क्रूरता की इंतहा: अब कुत्तों का एनकाउंटर कर रही यूपी पुलिस  

सीतापुर

बदमाशों का सफाया करते-करते अब उत्तर प्रदेश पुलिस कुत्तों को साफ़ करने के अभियान में जुट गई है। बदमाशों के एनकाउंटर पर जैसे सवाल उठाए जा रहे थे वैसे ही सवाल पुलिस के इस अभियान पर भी उठ रहे थे। दरअसल राजधानी लखनऊ के नजदीक सीतापुर जिले के कुछ गांव में डर का माहौल है। डर की वजह है बच्चों पर हुए हमले, हालांकि अब तक यह साफ़ नहीं है कि हमले कुत्तों ने किए हैं या किसी दूसरे जंगली जानवर ने यह अब तक स्पष्ट नहीं है। गांव वाले भेड़िया या सियार के हमले की भी बात कह रहे हैं। लेकिन प्रशासन ने कुत्तों को ही हमलावर समझकर मारना शुरू कर दिया है।

…ये तो किसी को नहीं काटते
लखीमपुर बाइपास के नजदीक बिजवार में जब सीओ सिटी और एसडीएम को कुत्तों का झुंड होने की सूचना मिली, तो हथियारों और लाठियों से लैस दो दर्जन से ज्यादा पुलिसवालों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर उन्हें घेर लिया। दो फायर किए गए एक कुत्ते के पैर में गोली लगी। जबकि बाकी भाग निकले। आसपास के लोगों का कहना है कि ये कुत्ते किसी को नहीं काटते। यहीं बैठे रहते हैं, हम तो इन्हें रोटी खिलाते हैं। लेकिन प्रशासन कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है, उसके सर पर तो जैसे खून सवार हो गया है।

बेरहमी से क़त्ल
जो भी कुत्ता नजर आ रहा है उसे या तो गोली या फिर फावड़ा या लाठियों से पीट-पीटकर मौत के घाट उतारा जा रहा है। मारे गए कुत्तों को बिना पोस्टमॉर्टम खेतों में गाड़ दिया जा रहा है। इसके बावजूद बच्चों पर हमले नहीं रुक रहे हैं। यह मान भी लिया जाए कि मार गए कुत्तों में से कोई कुत्ता ऐसा है जिसने बच्चों पर हमला किया तो पोस्टमॉर्टम न होने से उसके व्यवहार में ऐसा बदलाव क्यों आया? यह भी नहीं पता चल पाएगा।

कार्रवाई पर उठे सवाल
इस मामले में जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. आरपी यादव कहते हैं, ‘प्रभावित इलाकों में एक भी ऐसा कुत्ता नहीं मिला है, जिसको रैबीज हो। यह भी अभी तय नहीं है कि कुत्ते ही बच्चों को मार रहे हैं।’ वहीं पशु हितों के लिए काम करने वाले आसारा फाउंडेशन की डॉ. शिल्पी चौधरी कहती हैं कि बिना पोस्टमॉर्टम के कुत्तों को दफना दिया जाना गलत है।