देश में सबसे पहले पुणे में दी गई थी एक साथ 4 दोषियों को फांसी

पुणे। सँवाददाता-सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के सबसे जघन्य माने गए निर्भया मामले के चार कसूरवारों को 22 जनवरी को फांसी दी जा रही है। दिल्ली कोर्ट निर्भया केस के चारों गुनहगारों का डेथ वारंट जारी कर चुकी है। पूरे देश में करीब 36 साल बाद यह पहला मौका होगा, जब किसी मामले में चार दोषियों को एक ही दिन फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। इससे पहले 25 अक्टूबर 1983 को पुणे में 10 लोगों की लूट के बाद हत्या करने वाले चार सीरियल किलर राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, संतराम कनहोजी और मुनावर शाह को येरवडा सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।
पुणे शहर में जनवरी 1976 से 1977 के बीच 10 लोगों की हत्याएं हुई थीं। तब यह केस जोशी-अभयंकर सीरियल किलिंग के नाम से सुर्खियों में आया था। दोषियों का एक साथी सुभाष चांडक सरकारी गवाह बन गया था। हत्यारे पुणे स्थित अभिनव कला महाविद्यालय में कमर्शियल आर्ट के छात्र थे। शराब का नशा और टू व्हीलर का शौक पूरा करने के लिए उन्होंने अपराध की दुनिया में कदम रखा था। हत्यारों ने अपने क्लासमेट प्रसाद हेगड़े को अगवा कर उसके पिता से फिरौती वसूलने की साजिश रची थी। वे उसे बहला-फुसलाकर जक्कल के टीन शेड में ले गए और उससे पिता के नाम चिट्ठी लिखवाई कि उसने अपनी मर्जी से घर छोड़ा है। इसके बाद हत्यारों ने प्रसाद का गला घोंट दिया और शव को लोहे के बॉक्स में बंद कर एक झील में फेंक दिया था। अलगे ही दिन उन्होंने प्रसाद की चिट्ठी पिता को सौंप दी थी।
हत्यारों ने 31 अक्टूबर 1976 से 23 मार्च 1977 तक और 9 लोगों को मौत के घाट उतारा था। इस दौरान वे लूटपाट के लिए कई घरों में घुसे। यहां परिवार को बंधक बनाकर रस्सी से उनका गला घोंटा और कीमती सामान लूटकर ले गए। इन बर्बर हत्याओं से पूरे महाराष्ट्र में सनसनी फैल गई थी। सिलसिलेवार हत्याओं से शहर में डर का माहौल बन गया था। लोग शाम 6 बजे के बाद घरों से नहीं निकलते थे। जब दोषियों को लेकर अदालत सुनवाई शुरू हुई, तब इसकी खबरें अखबारों में बड़े पैमाने पर पढ़ी जाती थीं। जब हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, तब कोर्ट परिसर में लोगों की भीड़ मौजूद थी। 25 अक्टूबर 1983 को चारों को एक ही दिन फांसी दी गई थी। उसके बाद अब निर्भया केस के चार कसूरवारों को 22 जनवरी के एक ही दिन फांसी दी जा रही है।