9 महीने बाद 1600 किलोमीटर का ‘भुलभुलैया’ पार कर लौटीं 60 वर्षीय बुजुर्ग, दो औरंगाबाद के चलते पहुंच गईं थीं महाराष्ट्र से झारखंड

औरंगाबाद.ऑनलाइन टीम

कोरोना के चलते देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लागू कर दिया गया था।  काम न होने के चलते प्रवासी मजदूर अपने पैतृक गांवों को लौट रहे थे।  इसी बीच, औरंगाबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर कोलाघर गांव में रहने वाली 60 वर्षीय मीठाबाई कुंभाफले  एक दिन वह पैदल घर से निकलीं थी, लेकिन रास्ते में जिला अधिकारियों ने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठा लिया और कहा कि उनकी कोरोना जांच होनी है।  जांच केंद्र पर पहुंची तो वह अधिकारियों की टीम से अलग हो गई और भटक गई।

फिर प्रवासी मजदूरों के एक समूह के साथ चल पड़ीं, जोकि लॉकडाउन के कारण अपने पैतृक गांवों को लौट रहे थे। जब मजदूरों ने पूछा कि उन्हें कहां जाना है तो मीठाबाई ने कहा औरंगाबाद। उन्हें लगा कि वह बिहार के औरंगाबाद की बात कर रही हैं। वे सभी भी बिहार जा रहे थे। सभी बिहार जाने वाली ट्रेन में बैठ गए।  औरंगाबाद पहुंचने के कुछ घंटे पहले मीठाबाई को लगा कि वह गलत रास्ते पर जा रही हैं। झारखंड के लातेहार में स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो मीठाबाई भी वहां उतर गईं। स्टेशन पर कई प्रवासी मजदूर भी ट्रेन से उतरे। रेलवे स्टेशन पर मौजूद स्वास्थ्य अधिकारी मीठाबाई समेत सभी लोगों को क्वारंटीन के लिए ले गए। बाद में उन्हें गुरुकुल अनाथालय में शिफ्ट कर दिया गया, यहां 22 लड़कियां भी रह रही थीं, क्योंकि वह कहीं जाना नहीं चाहती थीं और सिर्फ मराठी बोलती थीं।

लातेहार के कलेक्टर अबू इमरान को इसकी जानकारी मिली। अबू इमरान ने महाराष्ट्र से अपने कुछ दोस्तों को बुलाया। उनके बैच के साथी और आईआरएस अधिकारी समीर वानखेड़े और आजम शेख ने मीठाबाई से बातचीत की। जिसके बाद पता चला कि वह महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से हैं। औरंगाबाद जिले के कलेक्टर से बात की गई। उन्होंने सभी अधिकारियों को मीठाबाई के परिवार को तलाशने के निर्देश दिए। पुलिस अधिकारियों ने रिकॉर्ड खंगाले तो परिवार की ओर से दर्ज मीठाबाई की गुमशुदगी की रिपोर्ट मिली।

तब जाकर उनके परिवार का पता चला। कलेक्टर ने मीठाबाई की उनके परिवार से फोन पर बात करवाई। अर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण ग्रामीणों ने पेट्रोल और अन्य खर्च के तौर पर 4000 रुपये जमा किए। जिसके बाद मीठाबाई के बेटे, सरपंच और पुलिस की एक छोटी टीम मीठाबाई को लेने के लिए झारखंड निकले और उन्हें वापस घर ले आए।  24 नवंबर को वह अपने गांव लौटी। यहां स्थानीय लोगों ने एक नायक की तरह उनका स्वागत किया।