कोसों दूर पैदल चलकर जाने के बाद भी नहीं मिलता पानी

बीड जिले के बहुत से गांव झेल रहे सूखे की मार
गुणवंती परस्ते
समाचार ऑनलाइन – महाराष्ट्र का बीड जिला सूखागस्त इलाकों में गिना जाता है, लेकिन पिछले तीन सालों से काफी कम बारिश होने की वजह से बीड जिले के गांवों की हालत काफी खराब है। शिरुर और पाटोदा तहसील पानी की काफी किल्लत झेल रहे हैं। यहां के किसानों को पीने का पानी मिलना भी मुश्किल हो गया है। गांव के लोग 3 से 5 किमी दूरी से पानी का पीने भरकर लाते हैं। शिरुर और पाटोदा के किसानों को पानी की किल्लत की वजह भूखमरी और गरीबी का सामना करना पड़ रहा है। पानी नहीं होने की वजह से खेती में झेलने पड़ रहा है। साथ ही बड़ी तादाद में रोजी रोटी के लिए दूसरे शहरों में स्थालांतरित हो रहे हैं।
40 वर्षीय सिंधुबाई उत्तम उपरकर शिरुर के उत्तमनगर गांव में रहती है। वह शक्कर कारखाने में गन्ने तोड़ने का काम करती है। सिंधुबाई ने बताया कि हमारे गांव में पानी की काफी किल्लत है, हमारे गांव के ग्रामपंचायत द्वारा बनाए गए, सभी कुएं सूख गए है। इन कुओं से पाइप लाइन को जोड़कर गांव के लिए सार्वजनिक नल कनेक्शन लगाया था, अब उसमें भी पिछले एक महीने से पानी नहीं आ रहा है। जिसके चलते हम दूसरे गांव से पानी भरकर लाना पड़ता है। 26 वर्षीय रेखा बाबासाहेब गाडे ने बताया हम मजदूर है, शक्कर कारखाने में काम करते हैं। शक्कर कारखाने हर साल फरवरी, मार्च और अप्रैल में बंद हो जाते हैं। हम अपने गांव वापस आ जाते हैं। पर यहां पानी नहीं होने की वजह से हालत काफी खराब है। घर में पानी का पानी नहीं होने की वजह से हमें कम पानी में ही गुजारा करना पड़ रहा है। हालत इतने खराब हैं कि हमें दिन भर पानी के लिए भटकना पड़ता है।
शिरुर के दहीवंडी गांव में एक महीने बाद पानी का टैंकर आने के बाद पानी भरने के लिए गांववालों की काफी भीड़ जमा हो गई थी। लोगों ने अपने घर के बर्तन और ड्रम में पानी भर रहे थे। गांव के 25 वर्षीय स्थानिक नागरिक युवराज उत्तम कडाले ने बताया कि गांव में बीजेपी सरकार द्वारा ग्राम पंचायत के सहयोग से 5 कुएं निर्माण करवाएं  थे। लेकिन पिछले तीन सालों से कम बारिश होने की वजह से गांव के कुएं में पानी नहीं है। पानी नहीं होने की वजह से हमें खेती में काफी नुकसान हुआ है। फरवरी महीने से ही यहां के किसानों और लोगों को सूखे का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही युवराज ने बताया कि मेरी 2 से 3 एकड़ जमीन है। मेरे खेत में कापूस, प्याज, तूर दाल की खेती होती है। खेती के लिए मैंने 50 हजार रुपए खर्च किए थे, लेकिन पानी की किल्लत की वजह से खेती का काफी नुकसान हुआ है। हमें सरकार से नुकसान भरपाई के रुप में मात्र 3000 से 4000 रुपए ही मिलता है।
दहीवंडी गांव की 32 वर्षीय सरपंच शीला आघाव ने बताया कि गांव में जनवरी महीने से पानी नहीं आ रहा है। पानी की किल्लत को दूर करने के लिए हमने गांववालों के लिए दो महीने पहले ही टैंकर की मांग की थी। दो महीने पहले टैंकर की मांग करने के बाद 10 फरवरी को पहला टैंकर गांव में आया। दो महीने से हम टैंकर के लिए तीन से चार बार कलेक्टर ऑफिस में मांग कर चुके हैं। दहीवंडी और उत्तमनगर के नागरिकों को रोजाना 9 हजार लीटर पानी की आवश्यकता है। हमने प्रतिदिन के हिसाब के दो टैंकर की मांग की थी। लेकिन पांच दिन में दो ही बार टैंकर द्वारा पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। गांव में काफी दूरी से पानी का टैंकर आता है, जिसकी वजह से गांव तक टैंकर आने में काफी समय लगता है। शिरुर तहसील के ज्यादातर गांवों में टैंकर द्वारा ही पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।
पाटोदा तहसील के पिंपलधस गांव की हालत इतनी खराब है कि यहां निवासी गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है। यहां के कुएं का भी पानी पूरी तरह सूख गया है। जिस कुएं में थोड़ा पानी है, वह काफी गंदा है। गांव लोग कुएं का गंदा पानी पीने के लिए मजबूर हैं। 85 वर्षीय दोपद्रा नाना बहादुरगे रोजाना अपने सिर पर बर्तन रखकर कुएं के पास आती है और कुएं के अंदर धीरे-धीरे उतरकर बर्तन में पानी भरकर ले जाती है। दोपद्रा ने बताया कि हमारे पास पानी भरने का दूसरा कोई स्त्रोत नहीं है, पास में जो कुआं है, उस कुएं का पानी काफी मटमैला है। हमारे गांव में जानवरों के लिए भी पीने का पानी नहीं बचा है। 90 वर्षीय बाबूराव मारुति सोनसले ने बताया कि हमारे गांव में पिछले तीन सालों में काफी कम बारिश हुई है। इस सूखे की वजह से यहां के ज्यादातर लोग बाहर गांव से जाकर मजदूरी का काम करने लगे हैं। मेरे परिवार में दो बेटे और उनके बच्चे हैं। यह सभी गांव से बाहर जाकर मजदूरी और नौकरी करते हैं। जो भी कमा कर वह गांव में लाते हैं, खेती के लिए पैसे लगा देते हैं। पर पानी नहीं होने की वजह से खेती नहीं होने से हमारा काफी नुकसान हो रहा है।
विश्वनाथ लक्ष्मण क्षीरसाठ (उम्र 49) ने बताया कि मेरी 5 एकड़ की खेती की जमीन है। हमारे खेत में बाजारी, कापूस और प्याज की खेती की जाती है। लेकिन पानी की कमतरता की वजह से इन फसलों का काफी नुकसान हुआ है। खेती करने के लिए कर्ज लिया था, लेकिन बिना पानी से फसलें पूरी तरह जल गई है। 40 हजार रुपए से ज्यादा खेती करने पर खर्च किया गया है। खेती से किसी भी तरह का उत्पन्न नहीं है, खेती के लिए कर्ज लिया था, उसे चुकाना भी काफी मुश्किल हो गया। प्रशासन द्वारा भले ही रोज टैंकर द्वारा पानी सप्लायी किए जाने के दावे किए जाते हों, पर यह टैंकर पांच दिन में एक ही बार लोगों तक पहुंच पा रहे हैं। पानी नहीं होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग स्थालांतरित हो रहे हैं। जिसकी वजह से 75 प्रतिशत लोग दूसरे शहरों में काम की तलाश में चले गए हैं। चंदूबाई अशोक क्षीरसाठ (उम्र 45) ने बताया कि जनवरी महीने से गांव में पानी नहीं आ रहा है। पीने के लिए टैंकर से पानी भेजे जाने की बात कही जाती है, पर टैंकर गांव तक पहुंच पा रहे हैं। गांव के बोअरवेल भी पूरी तरह सूख गए हैं। बीड जिले के गांवों की हालत काफी खराब है, सरकार द्वारा सिंचाई के साधनों की लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गई है। काम की तलाश में बाहर जाने के शिवाय किसानों के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं रहा है। अगर इसी तरह सिंचाई की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गई तो गांवों में खेती करना ही बंद हो जाएगा।
सविता बबन साठे (उम्र 30, पिंपलधस गांव) ने बताया कि हमारी 3 से 4 एकड़ खेती की जमीन है। पानी नहीं होने की वजह से पिछले कुछ सालों से खेती करना बंद किया है। पीने के लिए ही पानी मिलना मुश्किल हो गया है, खेती कहां से करेंगे। पीने के लिए पानी हमें दूर गांव से लाना पड़ता है, सिर पर पानी का बर्तन ढोने से हमें सिर दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द बना रहता है। अपना और परिवार का पेट पालने के लिए गांव से बाहर जाकर शक्कर कारखाने में जाकर काम करते हैं। हम कभी नहीं चाहते है कि हमारे बेटा किसान बनें। हम भी चाहते हैं कि हमारा बेटा पढ़ लिखकर कलेक्टर बनें या कोई अच्छी नौकरी करें। हम अपने बच्चों को अच्छा पढ़ा लिखाकर आगे बढ़ाना चाहते हैं। इसलिए हमने खेती करना ही छोड़ दिया है।
कलेक्टर ऑफिस में कार्यरत अधिकारी द्वारा दी गई जानकारी अनुसार बीड जिले में जलाशय के कुल 144 प्रोजेक्ट हैं। जिसमें दो जलाशय बड़े हैं, 16 मध्यम और 126 जलाशय छोटे हैं। इन जलाशयों में 1.65 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। जलाशय में 14.742 टीएमसी पानी बचा हुआ है। साथ ही डेड स्टोरज पानी 155.703 टीएमसी पानी मौजूद है, जिसमें 17.445 डेड स्टोरज वॉटर इस्तेमाल किया जा सकता है। पानी की कमतरता को ध्यान में रखते हुए टेक्निकल वॉटर स्टोरज का प्रीपरेशन किया गया है। यह पानी जुलाई अंत तक रहेगा। साथ ही अधिकारी ने बताया कि बीडे जिले के ग्रामीण इलाकों में 3046 टैंकर से पानी सप्लायी किया जा रहा है। बीड जिले के 5 ब्लॉक है, जहां पानी की ज्यादा कमतरता है। 6 तहसील में पानी की स्थिती सामान्य है। साथ ही बीड जिले के तीन महानगरपालिका द्वारा 35 टैंकर द्वारा शहरों में पानी सप्लायी किया जा रहा है।