भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच एनआईए को सौंपने के बारे में 14 को फैसला

पुणे। सँवाददाता : पुणे सत्र न्यायालय ने भीमा-कोरेगांव मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को हस्तांतरित करने के मामले पर 14 फरवरी तक आदेश सुरक्षित रख लिया है। अभियोजन पक्ष (महाराष्ट्र राज्य) ने एनआईए द्वारा  मामले की हस्तांतरण की मांग के आवेदन का विरोध किया है। कल इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शुक्रवार को अदालत ने 14 फरवरी तक फैसला सुरक्षित रखा है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी थी। जिसके बाद एनआईए ने पुणे सत्र अदालत में सभी रिकॉर्ड्स और कार्यवाहियों को मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत को हस्तांतरित करने की मांग की थी। पुणे की सत्र अदालत में इस मामले को स्थानांतरित करने की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई हो रही है।
कल की सुनवाई में एनआईए के वकील ने इस मामले में कागजात, जब्त किया हुआ डाटा और अदालती रिकॉर्ड तथा सुनवाई मुंबई में विशेष एनआईए अदालत को स्थानांतरित करने की मांग की। हालांकि बचाव पक्ष के एक वकील सिद्धार्थ पाटिल ने दलील दी कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 के अनुसार केवल उच्च न्यायालय ही किसी मामले को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित कर सकता है। उन्होंने कहा, ”इस मामले में न केवल (मुख्य) आरोपपत्र, बल्कि पूरक आरोपपत्र भी दायर किया जा चुका है और हम आरोप तय करने के करीब पहुंच गए हैं। इस अदालत के पास मामले को स्थानांतरित करने के अधिकार नहीं है।”
गौरतलब हो कि,  31 दिसंबर 2017 को पुणे शनिवारवाड़ा में हुई एल्गार परिषद सभा में दिए गए भाषणों और अगले दिन जिले में कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के निकट हुई हिंसा से संबंधित है। पुणे पुलिस का दावा है कि इस सभा को माओवादियों का समर्थन हासिल था और इस दौरान दिए गए भाषणों से हिंसा भड़की। इस मामले में वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाले कार्यकर्ताओं सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेन्द्र गडलिंग, महेश राउत, शोमा सेन, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और वरवर राव को कथित रूप से माओवादियों से संबंध रखने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस के हाइकमान शरद पवार ने पुणे पुलिस की भूमिका पर संदेह जताकर राज्य सरकार से इसकी जांच के लिए एसआइटी गठित करने की मांग की थी। इसके तुरंत बाद केंद्र सरकार ने इस मामले की जांच एनआईए को सौंपने का फैसला किया। इस पर केंद्र और राज्य सरकार आमने- सामने आ गई हैं।