रेडजोन में झुग्गी पुनर्वसन योजना को अनुमति कैसे?

मुंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर
पिंपरी। रेडजोन से बाधित रहने के बावजूद पिंपरी चिंचवड़ के निगडी के शरदनगर में सर्वे नंबर 56, 57 और 63 में एसआरए योजना का काम शुरू है। इस परियोजना को अनुमति दी गई फिर रेडजोन से बाधित अन्य घरों को क्यों नहीं? यह सवाल उठानेवाली एक जनहित याचिका मुंबई उच्च न्यायालय में दायर की है। इस याचिका को दायर करनेवाले निगड़ी यमुनानगर रहवासी सतिश मरल ने रेडजोन में एसआरए की परियोजना को मंजूरी देनेवाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई और पूरे प्रकरण की जांच करने की मांग की है।
याचिकाकर्ता सतीश मरल ने इस जनहित याचिका में महाराष्ट्र राज्य सरकार, रक्षा विभाग, पिंपरी चिंचवड नवनगर विकास प्राधिकरण, झोपडपट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण (एसआरए), पिंपरी चिंचवड महानगरपालिका, पिंपरी चिंचवड नगर भूमापन कार्यालय और रेन्बो डेवलपर्स को प्रतिवादी बनाया है। साथ ही इस याचिका के जरिये महाराष्ट्र सरकार, पीसीएनटीडीए, नगर भूमापन अधिकारी ने रेन्बो डेवलपर्स को रेडजोन में एसआरए की गृह परियोजना को अनुमति कैसे दी? इसकी जांच करने की मांग की है।
उन्होंने कहा कि मनपा की ओर से निगडी के सेक्टर 22 में केंद्र सरकार ‘जेएनएनयूआरएम’ अंतर्गत बनाई गई झोपडपट्टी पुनर्वसन गृह परियोजना की बिल्डिंगें देहूरोड ऑर्डनेंस फैक्ट्री के डिपो से दो हजार यार्ड तक के रेडजोन में आता है। 2019 में रेडजोन के नक्शे के मुताबिक तलवडेगांव, त्रिवेणीनगर, शरदनगर, रुपीनगर का इलाका रेडजोन में आता है।रेडजोन में आनेवाले शरदनगर के सर्वे नंबर 56, 57 और 63 में झोपडपट्टी पुनर्वसन (एसआरए) प्राधिकरण की गृह परियोजना का काम शुरू हैंम रेडजोन में निर्माण कार्य की अनुमति नहीं है तो फिर इस गृह परियोजना को कैसे अनुमति दी गई? यह सवाल इस याचिका के जरिए उठाया गया है।
यमुनानगर में आम नागरिकों ने पिंपरी चिंचवड़ नवनगर विकास प्राधिकरण से घर खरीदे हैं। ये इलाका भी रेडजोन में आने से यहां के रहवासियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें उनके घरों की बिक्री करने, पुनर्विकास करने, लोन हासिल करने, वारिसों का नाम चढ़ाने आदि में काफी दिक्कतें आती है। इन हालातों में रेडजोन में आनेवाले शरदनगर में एसआरए ज अंतर्गत गृह परियोजना को कैसे मंजूरी दी गई? जो न्याय एसआरए की परियोजना को दिया जा रहा है वही न्याय यमुनानगरवासियों को भी दिया जाना चाहिए, यह मांग सतीश मरल ने इस जनहित याचिका के जरिये की है।