ट्यूबर्क्युलोस मेनिनजाइटिसग्रस्त महिला की जटिल प्रसूति

पिंपरी : समाचार ऑनलाईन – आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने एक महिला की दुर्लभ और जटिल समस्या को दूर करने में सफलता पाई है, जो 29 हफ़्ते की गर्भवती (आईवीएफ) थी तथा ट्यूबर्क्युलोस मेनिनजाइटिस से पीड़ित थी।
औंध की निवासी श्वेता (बदला हुआ नाम) 29 हफ़्ते की गर्भवती थी, जिसने अपनी शादी के 12 साल बाद आईवीएफ के माध्यम से गर्भधारण किया और बाद में जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। उसे अपने रोज़मर्रा के काम-काज में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, साथ ही उसे गंभीर सिरदर्द, शाम के वक़्त बुखार के अलावा नींद के अनियमित चक्र से भी जूझना पड़ता था। उसने स्थानीय चिकित्सक से भी सलाह ली, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
जब श्वेता को अस्पताल लाया गया, तब उसकी हालत काफी गंभीर थी। शुरुआती एमआरआई से उसमें इंटरनल हाइड्रोसिफ़लस (ट्यूबर्क्युलोसिस के गंभीर संक्रमण की वजह से मस्तिष्क के वेन्ट्रिकल्स की गहराइयों में तरल पदार्थ का निर्माण, जो मस्तिष्क और मेनिन्जेस को प्रभावित करता है) के लक्षण दिखाई दिए। उसकी लगातार बिगड़ रही स्थिति तथा उसके 29 हफ़्ते के गर्भ को देखते हुए, उसे तुरंत वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया।
आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल में कंसल्टेंट गाइनकोलॉजिस्ट, डॉ. रोहन एस. पुरोहित ने बताया, “मरीज गर्भवती थी तथा उसकी गंभीर स्थिति माँ और भ्रूण, दोनों के लिए घातक हो सकती थी। परंतु हमें सबसे पहले मस्तिष्क के वेन्ट्रिकल्स की गहराइयों में तरल पदार्थ के निर्माण से निपटना था।”
एक मल्टी-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल होने के नाते, न्यूरोसर्जन डॉ. राकेश रंजन को तुरंत बुलाया गया तथा उस तरल पदार्थ को जल्द-से-जल्द निकालने के लिए वेंट्रिक्यूलोपरिटोनियल शंट (यह एक प्रकार का मेडिकल डिवाइस है, जो फ्लूड के जमा होने के कारण मस्तिष्क पर दबाव से राहत देता है) एवं एक्सटर्नल वेंट्रिक्यूलर ड्रेन के पारंपरिक तरीकों के बजाय मिनिमल इनवेसिव तरीके का इस्तेमाल किया गया, ताकि गर्भावस्था की स्थिति से जुड़े जोखिम से बचा जा सके।
इसके अलावा, एंडोस्कोपिक वेंट्रिक्यूलोस्टॉमी के दौरान मरीज में कई ट्यूबरकल्स देखे गए, जिसकी वजह से ट्यूबर्क्युलोस मेनिन्जाइटिस होने की आशंका काफी बढ़ गई। अधिक विलंब किए बिना न्यूरोलॉजिस्ट, डॉ. निलेश नादकर्णी द्वारा स्टेरॉइड के साथ एंटीट्यूबर्क्युलर ट्रीटमेंट के माध्यम से मरीज का उपचार आरंभ किया गया, ताकि उसके मस्तिष्क की सूजन को कम किया जा सके। 5 दिनों तक हाई डिपेंडेंसी यूनिट (HDU) में भर्ती के बाद, पहले बच्चे के चारों ओर मेम्ब्रेन्स की उसकी थैली टूट गई, जिसकी हालत पहले से ही बेहद खराब थी। आमतौर पर मेम्ब्रेन्स के समय से पहले टूटने (PPROM) की स्थिति गंभीर संक्रमण वाले मरीजों में उत्पन्न होती है।
आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल में कंसल्टेंट गाइनकोलॉजिस्ट, डॉ. रोहन एस. पुरोहित ने बताया, “मेम्ब्रेन्स के टूटने की वजह से स्थिति और ज़्यादा जटिल हो गई, इसलिए मल्टीडिसप्लनेरी टीम के साथ बैठक तथा रिश्तेदारों से सहमति प्राप्त करने के बाद, हमने प्रसव के दौरान या इसके पहले कोरियोएमिनोनिटीस एवं सेप्सिस नामक बैक्टीरियल इनफेक्शन के जोखिम को कम करने के लिए बच्चे को जन्म दिलाने का निर्णय लिया, जिसकी वजह से टिशू को नुकसान, अंग की विफलता और मृत्यु की संभावना होती है।
उन्होंने आगे बताया, “इसके लिए सिजेरियन सेक्शन किया गया था तथा उन्होंने जुड़वां बच्चों, 1.1 किग्रा के लड़के और 1.3 किग्रा की लड़की को जन्म दिया। दोनों बच्चों की स्थिति बेहतर थी तथा निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में उन्हें न्यूनतम समर्थन की आवश्यकता थी। RNTCP दिशानिर्देशों के अनुसार, टीबी के जोखिम को कम करने के लिए दोनों जुड़वां बच्चों को आईएनएच कीमोप्रोफिलैक्सिस दिया गया। 35 दिनों के बाद, मरीज को वेंटिलेटर से हटा दिया गया तथा उन्हें बाएं अंग के मांसपेशियों में कमजोरी एवं अफैशि़आ (बोलने में असमर्थता) के साथ घर भेज दिया गया। धीरे-धीरे, बेहतर पोषण के साथ-साथ एंटी ट्यूबरकुलर उपचार एवं फिजियोथेरेपी मरीज का स्वास्थ्य अच्छा हो गया। फिलहाल मरीज पूरी तरह स्वस्थ है तथा वह स्वतंत्र रूप से चलने-फिरने, अच्छी तरह बातचीत करने में समर्थ है, साथ ही उसकी याददाश्त भी सही सलामत है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह दोनों बच्चों को अपनी बाहों में उठा सकती है।”
इस पूरे मामले को डॉक्टरों की एक टीम ने अंजाम दिया, जिसमें डॉ. रोहन पुरोहित – कंसल्टेंट गाइनकोलॉजिस्ट/ ऑब्स्टिट्रिशन, डॉ. राकेश रंजन- कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन, डॉ. निलेश नाडकर्णी- कंसल्टेंट न्यूरोफिज़िशियन, डॉ. उर्वी शुक्ला- कंसल्टेंट क्रिटिकल केयर फिजिशियन, डॉ. संगीता ठाकरे- स्पेशलिस्ट क्रिटिकल केयर, तथा डॉ. पूजा अग्रवाल- कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजिस्ट शामिल थे।
भारत में ट्यूबरकुलोसिस बड़े पैमाने पर फैला हुआ है, तथा इनमें से केवल 1% मामले टीबी मेनिन्जाइटिस से संबंधित होते हैं। गर्भावस्था के दौरान जटिल टीबी मेनिन्जाइटिस अत्यंत दुर्लभ और गंभीर स्थिति है, जिसमें माता और शिशु, दोनों के लिए मृत्यु दर 40-50% होती है। टर्शीएरी केयर इंस्टीट्यूट में इस तरह के मामलों में हमेशा मल्टीडिसप्लनेरी टीम की देख-रेख में उपचार किया जाता है” श्रीमती रेखा दुबे, सीईओ, आदित्य बिरला मेमोरियल हॉस्पिटल, ने बताया। उन्होंने आगे कहा, ” हर बार जब हमारे विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ऐसे किसी जटिल मामले को हल करती है तो हमें बेहद खुशी का अनुभव होता है, तथा इस मामले को अब 17 से 19 जून, 2019 के दौरान लंदन, यूके में आयोजित बेहद प्रतिष्ठित आरसीओजी (रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्स्टिट्रिशन/ गाइनकोलॉजिस्ट) वर्ल्ड कांग्रेस में प्रस्तुति के लिए चुना गया है।”
इस कठिन अग्निपरीक्षा के अंत में, श्वेता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले कुछ महीने बेहद उतार-चढ़ाव भरे रोलर कोस्टर की सवारी की तरह रहे हैं। परंतु अब अपने बच्चों को अपनी बाहों में लेने के बाद उनके लिए सब कुछ सही हो गया है तथा यह दर्द उनके लिए अनमोल है। श्वेता ने कहा, “हमेशा मेरा साथ देने वाले परिवार के सदस्यों तथा आदित्य बिरला हॉस्पिटल के डॉक्टरों की श्रेष्ठतम टीम के सहयोग के बिना मेरी यह यात्रा संभव नहीं थी।”