बिहार चुनाव : बीजेपी का स्ट्राइक रेट बेहतर, लेकिन अंत तक तेजस्वी की दहशत

पटना. ऑनलाइन टीम  बिहार में एनडीए गठबंधन ने बहुमत हासिल कर लिया है। जिस तरह से भाजपा की स्ट्राइक रेट चरण-दर-चरण आगे बढ़ रही है, उसे देखकर अब जानकार तो यहां तक कयास लगाने लगे हैं कि हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का सीधा मुकाबला जेडीयू से हो। लेकिन इस चुनाव का अहम और बड़ा निष्कर्ष यह है कि तेजस्वी यादव बिहार चुनाव में स्ट्रांग लीडर के रूप में उभर के सामने आए हैं। अकेले अपने दम पर एक्जिट पोल से लेकर मतगणना के पहले चरण तक विरोधी खेमे में इनका चेहरा ही दहशत बना रहा और अंत तक किसी को यह कहने की हिम्मत नही हो रही थी कि अब तेजस्वी से उन्हें कोई खतरा नहीं।

आज से पांच साल पहले जब तेजस्वी यादव को लालू यादव ने एक तरीके से प्रोजेक्ट करना शुरू किया था, तब एक रैली हुई थी अगस्त 2017 में पटना के गांधी मैदान में, तब वहां पर सीधे तौर पर तेजस्वी ने शंखनाद किया था और अभी वह  31 साल के ही हैं।  पिछले 40 दिन में तेजस्वी यादव ने किस तरह से हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ा, नया एजेंडा सामने रखा उसकी कल्पना पहले नहीं गई थी। तेजस्वी ने बड़ी रणनीति बनाई- आरजेडी के किसी पोस्टर में लालू यादव, राबड़ी देवी और उनकी बहन नहीं दिखी। जब ये नहीं दिखते थे तो एनडीए के नेताओं को लगता था कि अगर ये होते तो ज्यादा अटैक करने का उनको मौका मिलता,  लेकिन तेजस्वी यादव ने जिस तरीके से अपने रणनीतिकारों की टोली बनाई और काम किया, आज की तारीख में इसके लिए तेजस्वी यादव को शाबाशी देनी होगी।

तेजस्वी यादव यह मैसेज देने में पूरी तरह से कामयाब रहे कि लालू के कथित ‘जंगलराज’ से उनकी राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। वो 31 साल के बिहार के नौजवान है, चाहे वो नौवीं पास हों या फेल हों लेकिन उनके पास एक विजन है एक विजन है कि यहां हम रोजगार पैदा करेंगे, यहां हम इंडस्ट्री लाएंगे।

चुनाव से पहले तेजस्वी यादव कोरोना के समय बिहार से लगातार गायब रहे, इसकी बहुत आलोचना हुई।  तब उनके घर में पारिवारिक कलह भी चल रहा था। उनके भाई तेजप्रताप और उनकी पत्नी ऐश्वर्या के बीच केस चल रहा है। मीसा भारती को लेकर भी चर्चाएं थी कि वो राजनीति में अपनी कद बढ़ाना चाहती हैं। इन सबके बीच तेजस्वी यादव दिल्ली में कैंप करते रहे, कई बार वो बाहर भी गए। इलेक्शन कमीशन ने जब चुनाव की डेट की घोषणा की तब लग रहा था कि यह एकतरफा चुनाव है, इसमें आरजेडी के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। एनडीए 200 के आसपास सीटें ले आएगा। लेकिन इसके बाद जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने पॉजिटिव पॉलिटिक्स की, उन्होंने ये नहीं कहा कि मैं ये कर दूंगा या वो कर दूंगा या इस जाति को यह कर दूंगा। उन्होंने 10 लाख नौकरियों का वादा किया।

यह देख दूसरे फेज में एनडीए ने अपनी रणनीति में बदला किया और मुद्दों को आधार बनाकर कैंपेन शुरू किया। पीएम नरेंद्र मोदी  और सीएम नीतीश कुमार  ने अपने-अपने वोटरों को साधने के लिए जमकर प्रचार किया। 3 नवंबर को हुए दूसरे फेज में 94 सीटों पर वोटिंग हुई थी और एनडीए का स्ट्राइक रेट बढ़कर 54.3 फीसदी हो गया, जबकि यहां से महागठबंधन पिछड़ना शुरू हो गया। दूसरे फेज में उसका स्ट्राइक रेट घटकर 44.7 फीसदी ही रह गया। तीसरे फेज में एनडीए के वोटरों ने जमकर वोटिंग की और उसकी वापसी इस फेज से तय हो गई। तीसरे और अंतिम फेज में 78 सीटों पर 7 नवंबर को वोटिंग हुई थी। इस फेज में एनडीए का स्ट्राइक रेट 66.7 प्रतिशत रहा जबकि महागठबंधन का स्ट्राइक रेट घटकर 26.9 फीसदी ही रह गया।