क्या संकट में है कांग्रेस-जेडीएस सरकार?

बेंगलुरु: कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार संकट में घिर सकती है। क्योंकि कांग्रेस के नाराज़ विधायकों ने आवाज़ बुलंद करना शुरू कर दी है। कर्नाटक में कांग्रेस के 78 और जेडीएस के 37 विधायक हैं। राज्य सरकार का बुधवार को विस्तार किया गया, जिसमें 25 विधायकों को कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल किया गया। इनमें दोनों सहयोगी दलों के 23 विधायक,बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का एक और एक निर्दलीय विधायक को मंत्री बनाया गया है। अब समस्या यह है कि कांग्रेस में जिन विधायकों को मंत्री पद नहीं मिला, उनमें पार्टी के खिलाफ नाराजगी बढ़ गई है। कांग्रेस में कई चेहरे ऐसे हैं, जो पिछली सरकार में मंत्री थे, लेकिन इस बार उन्हें मौका नहीं मिला है। इन्हीं में से एक नाम है, एचएम रेवन्ना। रेवन्ना ने साफ़ तौर पर यह दिया है कि वह भाजपा के साथ संपर्क में हैं। भाजपा ने भी रेवन्ना के पार्टी के संपर्क में होने की बात कही है। इसके अलावा कुछ और भी नाम हैं, जो कांग्रेस से नाराज हैं। इनमें मुख्यरूप से विधायक एमटीबी नागराज, सतीश जारिकीहोली, के सुधाकर शामिल हैं। माना जा रहा है कि ये विधायक भी भाजपा का दामन थाम सकते हैं।

बनाया नया फॉर्मूला
हालांकि, कांग्रेस ने इस असंतोष और नाराजगी को कम करने के लिए एक नया फॉर्मूला निकाला है। इस फॉर्मूले के तहत राज्य मंत्रिमंडल में कांग्रेस अपने मंत्रियों को हर दो साल में बदल देगी। इसके साथ ही जो मंत्री उम्मीद के मुताबिक काम नहीं करेंगे, उन्हें छह महीने में ही मंत्री पद से हटा दिया जाएगा। यानि जो विधायक मंत्री बनने की लाइन में लगे हुए हैं, उन्हें मौका दिया जाएगा। कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कैबिनेट के लिए तीन सूत्रीय फॉर्मूला बनाया है।  उन्होंने कहा है कि ये फाइनल और आखिरी कैबिनेट नहीं है। मंत्रियों के प्रदर्शन की हर छह महीने में समीक्षा की जाएगी, जो लोग उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर पाएंगे, उन्हें जाने के लिए कह दिया जाएगा। हालांकि जिन लोगों को मंत्रिपद नहीं मिले हैं, उन्होंने उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर और केसी वेणुगोपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि इन लोगों ने अपनी जिम्मेदारी ढंग से नहीं निभाई।