कचरा संकलन का विवादित और रद्द किया गया प्रस्ताव अंततः मंजूर

पिंपरी। समाचार ऑनलाइन 

सत्तादल और विपक्ष को मनाने में मनपा आयुक्त सफल
शहर भर से कचरा संकलन कर मोशी कचरा डिपो पहुंचाने के जिस प्रस्ताव पर सत्तादल भाजपा और विपक्ष के बीच टकराहट के साथ सत्तादल के भी आंतरिक मतभेद उभर कर सामने आए, उस विवादित प्रस्ताव को आखिरकार मंजूरी दे दी गई। मंगलवार को पिंपरी चिंचवड़ मनपा की स्थायी समिति की बैठक में पुरानी स्थायी समिति के सदस्यों द्वारा पारित प्रस्ताव को ही मंजूरी दी गई। शहर को दो हिस्सों में बांटकर दो ठेकेदार कंपनियों को कचरा संकलन का यह प्रस्ताव मौजूदा समिति सदस्यों ने ज्यादा दर से टेंडर मंजूर का कारण बताकर रद्द किया था। हालांकि अब पूरे खर्च में तकरीबन 19 करोड़ की बचत का दावा करते हुए वही प्रस्ताव पारित किया गया।

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स्थायी समिति अध्यक्षा ममता गायकवाड़ की अध्यक्षता में संपन्न हुई इस बैठक में 114 करोड़ 65 लाख 32 हजार रुपए के खर्च के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इसी बैठक में कचरा संकलन का विवादित प्रस्ताव भी पारित किया गया। इसकी वजह स्पष्ट करते हुए समिति अध्यक्षा गायकवाड़ और वरिष्ठ नगरसेवक विलास मड़ेगीरी ने बताया कि, दोनों ठेकेदार कंपनियों के साथ टेंडर को दरों को लेकर चर्चा हुई जिसमें 210 रुपए प्रति टन के हिसाब से दर कम किया गया। पहले के प्रस्ताव के अनुसार इस पूरे ठेके पर सालाना तकरीबन 40 करोड़ रुपए खर्च होते थे, मगर अब सालाना खर्च 21 करोड़ तक नीचे आ गया है। इससे मनपा की 19 करोड़ रुपए तक की बचत होगी, यह दावा भी उन्होंने किया।
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बहरहाल विपक्ष के साथ सत्तादल के पुरजोर विरोध के बाद अचानक से विवादित प्रस्ताव मंजूर किये जाने को लेकर मनपा गलियारे में अचरज जताया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि, इस प्रस्ताव को लेकर स्थायी समिति और ठेकेदार कंपनियों के बीच ‘अर्थपूर्ण’ चर्चा होने के बाद ही इसे मंजूरी दी गई। ज्ञात हो कि कचरा संकलन और मोशी कचरा डिपो तक ट्रांसपोर्टेशन का ठेका एजी इनवायरो इंफ्रा प्रोजेक्ट और बीवीजी इंडिया लि को सौंपने का फैसला तत्कालीन स्थायी समिति अध्यक्ष सीमा सावले की अध्यक्षता वाली समिति ने किया था। इसके लिए पिंपरी चिंचवड़ शहर को दो हिस्सों में बांटा गया था। सालाना 22 करोड़ रुपए खर्च का यह ठेका आठ सालों के लिए सौंपने के इस प्रस्ताव पर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया। वहीं सत्तादल भाजपा के भी आंतरिक मतभेद उभरकर सामने आए। स्थायी समिति की कमान संभालते ही ममता गायकवाड़ की अध्यक्षता वाली समिति ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। टेंडर में स्पर्धा न हो सकने से ऊंचे दर मिलने का दावा किया गया और सर्वदलीय गुटनेताओं की बैठक में पुनः टेंडर मंगाने का फैसला तक किया गया। मगर फिर न जाने ऐसा कौन सा जादू हुआ कि पुराने टेंडर को ही दर कम करने के बाद प्रस्ताव मंजूर किया गया। इससे सन्देह का दायरा और गहरा गया है।
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