महाराष्ट्र न रुका है न रुकेगा… फिर हमारी नियुक्ति क्यों रोकी?

मुंबई : रोजी रोटी का सवाल रोज का है, कभी दरवाजे के अंदर तो कभी दरवाजे के बाहर्। कवि नारायण सुर्वे की कविता की तरह की MPSC परीक्षा पास हुए अधिकारियों की अवस्था हो गई है। नियुक्ति का सवाल रोज का है, कभी गांव में तो कभी गांव के बाहर्। इस तरह की भावना नायब तहसीलदार बने लेकिन नियुक्ति न होने के कारण कारण खेत में काम करने वाले प्रवीण कोटकर ने व्यक्त की। हालांकि यह विषय सिर्फ कोटकर का नहीं है बल्कि 2020 के बैच के लगभग 413 भावी उम्मीदवारों का है। 8 वर्षों तक कठिन परिश्रम कए बाद मिले पद पर नियुक्ति 10 महीने से रुकी है। इस वजह से कई को तो घर में बैठना पड़ रहा है अर कई खेतो में काम कर रहे हैं।

कोटकर ने कहा कि साहब कब होगी ज्वाइनिंग, रावसाहब कौन सा गांव मिला, सही में तहसीलदार बने हो क्या? ये शब्द अब चुभने लगे हैं। गांव में बाहर निकलने के बाद कौन सामने आकर हम पर हंसेगा ये कहा नहीं जा सकता है। इसलिए दिन भर खेत में जाकर सारा काम करता हूँ। माता-पिता दोनो अल्पशिक्षित किसान हैं। बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना देख कर पढाया। दसवीं तक की पढ़ाई गांव में ही कई। उसके बाद 2012 में बीई केमिकल की डिग्री लेकर माता-पिता का सपना साकार किया। लेकिन प्रशासकीय सेवा में आने की इच्छा के कारण प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू की। 2012 में शुरू हुई संघर्ष का परिणाम जून 2020 में मिला। अहमदनगर जिले के अकोला तालुके के दो से ढाई हजार की जनसंख्या वाले कुंभेफल गांव का प्रवीण नायब तहसीलदार बन गया। गांव में जल्लोष हुआ, भाई का सत्कार हुआ, पेपर में खबरे आयी। संघर्ष की कहानी बताई जाने लगी। लेकिन नियुक्ति के लिए अभी भी संघर्ष जारी है।

नियुक्ती रुकने की दुख भरी कहानी सिर्फ एक की नहीं बल्कि 413 प्रवीण कोटकर की है। जिन्होने जून 2020 में राज्यसेवा परीक्षा से अधिकारी बनने का सपना देखा था। इसमें रिक्शेवाले भाई द्वारा मदद की गई अल्पसंख्यक समाज की वासिमा शेख भी है। शेख ने बहुत ही प्रतिकूल परिस्थिति में उपजिलाधिकारी का पद हासिल किया, वही वंदना करखेले ने डीवाईएसपी बनने की खुशी में पहले ही नौकरी से इस्तीफा दे दिया। लेकिन 10 महीने से नियुक्ति न होने के कारण तेल भी गया और घी भी नहीं मिला जैसी स्थिति हो गई है। बेटी बचाओ- बेटी पढाओ बोलने वाली सरकार बेटी को ज्वाइनिंग दो… ऐसा कह कर दुख जताया जा रहा है।

मेरे ट्वीट करने के बाद मीडिया ने अच्छा अट्रैक्शन दिया, मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने भी दखल लेकर आश्वासन दिया, वही विपक्ष नेता प्रवीण दरेकर ने भी हमारा पक्ष लिया। इसकी खुशी है, लेकिन मीडिया में सिर्फ मेरे अकेले की चर्चा हुई। मेरे से भी ज्यादा प्रतिकूल परिस्थिति में संघर्ष कर एमपीएससी परीक्षा पास करने वाले कई उम्मीदवार हमारे बैच में हैं। इसलिए 413 प्रवीण की तरफ सरकार ध्यान दे।

जून से सितंबर के दौरान अगर नियुक्ति दी होती तो ऐसी परेशानी नहीं होती। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार एसईबीसी प्रवर्ग को छोड़कर 36 भावी अधिकारियो को सरकार नियुक्त कर सकती है। महाराष्ट्र रुका नहीं, रुकने वाला भी नहीं है… फिर हमारी नियुक्ति क्यों रोकी गई? यह सवाल विकास शिंदे ने सीधा मुख्यमंत्री से पूछा है। विकास भी 2020 की परीक्षा में शामिल हुआ था। शिंदे ने ट्वीट किया और प्रवीण ने उसे रीट्वीट किया। हैशटैग #MPSC_2019_joining अभियान भी चलाया। ऐसे में सरकार सही मायने में गंभीर होगी क्या, इन उम्मीदवारों को जल्द से जल्द नियुक्त करेगी क्या? यही बच्चो के माता-पिता, रिश्तेदार, अभिनंदन करनेवाले मित्रपरिवार और गांव को देखना है।

2 वर्ष से भी अधिक का समय गया

एमपीएससी परीक्षा के लिए 2018 में विज्ञापन आया। इसके अनुसार फरवरी 2019 में परीक्षा हुई। उसके बाद जुलाई 2019 में मुख्य परीक्षा, मुख्य परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद फरवरी 2020 में संबंधित पदो के लिए साक्षात्कार और इसके बाद 19 जून 2020 को अंतिम रिजल्ट आया। 2 वर्षो की तपस्या के बाद भी इंतजार करना पड़ रहा है।

एमपीएससी की तरह तलाठी की नियुक्ति भी रुकी हुई है

राज्य में तलाठी सी वर्ग के पदों के लिए मार्च 2019 में परीक्षा हुई थी। दिसंबर में रिजल्ट आया था। जनवरी महीने में 27 जिलों के उम्मीदवारों को नियुक्ति दी। लेकिन सरकारी लापरवाही और उदासीनता की वजह सए नांदेड़, बीड, औरंगाबाद, सातारा, सोलापुर और विदर्भ के 2 ऐसे कुल मिलाकर 7 जिलो के लगभग 350 उम्मीदवार नियुक्ति के इंतज़ार मे हैं। एक ही समय में हुई परीक्षा कए बाद 27 जिलो के उम्मिदवार को नियुक्त किया गया लेकिन हम अभी भी इंतज़ार कर रहे हैं। हमारे ऊपर अन्याय हो रहा है। यह भावना तलाठी बने बीड के प्रशांत नलावडे ने व्यक्त की।