पटना. ऑनलाइन टीम : बिहार के निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विशेषता है कि सूबे में एक कमजोर ताकत होने के बावजूद वे पिछले 12 साल से सत्ता में बने हुए हैं। ऐसा उन्होंने चालाकी से अपने सियासी पत्ते खेलते हुए किया है। कभी अधिक मजबूत आधार वाली भाजपा, तो कभी राजद उन्हें नेता मानने पर मजबूर हुए। अब नीतीश कुमार बदले हालात में असमंजस की स्थिति में दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार एलजेपी चीफ चिराग पासवान की चुनावी चाल से इतने आहत हैं कि वो फिर से मुख्यमंत्री पद का शपथ लेने से संकोच कर रहे हैं। लोजपा प्रमुख ने उन सभी जगहों पर अपने उम्मीदवार दिए जहां से जदयू के प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे।
चुनाव प्रचार में भी उन्होंने नीतीश कुमार पर तीखा हमला किया। यहां तक की उन्हें जांच के बाद जेल भेजने की भी बात कही। खामियाजा जद-यू को भुगतना पड़ा। अब जब नीतीश कुमार की पार्टी जदयू व भाजपा की सीटों का फासला काफी है। इसलिए यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार ही सचमुच पांच साल के लिए मुख्यमंत्री बनेंगे, जैसा कि भाजपा का वादा है या फिर बीच में ही कोई और उनकी जगह ले लेगा? और अगर नीतीश बने भी तो अब उनकी हैसियत क्या होगी? अनेक जानकार मानते हैं कि यही भाजपा की रणनीति थी। वह नीतीश कुमार का कद छोटा करने में सफल भी रही।
जनता मालिक है। उन्होंने NDA को जो बहुमत प्रदान किया, उसके लिए जनता-जनार्दन को नमन है। मैं पीएम श्री @narendramodi जी को उनसे मिल रहे सहयोग के लिए धन्यवाद करता हूँ।
— Nitish Kumar (@NitishKumar) November 11, 2020
हालांकि बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष डॉ. संजय जयसवाल, उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार शाम नीतीश कुमार से मुलाकात की। इसे एक शिष्टाचार भेंट बताया गया, लेकिन कई जेडीयू नेता इसे बीजेपी की दिलेरी के रूप में देख रहे हैं। उनका मानना है कि बीजेपी नेता मायूस नीतीश का मनोबल बढ़ाने के लिए आए थे। नीतीश ने कहा, ‘जनता मालिक है। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की असमंजस से वाकिफ हो गए हैं, इसीलिए उन्होंने दिल्ली के बीजेपी मुख्यालय में कहा कि बिहार आगे भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही आगे बढ़ेगा।
बता दें कि 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में एनडीए को 125 सीटें, जबकि महागठबंधन को 110 सीटें मिली हैं। बीजेपी 74 सीटों के साथ एनडीए घटक दलों में टॉप पर है, जबकि जेडीयू को 43 सीटों पर सिमट गया है। वहीं, आरजेडी के हिस्से 75 सीटें आई हैं और वह बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस पार्टी को 19 सीटें और वामपंथी दलों को 16 सीटें मिली हैं। 2005 के विधानसभा चुनाव से अब तक जेडीयू का यह सबसे खराब प्रदर्शन है।