दरअसल 1946 में 18 वर्ष की उम्र में नारायण की शादी 13 साल की सारदा से हुई थी। महज आठ महीने बाद ही उनकी प्रेम कहानी का अंत भी हो गया। दिसंबर 1946 में नारायण और उनके पिता थालियान रमन नांबियार ने कावुंबाई किसान विद्रोह में हिस्सा लेने का फैसला किया। यह विद्रोह सामंतवादी करकट्टयम नयनार के खिलाफ था। जिसने कन्नूर में कई हिस्सों में किसानों की जमीन पर नियंत्रण किया हुआ था।
30 दिसंबर 1946 को नारायण और उनके पिता सहित करीब 500 किसानों ने हथियारों के साथ नयनार के घर पर हमला करने की योजना बनाई। हालांकि ब्रिटिश शासन के अधीन मालाबार स्पेशल पुलिस ने इलाके को पहले ही चारों ओर से घेर लिया और किसानों पर मशीन गन से फायरिंग कर दी। इसमें पांच किसान मारे गए, जबकि नारायण और उनके पिता को भूमिगत होना पड़ा। बाद में पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर कन्नूर और सालेम जेल में डाल दिया। इस दौरान जेल में ही नारायण के पिता को गोली मार दी गई।
31 दिसंबर, 1946 को मालाबार स्पेशल पुलिस सारदा और उनकी मां के घर पहुंची। उन्हें शक था कि नारायण और उनके पिता वहां जरूर आएंगे। पुलिस ने घर तोड़कर आग के हवाले कर दिया। नारायण के वापस आने की जब सभी उम्मीदें खत्म हो गईं तो सारदा ने दूसरी शादी का फैसला किया। आठ साल बाद नारायण रिहा हुए तो पता चला कि सारदा ने तो अब दूसरी शादी कर ली है। इसके बाद नारायण ने दूसरी शादी कर ली। उस शादी से उनके सात बच्चे हैं।