महाविकास आघाडी vs भाजपा के बीच विधान परिषद् के लिए कांटे की टक्कर; प्रचार का तूफान थमा

मुंबई, 30 नवंबर राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार आने के बाद पहली बार चुनाव  मैदान में गठबंधन के खिलाफ भाजपा की लड़ाई विधान परिषद् चुनाव में देखने  को मिल रहा है।  आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलने के बाद  रविवार को प्रचार थम गया।  मतदान 1 दिसंबर को होगा जबकि काउंटिंग 3 दिसंबर को होगी।

रविवार को प्रचार के आखिरी दिन हर उम्मीदवार ने अपने प्रचार में पूरा दम लगा दिया।  इसके साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी  आखिरी दिन अपनी पूरी ताकत से मैदान में उतरे।  पुणे स्नातक विधान परिषद् सीट से भाजपा के उम्मीदवार संग्राम देशमुख मैदान में उतरे है।  महाविकास आघाडी की तरफ से अरुण लाड मैदान में है।  इस सीट से कांटे की टक्कर होने वाली है इसलिए दोनों तरफ से पूरी ताकत झोंक दी गई।  खुद शरद पवार, अजीत पवार, सुप्रिया सुले सहित जयंत पाटिल ने यहां डेरा जमाया।  जबकि भाजपा की तरफ से प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल, विरोधी  पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस ने यहां जोरदार मोर्चाबंदी की है।
पुणे शिक्षक विधान परिषद् सीट पर भी जोरदार टक्कर देखने को मिल रही है।  महाविकास आघाडी में यह सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस के हिस्से में आई है।  राष्ट्रवादी ने जयंत आसगांवकर को मैदान में उतारा है।  जबकि भाजपा की तरफ से जीतेन्द्र पवार मैदान में है।  आसगांवकर कोल्हापुर के है जबकि पवार सोलापुर से है।  मौजूदा विधायक दत्तात्रय सावंत निर्दलीय के रूप में   चुनाव लड़ रहे  है।
अमरावती सीट से महाविकास आघाडी के मौजूदा विधायक श्रीकांत देशपांडे जबकि भाजपा की तरफ से नितिन धांडे मैदान में है।  इसके अलावा विदर्भ माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रकाश कालबांडे, शिक्षक महासंघ के शेखर भोयर भी अपना नसीब आजमा रहे है।
नागपुर में लड़ाई बहुरंगी 
नागपुर स्नातक सीट से भाजपा के मौजूदा विधायक अनिल सोले का पत्ता काटकर महापौर संदीप जोशी मैदान में उतरे है।  जबकि  कांग्रेस के एड. अभिजीत वंजारी को मैदान में उतारा गया है।  इन दोनों के अलावा वंचित बहुजन आघाडी के राहुल वानखेड़े, विदर्भवादी आंदोलन के नितिन रोंगे, निर्दलीय प्रशांत डेकाटे, अतुल कुमार खोब्रागडे  भी मैदान में है।
भाजपा का पारंपरिक सीट होने की वजह से केंद्रीय  मंत्री नितिन गडकरी, पूर्व मुख्यमंत्री और विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस, पूर्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले जैसे नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।  जबकि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस इस चुनाव के लिए एकजुट है।