संस्कृति की बेहतर समझ के लिए अंग्रेजी से मराठी स्कूलों में जा रहे बच्चे

पुणे। शहर में बच्चों के माता-पिता अब ज्यादा अवसर और प्रतिष्ठा के लिए अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेजने के बजाए मराठी माध्यमिक स्कूलों में भेज रहे हैं। ताकि हमारी अगली पीढ़ी अपनी संस्कृति और स्थानीय भाषा की भावना को संरक्षित रख सके। इसके लिए माता-पिता बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों से स्थानीय मराठी संस्थानों में स्थानांतरित कर रहे हैं।

समीर खड़केकर की बेटी, अनुश्री ने 6वीं कक्षा तक की पढ़ाई अंग्रेजी-माध्यमिक विद्यालय में की। अब उनके पिता ने उन्हें मराठी-माध्यम के स्कूल में ले जाने का फैसला किया है। खड़केकर ने कहा की, मेरी बेटी अंग्रेजी में अपने सभी विषयों का अध्ययन कर रही थी, लेकिन वह उन विषयों के अवधारणा को मुश्किल से समझ पाती थी। लेकिन, जब मराठी में घर पर उसी अवधारणा को समझाया जाता तो उसे कोई परेशानी नहीं थी।” उन्होंने कहा, “बेहतर समझ के अलावा, मराठी स्कूलों में बच्चे संस्कृति सीखते हैं। हम मराठी हैं और हमारे बच्चों को त्योहारों का शौक हैं। कुछ घटनाएं ऐसी हैं जब मेरी बेटी अपने हाथों पर मेहंदी के साथ स्कूल गई और उसके स्कूल ने हमें एक नोट भेजा, जिसमें कहा गया था कि इसकी अनुमति नहीं है। मुझे लगता है कि बच्चों को स्वतंत्र रूप से त्योहारों का आनंद लेने की छूट होनी चाहिए।

मराठी स्कूलों में बच्चों पर दबाव कम
माता-पिता यह भी महसूस करते हैं कि मराठी मिडियम के स्कूलों में बच्चों पर पढ़ाई का दबाव कम है। ये स्कूल अधिक उदार होते हैं। प्राची जोशी की बेटी कक्षा 10 में है और उस पर पढ़ाई का बहुत दबाव रहता है। उन्होंने बेटी को तो स्थानांतरित करने में बहुत देर कर दी, लेकिन जोशी ने अपने तीसरी कक्षा में पढ़ रहे बेटे को मराठी माध्यमिक विद्यालय में स्थानांतरित करने का फैसला किया है।
जोशी ने कहा, “छुट्टियों के दौरान, मैंने एक ही विषय पर मराठी और अंग्रेजी माध्यम की किताबें अपने बेटे पवन कुमार को दीं। उसके लिए अपनी मातृभाषा में अवधारणाओं को समझना आसान था और अब वह माधव सदाशिव गोलवलकर गुरुजी विद्यालय में शिक्षा लेनी की तैयारी कर रहा है। जोशी भी इस बात पर सहमत हैं कि अंग्रेजी और मराठी स्कूलों के बीच सांस्कृतिक अंतर भी है।

अपनी भाषा में पढ़ने से आसानी

इसी तरह एक और अभिभावक सरिता मेहता भी अपनी बेटी के लिए मराठी-माध्यमिक विद्यालय की तलाश कर रही हैं। उन्होंने कहा, “मेरी बेटी कक्षा दो में है। वह पहले से ही कोचिंग ले रही है। मुझे विश्वास है कि वह मराठी में विषयों का अध्ययन करेगी तो सकारात्मक अंतर आएगा।” अभी मेहता ने अपनी बेटी के लिए स्कूलों को सूचीबद्ध किया है, लेकिन उन्हें अभी तक प्रवेश नहीं मिला है। उन्होंने कहा, ” मेरी बेटी का नाम प्रतीक्षा सूची में है। मुझे उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही एक मराठी मीडियम स्कूल में प्रवेश मिलेगा।”

बढ़ रही है ऐसे छात्रों की संख्या

स्कूल के अधिकारियों ने भी पुष्टि की है कि अंग्रेजी से मराठी स्कूलों में जाने वाले छात्रों की संख्या में बढ़त हुई है। सदाशिव पेठ में माधव सदाशिव गोलवलकर गुरुजी विद्यालय की प्रिंसिपल कल्पना धालेवादिकर ने कहा, “हमें अंग्रेजी माध्यम स्कूलों के 10 से 12 छात्र मिल रहे हैं। इसका प्राथमिक कारण यह है कि माता-पिता महसूस करते हैं कि उनके बच्चे मराठी में बेहतर तरीके से समझ सकते हैं साथ ही इसका सांस्कृतिक कारक भी है। उन्होंने कहा, “यहां छात्रों को उनकी संस्कृति के और शिष्टाचार के बारे में सिखाया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि, शहर में अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालयों के बावजूद मराठी स्कूलों को चलाने में कोई चुनौती नहीं आई। बल्कि हम अपने डिवीजनों को बढ़ा रहे हैं और माता पिता के कहने पर प्लेग्रुप कक्षाएं भी शुरू कर रहे हैं।

संस्कृति की ओर बढ़ रहा आकर्षण
सदाशिव पेठ में ही रेणुका स्वरुप मेमोरियल गर्ल्स हाई स्कूल की प्रिंसिपल जयश्री शिंदे ने कहा कि, “इस साल, हमारे पास 22 से अधिक छात्र हैं जो अंग्रेजी मीडियम स्कूलों से आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि, “लोग उच्च शिक्षा की तुलना में संस्कृति के बारे में सोच रहे हैं। इसके अलावा, हमारे स्कूल के छात्र सभी आर्थिक स्तर से आते हैं क्योंकि यहां फीस सस्ती है।”

पूरे महाराष्ट्र में फैल रही यह भावना
शहर के ही एक शिक्षक अनिल गोरे जो मराठी भाषा में कार्यशालाएं और व्याख्यान देते हैं ने मानसिकता में बदलाव की सराहना की। “मैं छात्रों को अपनी मातृभाषा में सीखने के बारे में जागरूकता फैल रहा हूं। उन्होंने कहा, यह केवल पुणे तक ही सीमित नहीं है, यह प्रवृत्ति महाराष्ट्र भर में फैल रही है।