में, सरकार ने विपक्ष की अनुपस्थिति में बिना किसी चर्चा के मौजूदा श्रम कानूनों को रद्द करके पूंजीपतियों के पक्ष में नए श्रम कानून पारित किए। इनमें ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2019 और द इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 शामिल हैं। इससे श्रमिकों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा समाप्त हो जाएगी, श्रमिकों को गुलाम बनाया जाएगा और नियोक्ताओं को तानाशाही का अधिकार दिया जाएगा। डॉ  अजीत अभ्यंकर ने कहा कि नए कानून किसी भी समय श्रमिकों की सेवा सुरक्षा को खत्म कर देंगे और प्रबंधन को बिना किसी कारण के किसी भी क्षण श्रमिकों को आग लगाने की आजादी देंगे। इन कानूनों का कड़ा विरोध है, साथ ही केंद्र सरकार के वित्त, बीमा, रक्षा, क्षेत्र के निजीकरण और अनुबंध पर भी।
कृति समिति की ओर से विभिन्न मांगें सरकार के समक्ष रखी गई हैं। इसमें संगठित और असंगठित क्षेत्र के उन श्रमिकों को कम से कम दस हजार रुपये का अनुदान दिया जाना चाहिए जो तालाबंदी के कारण बेरोजगार हो गए हैं। सभी को राशन की दुकान से हर महीने अनाज दिया जाना चाहिए, जब तक कि कोरोना का संकट न दूर हो जाए। अवैध रूप से बंद की गई सभी फैक्ट्रियों के श्रमिकों को पूरा वेतन दिया जाए। कोरोना अवधि का बिजली बिल माफ करें।  स्वामीनाथन आयोग को लागू किया जाए। मनरेगा को एक वर्ष में कम से कम 200 कार्य दिवस प्रदान करने चाहिए। शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना का भी परिचय दें। कोरोना अवधि के दौरान आंगनवाड़ी और आशा कर्मचारियों ने अपने जीवन के जोखिम पर काम किया है। उन्हें स्थायी सेवा में रखा जाना चाहिए।कुल जीडीपी का तीन फीसदी हेल्थकेयर को आवंटित किया जाना चाहिए। महाराष्ट्र राज्य सरकार के आदेश के अनुसार, सभी स्थायी और अनुबंध श्रमिकों को लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रतिष्ठानों द्वारा पूरी मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए।